नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। कोरोना वायरस (Coronavirus) के बढ़ते कहर को देखते हुए कई देश इसकी वैक्सीन की खोज में लगे हुए हैं। ऐसे में कोरोना की वैक्सीन सुरक्षित तौर भारत में पहुंचे इसके लिए भारत को कोल्ड चैन सुविधाओं को बढ़ाने पर जोर देना जरूरी है। हाल ही के अध्ययनों के मुताबिक विशेषज्ञों का मानना है कि दुनिया के दूसरे सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश भारत के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है।
अतिरिक्त कोल्ड चैन की जरूरत नई दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी के वैज्ञानिक डॉक्टर सत्यजीत रथ का कहना है कि वैक्सीन बनाने वाली कंपनी को बड़े तौर पर अतिरिक्त कोल्ड चैन की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में निजी कंपनियों की भी मदद लेनी जरूरी होगी, तब ही सुरक्षित और असरदार वैक्सीन को लोगों तक पहुंचाया जा सकता है।
वैक्सीन को रखने के लिए 2 से 8 डिग्री तापमान है जरूरी दरअसल जिन वैक्सीनों का परीक्षण किया जा रहा हैं, उन्हें एक विशेष तापमान पर ही रखा जा सकता है, ऐसे में कोल्ड चैन टूटने पर वैक्सीन के बनने के बाद बाजार में पहुंचे तक स्थिति बिगड़ने का खतरा है। बेंगलुरु के आईआईएस के प्रोफेसर राघवन वरदराजन का कहना है कि मॉडर्ना और फाइजर की वैक्सीन को रेफ्रिजरेशन का एक संतुलन तापमान चाहिए होता है।
अगर ऐसा नहीं होता है तो वैक्सीन को पहुंचाना चुनौतीपूर्ण होगा। वैक्सीन को रखने के लिए औसतन 2 से 8 डिग्री का तापमान होना जरूरी है वैक्सीन बनाने के बाद स्पष्ट हो जाएगा कि उसे किस स्तर के तापमान पर रखना जरूरी है।
फाइजर की वैक्सीन को 7 डिग्री सेल्सियस पर रखना जरूरी वहीं नेशनल सेंटर फॉर कोल्ड चैन डेवलपमेंट के पवन कोहली का कहना है कि मॉडर्ना की वैक्सीन का परिवहन माइनस 20 डिग्री सेल्सियस के तापमान में होना जरूरी है। 2 से 4 डिग्री के तापमान में 7 दिन तक इसे रखा जा सकता है। इसी तरह फाइजर की वैक्सीन को 7 डिग्री सेल्सियस पर रखना जरूरी है। देश में कोल्ड स्टोरेज की जो स्थिति है वह सीमित और बेहतर नहीं है।
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