Tuesday, Dec 05, 2023
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माह ए रमजानः शेयरिंग और केयरिंग के साथ इंसानियत का पैगाम

  • Updated on 4/11/2022

नई दिल्ली/आशुतोष त्रिपाठी। ऊपर वाले की इबादत करने का पाक महीना है रमजान। यूं तो मुस्लिम समाज के बीच रोजे रखने को लेकर और भी कई रवायतें हैं। मगर जिस तरह से पाक रमाजन में रोजे रखे जाते हैं और इस दौरान दीन दुखियों का ख्याल रखा जाता है। सभी की इफ्तारी के बारे में सोचा जाता है। जकात की परंपरा को निभाया जाता है यह अपने आप में दो बड़े संदेश को प्रैक्टिकल के रूप में सबके सामने लाता है।

माह ए रमजान की पाक रौनक

एक नजीर की तरह काम करता है रमजान
एक नजीर की तरह काम करता है रमजान। जिस तरह से रोजे रखने के दौरान केवल और केवल खुदा की इबादत के बारे में सोची जाती है और लोगों की मदद करने की कोशिश हर लम्हा की जाती है, उससे खुदा के  बंदों में नेकी पैदा होती है। एक महीने तक ऐसा करने से जिस किसी के मन में बुरे ख्याल होते हैं, वह खत्म हो जाते हैं। एक तरह से रमजान का महीना लोगों को अहसास दिलाता है कि सभी की मदद करनी चाहिए और कभी किसी का बुरा नहीं करना चाहिए।

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गरीबों को रोजे के वक्त बांटना चाहिए जरूरत की वस्तुएं 
गलत काम नहीं करने चाहिए। इसी तरह रोजे के दौरान इफ्तारी करते समय सभी को साथ लेकर कुछ खाया-पिया जाता है। यह बात शेयरिंग का बड़ा संदेश फैलाती है कि जो कुछ हो उसे आपस में बांटना चाहिए। इसी तरह जो गरीब हैं, उनको रोजे के दौरान खाने-पीने की चीजों के साथ जरूरत की अन्य वस्तुएं भी देने का चलन है। ऐसा करने से केयरिंग की भावना लोगों में जागृत होती है। ऐसे में जब लोग एक-दूसरे के बारे में सोचते हैं तो खुद ब खुद इंसानियत का पैगाम फैलता है।  

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