टीम डिजिटल/नई दिल्ली। देश की मशहूर सिंगर लता मंगेशकर हिंदी सिनेमा और उसके गीतों को लेकर इन दिनों बेहद आहत हैं। यही वजह है कि उन्होंने अपने जज्बाद सोशल मीडिया पर शेयर किए हैं। अपने लेख में उन्होंने जहां भारतीय सिनेमा और उसके संगीत को याद किया है, वहीं हिंदी सिनेमा में गीतों की पवित्रता गायब होने का मसला भी उठाया है।
जावेद अख़्तर ने जगाए जज्बात लता मंगेशकर यह लेख राइटर जावेद अख्तर से बातचीत के बाद लिखा है। वह लिखती हैं, जावेद अख़्तर साहब से मेरी टेलिफ़ोन पे बात हुई उसके बाद मुझे महसूस हुआ कि मुझे उसपर कुछ लिखना चाहिए, तो वो बात आप सबके सबके साथ साँझा कर रही हूँ।'
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याद आया सिनेमा का स्वर्णिम युग लता लिखती हैं, 'हिंदी चलच्चित्र संगीत का एक अनुपम दौर था। इसे golden era--स्वर्णिम युग--कहा जाता है। इस दौर के सिनेमा गीत भारतीयों के हृदय में वर्षों से रचे-बसे हैं। आज भी यह गीत करोंड़ों रसिक पसंद करते हैं एवं आगे भी पसंद करते रहेंगे।'
नमस्कार .जावेद अख़्तर साहब से मेरी टेलिफ़ोन पे बात हुई उसके बाद मुझे महसूस हुआ कि मुझे उसपर कुछ लिखना (cont) https://t.co/XhzXrLhX8s — Lata Mangeshkar (@mangeshkarlata) June 1, 2018
नमस्कार .जावेद अख़्तर साहब से मेरी टेलिफ़ोन पे बात हुई उसके बाद मुझे महसूस हुआ कि मुझे उसपर कुछ लिखना (cont) https://t.co/XhzXrLhX8s
नए युग में रिमिक्स और ऑडियंस गायिका आगे लिखती हैं, 'कुछ समय से मैं देख रही हूं कि स्वर्णिम युग से जुड़े गीतों को नए ढंग से--re-mix के माध्यम से--पुन: पेश किया जा रहा है। कहते हैं कि यह गीत युवा श्रोताओं में लोकप्रिय हो रहें हैं। सच पूछिए तो इस में आपत्ती की कोई बात नहीं है। गीत का मूल स्वरूप कायम रख उसे नये परिवेश में पेश करना अच्छी बात है।'
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गीतों से ना हो तोड़मरोड़ लता कहती हैं, 'एक कलाकार के नाते मैं भी ये मानती हूँ की कई गीत कई धुनें ऐसी होती है की हर कलाकार को लगता है की काश इसे गाने का मौक़ा हमें मिलता,ऐसा लगना भी स्वाभाविक है, परंतु, गीत को तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत करना यह सरासर गलत बात है। और सुना है की ऐसा ही आज हो रहा है और मूल रचयीता के बदले और किसी का नाम दिया जाता है जो अत्यंत अयोग्य है।'
याद आए स्वर्णिम युग के कलाकार महान गायिका ने स्वर्णिम युग के कलाकारों को भी याद किया है। वह लिखती हैं, 'स्वर्णिम युग के गीतों को बनाने में अनेक कलाकारों की--गायक-गायिका, गीतकार, संगीतकार ,संगीत संयोजक एवं कुशल वादकोंकी, तंत्रविशारदों की--मेहनत लगी है। उस दौर में मधुर गीतों का एक जुलूस निकल पड़ा। इस बात को हमें भूलना नहीं चाहिए कि अमीरबाई कर्नाटकी, जोहराबाई अंबालेवाली, तलत महमूदसाहाब, शमशाद बेगम, मोहम्मद रफ़ी साहाब, मुकेशभाई, गीता दत्त, किशोर-दा, मन्ना दा, आशा भोसले, उषा मंगेशकर, सुमन कल्याणपुर येशुदास, एस. पी. बालसुब्रमण्यम जैसे असंख्य गायक-गायिकाओं ने अपने गीतों से समूचे देश को एकता के धागे में पिरोने का काम किया।'
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सुर, ताल और लय का अनुपम उत्सव मंगेशकर का कहना है, 'मास्टर गुलाम हैदर, खेमचंद प्रकाश, अनिल विश्वास, आर. सी. बोराल, पंकज मलिक, के. सी. डे, नौशाद, सी.रामचंद्र, सज्जादजी, शंकर-जयकिशन, एस. डी. बर्मन, मदनमोहन, रोशनलाल, हेमंतकुमार, सुधीर फडके, पं. हृदयनाथ मंगेशकर, वसंत देसाई, जयदेव, खय्याम, सलिल चौधरी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, आर. डी. बर्मन, चित्रगुप्त, कल्याणजी-आनंदजी, जतीन-ललित जैसे अनगिनत प्रतिभाशाली संगीतकारोंने सुर, ताल और लय का अनुपम उत्सव रचा।'
कवियों और शायरों का अमूल्य योगदान लता दीदी लिखती हैं, 'हिंदी सिनेमा के गीतों को अमर बनाने में कवियों और शायरों का अमूल्य योगदान रहा है। साहिर लुधियानवी, मजरूह सुलतानपुरी, शैलेंद्र, राजेंद्र कृष्ण, पं. प्रदीप, पं. नरेंद्रजी शर्मा, पं. इंद्र, भरत व्यास, कैफ़ी आझमी, हसरत जयपुरी, इंदिवर, राजा मेहंदी अली खान, गुलजार, नीरज, आनंद बक्षी, जावेद अख्तर जैसे अनगिनत कवियोंने सिनेमा-गीतों के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं और भारत की बुनियादी मूल्यों का भरपूर संवर्धन किया। कई हिंदी सिनेमा-गीतों की पंक्तियों को हमारे लोक जीवन में मुहावरों का दर्जा मिला है। या बहुत बड़ी बात है।'
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संगीत के खजानें का दुरुपयोग ना करें देश की महान गायिका यह भी कहती हैं, 'अनगिनत गुणीजनों की प्रतिभा, तपस्या एवं मेहनत के फलस्वरूप हिंदी सिनेमा के गीत बने और बन रहे हैं। लोकप्रियता के शैलशिखर पर विराजमान हुए हैं, हो रहें हैं। यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। मेरी प्रार्थना है इसके साथ खिलवाड़ न करें।संगीत यह समाज एवं संस्कृति का प्रथम उद्गार है। उस के साथ विद्रोह न करें।ये समस्त संगीतकार ,गीतकार और गायकोंने ये तय करना चाहिए की केवल लोकप्रियता पाने के लिए वो इस संगीत के खजानें का दुरुपयोग ना करें।'
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गीतों की पवित्रता कायम रखने का दायित्व बकौल लता, 'हिंदी सिनेमा-गीतों की पवित्रता कायम रखने का और यह मसला योग्य तरह से हल करने का दायित्व रेकार्डिंग कंपनीयों का है ऐसा मैं मानती हूं लेकिन दुःख इस बात का है की कंपनीयां ये भूल गयी हैं।यह कंपनीयां अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करें ,संगीत को केवल व्यावसायिक तौर पे देखने के बजाय देश की सांस्कृतिक धरोहर समझके क़दम उठाए ऐसा मेरा उनसे नम्र निवेदन है।'
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