नई दिल्ली/कुमार आलोक भास्कर। गणतंत्र दिवस के दिन लालकिला लहूलुहान हुआ तो आखिर किसके लिये? दिल्ली के बीचोबीच आईटीओ में आंदोलनकारी ट्रैक्टर स्टंट करके आखिर क्या संदेश देना चाह रहे थे? देश की आन-बान शान को धूमिल करके आखिर कौन-सी जीत का जश्न मना रहे थे उपद्रवकारी? किसान आंदोलन की आड़ में दिल्ली में नंगा नाच के लिये आखिर कौन है जिम्मेदार? पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को आखिर क्यों नहीं कटघरे में खड़ा किया जाए? राकेश टिकेत,योगेंद्र यादव आदि अगुए नेताओं की अब तक क्यों नहीं हुई गिरफ्तारी? आखिर दिल्ली पुलिस से कहां हुई चूक?
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अनेक सवालों ने लोगों को झकझोरा
यह तमाम सवाल आज हर भारतवासियों को भीतर से झकझोर दिया है। यहीं नहीं आंखो में गुस्सा,मन में आक्रोश,किसान आंदोलन से जुड़े नेताओं से नफरत,उपद्रवकारियों को जल्द से जल्द सलाखों के पीछे देखने की चाह- आज ऐसा ही क्रोध हर देशवासियों के दिमाग में कौंध रहा है।
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जब राजपथ पर सेना दिखा रहे थे शोर्य... तब
दिल्ली में गणतंत्र दिवस के दिन देश के गोरव लालकिला के प्राचीर पर जिस तरह से निशान साहिब का झंडा फहराया गया,उससे हर भारतवासियों का सर शर्म से झुक गया है। यहीं नहीं राजपथ से कुछेक किमी दूर आईटीओ में उस समय आंदोलनकारियों ने तांडव मचाया जब इंडिया गेट के पास सेना के शोर्य और करतब को देश ही नहीं दुनिया के तमाम समर्थक और दुश्मन देश समेत आमजन सुबह-सुबह अपने-अपने टीवी पर देख ही रहे थे। कि तभी टीवी पर वो तस्वीर आने लगी जिसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की होगी।
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मोदी-शाह से जवाब चाहता है देश
देश के गौरव के साथ खिलवाड़ हुआ, वहीं लालकिले की प्राचीर पर झंडा तब फहराया गया जब मोदी-शाह को बीजेपी मजबूत नेतृत्व कहते हुए नहीं थकती है। आखिर अमित शाह को इस्तीफा क्यों नहीं देनी चाहिये? यह भी बहुत बड़ा सवाल है। विपक्ष को नरेंद्र मोदी के 56 इंच के सीने पर फिर से हमला करने का एक अवसर मिल ही गया। तो इसके लिये सीधे तौर पर पीएम नरेंद्र मोदी की अदूरदर्शिता ही जिम्मेदार है।
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आखिर क्यों बंधे थे दिल्ली पुलिस के हाथ
ऐसे माहौल में जब देश भर के लोगों में गुस्सा है कोई अगर-मगर नहीं चलेगा। 26 जनवरी के दिन दिल्ली पुलिस उत्पातियों से दो-दो हाथ करने वक्त हर मोर्चे पर बैकफुट पर ही नजर आई,आखिर क्यों? किसके इशारे पर दिल्ली पुलिस के हाथ बंधे हुए थे- आज इसका जवाब देश चाहता है। अगर इस दिल्ली पुलिस को फ्री हेंड दिया जाता तो किसी को भी शक-सूबा नहीं है कि दो घंटे बीतते-बीतते उपद्रवकारियों पर कंट्रोल हो जाता। लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ।
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इंटेलिजेंस इनपुट की हुई अनदेखी
पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को जवाब देना चाहिये कि जब इंटेलिजेंस इनपुट ट्रैक्टर परेड के खिलाफ था,तब क्यों हरी झंडी दी गई? अगर इस ट्रैक्टर रैली में 50 ट्रैक्टरों को निकालने की इजाजत दी जाती तो इस खौफनाक मंजर से बचा जा सकता था। दिल्ली पुलिस के 37 शर्तों में से यह शर्त क्यों गायब रही?
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सीमित संख्या में ट्रैक्टर परेड की इजाजत होती तो...
सवाल उठता है कि कहीं मोदी-शाह अपने हार्ड कोर की छवि से निकलने के लिये छटपटा रहे है,जिस कारण किसानों की ट्रैक्टर परेड की मांग स्वीकार कर लिया। क्या मोदी-शाह को लगने लगा कि किसानों के साथ सख्ती दिखाई तो इसका उल्टा परिणाम देखने को मिल सकता? अलग-अलग राज्यों में आने वाले महीनों में विधानसभा चुनाव में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता? क्या बीजेपी के द्वय नेता किसी दवाब के सामने झुक गए? अगर वो झुके तो कम से कम ट्रैक्टर परेड दिल्ली से सटे बाहरी इलाके में 26 जनवरी के बाद निकालने की इजाजत दे देते तो इस देश पर बहुत बड़ी मेहरबानी हो जाती। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। पीएम नरेंद्र मोदी के शासनकाल में वो दाग लग गया जो उनके मजबूत छवि और पिछले 7 साल के बेहतरीन शासनकाल को धूमिल करने के लिये काफी है।
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मोदी सरकार को करना होगा डेमेज कंट्रौल
केंद्र सरकार को चाहिये कि तत्काल डैमेज कंट्रोल किया जाना समय की मांग है। जिस पर खरा उतरना होगा। उन तार को जोड़ना होगा जो किसान आंदोलन की आड़ में देश में उपद्रव फैलाना चाहते है। उन नेताओं की पहचान सुनिश्चित करनी होगी जिन्होंने किसान आंदोलन को भड़काने के लिये देश के कानून के साथ भद्दा मजाक किया। उन लोगों को सलाखों के पीछे भेजना होगा जो देश को कलंकित किया है।
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