नई दिल्ली/टीम डिजिटल। केंद्र की मोदी सरकार के शीर्ष विधि अधिकारी एटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि राजद्रोह के दंडात्मक प्रावधान को बनाये रखने की आवश्यकता है और इसका दुरुपयोग रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी किये जा सकते हैं। ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ करने के आरोप में लोकसभा की निर्दलीय सांसद के खिलाफ महाराष्ट्र में इस प्रावधान के इस्तेमाल की हालिया घटना का उल्लेख करते हुए वेणुगोपाल ने प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि केदारनाथ सिंह मामले में पांच न्यायाधीशों की पीठ के 1962 के फैसले पर बड़ी पीठ द्वारा पुर्निवचार की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘मेरे हिसाब से यह फैसला इस मामले में अंतिम शब्द है।’’
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पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल थे। वेणुगोपाल ने कहा, ‘‘देश में हो क्या रहा है....कुछ लोगों को इस धारा के तहत सिर्फ इसलिए हिरासत में लिया गया है कि वे ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ करना चाहते थे। इसके (प्रावधान के) दुरुपयोग को दिशानिर्देश जारी करके रोका जा सकता है। (लेकिन) केदारनाथ मामले में फैसले को वृहद पीठ को सौंपना आवश्यक नहीं है। यह सुविचारित फैसला है।’’ शीर्ष अदालत उपनिवेशकालीन दंडात्मक कानून की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं की संयुक्त सुनवाई कर रही थी कि क्या इसे वृहद पीठ को सौंपा जा सकता है या मौजूदा तीन सदस्यीय पीठ इस प्रश्न पर विचार कर सकती है।
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केदारनाथ सिंह मामले में 1962 में पांच-सदस्यीय पीठ ने दुरुपयोग के दायरे को सीमित करने का प्रयास करते हुए राजद्रोह कानून की वैधता बरकरार रखी थी। उस फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि जब तक उकसावे की कार्रवाई नहीं होती या हिंसा का आह्वान नहीं किया जाता, तब तक सरकार की आलोचना को राजद्रोह का अपराध नहीं माना जा सकता।
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वेणुगोपाल इस मामले में व्यक्तिगत क्षमता से पीठ की मदद कर रहे हैं, न कि केंद्र सरकार के शीर्ष विधि के अधिकारी के तौर पर। उन्होंने कहा कि 1962 का यह फैसला संतुलित निर्णय है, जो बोलने की आजादी और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन बनाता है। पीठ ने अंत में कहा कि वह याचिकाओं में उठाये गये कानूनी सवाल पर 10 मई को बहस सुनेगी। इसके साथ ही न्यायालय ने केंद्र सरकार को इस मामले में सोमवार तक अपना जवाब सौंपने का निर्देश दिया।
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