नई दिल्ली/कुमार आलोक भास्कर। प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी के खिलाफ पार्टी में बढ़ते असंतोष को देखते हुए संघ समय से पहले कुछ कड़ा कदम उठा सकती है। जिसके संकेत मिलने अब शुरु हो गए है। देश भर में मोदी-शाह की लहर में चुनावी नैया पार करने की लंबी छलांग लगाने के लिये ऐसे नेता पर पार्टी दांव खेल सकती है जो पार्टी की मौजूदा लोकप्रियता को भुनाने में पूरी तरह कामयाब हो सकें। मीडिया रिपोर्टस के अनुसार, दिल्ली विधानसभा चुनाव एकदम दरवाजे पर खड़ी होकर दस्तक दे रही है, लेकिन प्रदेश बीजेपी अभी-भी आंतरिक लड़ाई में फंसी नजर आ रही है। वो एक कहावत है 'हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और” वाली बात यहां पूरी तरह फिट बैठती नजर आ रही है।
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भले ही बीजेपी सदस्यता अभियान को दिल्ली में सफल बताकर अपनी पीठ थपथपा रही हो लेकिन सबसे बड़ा सवाल अभी-भी कायम है कि क्या दिल्ली में केजरीवाल का किला ढ़हाने में बीजेपी को सफलता मिलेगी भी या नहीं। तो इसमें सूई अब सीधे-सीधे मनोज तिवारी पर जाकर थम जाती है।
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पार्टी और संघ समझ नहीं पा रही है कि आखिर जिस तिवारी पर इतना बड़ा दांव खेला वो पार्टी को एकजुट करने में कामयाबी क्यों नहीं हासिल कर सका है। हालांकि पार्टी में तिवारी के आने और प्रदेश अध्यक्ष बनने से पहले ही गुटबाजी चरम पर रही है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। इसी गुटबाजी को खत्म करने के लिये बाहरी तिवारी को बैठाया गया था कि वे इसको खत्म करने में सफल होंगे।
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लेकिन कहीं न कहीं तिवारी की 'अनुभवहीनता और स्टारडम का दम' उनके और कार्यकर्ताओं के बीच रोड़ा अटकाने का काम करती है। ऊपर से जो कमी रह जाती है वो कसर पार्टी के वरिष्ठ नेता उस आग में घी डालने का काम करते है। जिससे कभी तिवारी खुद को असहाय भी महसूस करते है। यहां तो राजनीति के घाघ नेता पहले से बैठे हुए है जो तिवारी के बढ़ते ग्राफ देखकर कभी-कभी अपना आपा भी खो देते है। यहां तक कि उन्हें तिवारी कभी-भी फूंटी आंख भी नहीं सोहाते है।
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संघ यह देखकर हैरान है कि जिस देश में मोदी का डंका पीटा जा रहा हो उनके नाक के नीचे दिल्ली में ही बीजेपी कैसे सत्ता के लिये लालायित हो रही है।
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तो अब अगर कुछ दिनों में कुछ भी उलटफेर देखने को मिल जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। संघ सारी चीजों को बहुत ही बारिकी से नजर रख रही है। उधर केजरीवाल लगातार डंका पीटती जा रही है और बीजेपी हाथ पर हाथ रखकर गलबहिंया करने में व्यस्त है। आलम तो यह है कि सदस्यता अभियान खत्म भी हो गये है लेकिन मुद्दे के अभाव में बीजेपी उसे ही ले-देकर चलाते रहती है।
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सबसे बड़ी समस्या जो पार्टी और संघ को भीतर से परेशान कर रखी है कि सत्ता से 20 साल बाहर होने का दर्द क्यों नहीं दिल्ली के नेताओं के व्यवहार से झलकता है। जिसको देखो-खुद की डफली बजाने में व्यस्त रहता है। सबकुछ मोदी-शाह के भरोसे ही कर देना चाहता है। लेकिन केजरीवाल जैसे चतुर विपक्ष अगर सामने हो, जो किसी को भी टोपी पहनाने की कभी-भी क्षमता रखता है। अगर इस बार भी बीजेपी को टोपी पहना दिया तो यह बीजेपी के लिये बहुत बड़ी हार होगी। जिससे बचने के लिये संघ किसी कठोर कदम उठाने से परहेज नहीं कर सकती है।
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