Monday, Mar 27, 2023
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भारत-अमेरिका के साथ से चीन को लगी मिर्ची, ताइवान का उदाहरण देकर कही ये बात

  • Updated on 6/26/2020

नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। भारत और चीन तनाव के बीच चीन को भारत और अमेरिका की दोस्ती चुभने लगी है, अमेरिका ने गुरुवार को यूरोप में अपनी सेनाएं घटाकर एशिया में तैनाती बढ़ाने का रणनीतिक फैसला किया है। इसे लेकर अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो का कहना है कि भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के सामने चीन के बढ़ते खतरे को देखते हुए ही अमेरिका यूरोप में अपने सैनिक की तैनाती सही जगह पर करने जा रहा है। ऐसे में चीन की सरकार की मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने एक संपादकीय जारी किया है जिसमें भारत के अमेरिका के करीब जाने को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है।

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शीत युद्ध में एक पक्ष का चुनाव
बता दें कि फाइनेंशियल टाइम्स के एक कॉलम में ब्रैडमैन ने लिखा है कि भारत ने नए शीत युद्ध में एक पक्ष चुन लिया है, इसके साथ ही कहा कि यह चीन की मूर्खता है कि वह अपने प्रतिद्वंदी को अमेरिका के पाले में डाल रहा है, ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि चीन और भारत के बीच सीमा विवाद रातों-रात पैदा होने वाला मुद्दा नहीं है, उसमें लिखा गया कि एक वक्त था जब दोनों देशों के बीच तनाव एक बड़ा खतरा था। भारत उस वक्त में किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं हुआ, इसलिए यह तर्क झूठ है कि मौजूदा सीमा तनाव में भारत किसी एक गुट के साथ जाने के लिए मजबूर है।

ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि चीन की सीमा तनाव को एक युद्ध की तरफ ले जाने की कोई मंशा नहीं है, उन्होंने लिखा कि घाटी में भारतीय पक्ष के उकसावे के बाद ही संघर्ष शुरू हुआ था, यहां तक कि प्रधानमंत्री ने शिकार किया है कि भारतीय सीमा के भीतर किसी ने नहीं की।

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ताइवान  का दिया उदाहरण
ग्लोबल टाइम्स में आगे लिखा है कि रेत में जैसे लोगों ने अमेरिका के आकर्षण का कलश अनुमान लगाया है, हमने अमेरिका के हाथों में पड़े देशों और क्षेत्रों को सही से देखा है वह सभी अमेरिका या उसके हितों के लिए काम करने के इच्छुक हैं इसमें चाहे ऑस्ट्रेलिया हो कनाडा हो या ताइवान द्वीप को लेकिन यार यह सभी देश या तो अपने ही तो का सौदा कर रहे हैं या फिर अपनी समझो संप्रभुता अमेरिका के हाथों में गवा रहे हैं।

ग्लोबल टाइम्स ने ताइवान का उदाहरण देते हुए कहा कि ताइवान के मामले में संप्रभुता की बात की ही करना बेकार है क्योंकि उसके सारे हित अमेरिका के नियंत्रण में है वह चाहे या ना चाहे उन्हें अमेरिका के इशारों पर नाचना पड़ता है क्या लिखा कि यह कल्पना करना मुश्किल है कि कोई वैश्विक महा ताकत अमेरिका के हाथों में रहना पसंद करेगी भारत की यह एक विशेषता है कि वह अपनी कूटनीतिक स्वतंत्रता काम रखना चाहता है।

 

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