नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। केंद्र की मोदी सरकार ने राज्यों के बजट से इतर (ऑफ बजट) लिये गये कर्ज के समायोजन को लेकर नियमों में ढील दी है। इसके तहत पिछले वित्त वर्ष की इस प्रकार की देनदारी को अगले चार साल यानी मार्च, 2026 तक उनकी कर्ज सीमा में समायोजित किया जा सकता है। इस कदम से राज्यों के पास संसाधनों की उपलब्धता बढ़ेगी और वे चालू वित्त वर्ष में पूंजीगत व्यय के वित्तपोषण में उसका उपयोग कर सकेंगे। केंद्र ने राज्यों के वित्त में पारदर्शिता लाने के लिये मार्च में उन्हें सूचित किया था कि बजट से इतर कर्ज को राज्यों के अपने ऋण के बराबर किया जाना है। वित्त वर्ष 2020-21 और 2021-22 में सरकारों द्वारा जुटाये गये ऐसे किसी भी कोष को कर्ज सीमा के बाहर समायोजित करने की आवश्यकता होगी। ‘ऑफ बजट’ उधारी से आशय ऐसे ऋण से है जो राज्य सरकार की इकाइयां, विशेष उद्देश्यीय इकाई आदि लेती हैं। इसमें मूल राशि और ब्याज का भुगतान कर्ज लेने वाली इकाइयों को प्राप्त होने वाले राजस्व के बजाय राज्य सरकार के अपने बजट से किया जाता है।
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इस प्रकार का कर्ज राज्यों के लिये वित्त वर्ष में निर्धारित शुद्ध ऋण सीमा से बाहर होता है। यह कर्ज सरकारी स्वामित्व वाली इकाइयां या सांविधिक निकाय लेते हैं, अत: यह राज्य के बजट से इतर होता है। लेकिन कर्ज लौटाने की जिम्मेदारी राज्यों की होती है और ऐसे में उनके राजस्व तथा राजकोषीय घाटे पर प्रतिकूल असर पड़ता है। ऐसे कर्ज की मात्रा के कारण चालू वित्त वर्ष में कई राज्यों को कर्ज सीमा को लेकर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इसको देखते हुए वित्त मंत्रालय ने नियमों में ढील दी है। मंत्रालय ने कहा कि राज्यों द्वारा 2020-21 तक बजट से इतर लिये गये कर्ज का समायोजन नहीं हो सकता। केवल 2021-22 में लिये गये कर्ज का चार साल यानी मार्च, 2026 तक समायोजन हो सकता है।
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वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले व्यय विभाग ने कहा, ‘‘कुछ राज्यों के बजट से इतर लिये गये कर्ज की मात्रा और राज्यों की तरफ से जतायी गयी समस्याओं को देखते हुए यह निर्णय किया गया है कि 2020-21 तक लिये गये बजट से इतर कर्ज का समायोजन नहीं हो सकता। केवल वित्त वर्ष 2021-22 में लिये गये इस प्रकार के ऋण का समायोजन चार साल (2022-23 से 2025-26) तक हो सकता है।’’ नियमों के तहत राज्य सरकारों को वित्त वर्ष के लिये तय कर्ज सीमा से ऊपर उधारी को लेकर केंद्र की मंजूरी की जरूरत होती है।
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उल्लेखनीय है कि पिछले दो साल में कई राज्यों ने अपने पूंजीगत व्यय के वित्तपोषण के लिये बजट से इतर कर्ज का सहारा लिया है और इसके माध्यम से कोविड-19 के कारण उत्पन्न आर्थिक नरमी के प्रभाव को कम किया। इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के मुख्य अर्थशास्त्री डी के पंत ने कहा कि वित्त वर्ष 2020-21 और 2021-22 में लिये गये बजट से अलग कर्ज को यदि समायोजित कर दिया जाता, तो कुछ राज्यों को संसाधनों की भारी कमी से जूझना पड़ता। पंत ने कहा, ‘‘जिन मामलों में राज्य के बजट से मूल राशि और ब्याज लौटाया गया है, उनमें बजट से अलग लिये गये कर्ज के समायोजन को टाले जाने का निर्णय अच्छा है। इससे राज्यों को अपने विकास एजेंडा को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी...।’’
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इक्रा की प्रधान अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि बजट से इतर कर्ज को लेकर नियमों में बदलाव से कुछ राज्यों को बड़ी राहत मिलेगी और वे चालू वित्त वर्ष में अतिरिक्त कर्ज ले सकेंगे। क्रिसिल रेटिंग्स के अध्ययन के अनुसार बजट या बही- खाते से इतर राज्यों द्वारा 2021-22 में लिया गया कर्ज सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के उच्चस्तर 4.5 प्रतिशत या 7.9 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया है। क्रिसिल के 11 राज्यों के अध्ययन में कहा गया है कि यह 2019-20 के मुकाबले एक प्रतिशत अधिक है।
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