नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि उत्तराखंड में जोशीमठ में जमीन धंसने की त्रासदी को केंद्र सरकार को राष्ट्रीय आपदा घोषित करना चाहिए तथा रेलवे एवं अन्य परियोजनाओं के कार्यों को उचित अध्ययन के बाद ही चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ाने की मंजूरी प्रदान करनी चाहिए। पार्टी के मीडिया एवं प्रचार प्रमुख पवन खेड़ा ने यह आरोप लगाया कि जोशीमठ की त्रासदी की खबरें पहले से आ रही थीं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र एवं उत्तराखंड की ‘डबल इंजन' की सरकार बहुत देर से जागीं।
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उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘यह अति गंभीर विषय है और मोदी सरकार केवल एक कमेटी बनाकर अपना पल्ला झाड़ नहीं सकती। हमारा देवस्थल जोशीमठ मानव निर्मित कारणों से धंस रहा है। खबरें 3 जनवरी से आ रही हैं। पर "डबल इंजन" भाजपा सरकार, खासकर केंद्र की मोदी सरकार बहुत बाद में जागी है - वो भी केवल खानापूर्ति के लिए।'' खेड़ा ने यह भी कहा, ‘‘जोशीमठ में 610 घरों में दरारें आईं हैं, जिसमें से कुछ ही विस्थापितों को अलग शेल्टर दिया गया है और केवल 5000 रुपये का मुआवज़ा दिया गया है।''
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कांग्रेस के उत्तराखंड प्रभारी देवेंद्र यादव ने कहा, ‘‘स्थानीय लोग एनटीपीसी के तपोवन विष्णुगढ़ पनबिजली संयंत्र के अंतर्गत बन रहे एक सुरंग को इसके लिए ज़िम्मेदार मान रहे हैं। पर एनटीपीसी ने इसको ख़ारिज किया है और आईआईटी-रुड़की, जीएसआई, आदि संस्थानों ने इसपर कोई प्रतिक्रिया अभी तक व्यक्त नहीं की है। जोशीमठ के धंसने के विशेषज्ञों और पर्यावरणविद द्वारा कई कारण बताये जा रहे हैं।'' उन्होंने दावा किया, ‘‘अनियोजित बंदोबस्त और पानी के रिसाव के कारण कोई जल निकासी प्रणाली नहीं होने से असर क्षमता में और कमी आई है। मोदी सरकार की चारधाम रेल परियोजना, जिसकी आधारशिला तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने मई 2017 में रखी थी और उसका निर्माण कार्य शुरू हो चुका है। पहाड़ों की ढलान लगभग खड़ी कर दी गई है और वहन क्षमता के साथ-साथ पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों की अवहेलना की जा रही है।''
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यादव ने कहा, ‘‘मोदी सरकार इस त्रासदी को राष्ट्रीय आपदा घोषित करे। जोशीमठ शहर के विस्थापितों की मुआवज़ा राशि प्रधानमंत्री राहत कोष से दी जाये और प्रत्येक परिवार को राज्य सरकार 5000 रुपये दे, पर मोदी सरकार भी उचित मुआवज़ा दे। '' उन्होंने यह आग्रह भी किया, ‘‘इस मानव निर्मित आपदा के लिए ज़िम्मेदार सुरंग को बंद किया जाए और जो बंद की गईं लोहारीनाग-पाला और पाला-मनेरी परियोजना की सुरंगें हैं, उनको भरने का कार्य उचित अध्यन के बाद तत्काल प्रभाव से शुरू किया जाए। रेलवे का कोई भी कार्य, जिसमें पर्वतीय आपदा का ख़तरा हो, उसे बंद किया जाए। उसका गहरा अध्ययन कर ही कार्यों को चरणबद्ध तरीके से मंज़ूरी दी जाए।''
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