Friday, Sep 29, 2023
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narendra singh tomar said we talked the most before making the farm laws pragnt

कानून बनाने से पहले हमने सबसे बात की: नरेंद्र सिंह तोमर

  • Updated on 12/14/2020

नई दिल्ली/अकु श्रीवास्तव। केंद्रीय कृषि कानूनों (Farm Laws) के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन के बीच मोदी मंत्रिमंडल का एक शख्स इन दिनों चर्चा में है, वह हैं केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar)। तोमर किसानों से कई दौर की वार्ता कर चुके हैं और आगे भी उन्हें मनाने, समझाने में जुटे हैं। किसान अपनी मांग पर अड़े हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर किसानों को लिखित आश्वासन देने के प्रस्ताव के साथ तोमर आश्वस्त कर चुके हैं कि एपीएमसी को कतई कमजोर नहीं होने दिया जाएगा। सरकार इसके लिए सभी प्रावधान करने को तैयार है। इन तीनों कानूनों और किसान आंदोलन को लेकर उठ रहे तमाम सवालों पर नरेंद्र सिंह तोमर ने नवोदय टाइम्स/पंजाब केसरी/जगबानी के लिए अकु श्रीवास्तव से विशेष बातचीत में अपने विचार रखे। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश:

कृषि मंत्री ने नए कानून को बताया किसान हितैषी, कहा- आंदोलनकारियों की तरफ से सुझाव नहीं आए

कहा जा रहा है कि बिना किसी बातचीत, चर्चा के सरकार एकतरफा कानून लेकर आ गई, कितनी सच्चाई है?
मैं समझता हूं कि इस बात में सच्चाई नहीं है। जो कानून बनाए गए हैं, उस पर लगातार देश में विचार-विमर्श हुआ है। स्वामीनाथन कमेटी ने भी देशभर के अनेक किसान यूनियन, किसानों, कृषि विद्वानों और कृषि विपणन और विश्वविद्यालयों के साथ ही बड़ी मात्रा में कंसल्टेशन का काम किया। फिर नेशनल फारमर कमीशन बना। इस कमीशन ने कंसल्टेशन किया। उनकी भी सिफारिश इसी प्रकार की आई। इसके बाद महाराष्ट्र के कृषि मंत्री की अध्यक्षता में दस राज्यों के कृषि मंत्रियों की कमेटी बनी। उसने कंसल्टेशन किया। उनकी भी इसी तरह की सिफारिश आई।

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यूपीए सरकार के समय भूपेंद्र सिंह हुड्डा जी की अध्यक्षता में एक कमेटी मुख्यमंत्रियों की बनी, जिसमें 4-5 सीएम थे। उनकी भी इसी तरह की सिफारिश आई। मोदी जी के सरकार में आने के बाद नीति आयोग की मुख्यमंत्रियों की उच्चाधिकार प्राप्त समिति बनी। उसकी भी सिफारिशें इसी तरह की आईं। इसके पहले यूपीए सरकार में शरद पवार जी जब कृषि मंत्री थे, एक मॉडल एपीएमसी एक्ट बनाकर राज्यों को भेजा गया था और प्रयास किया गया था कि राज्य उसे मान लें। हम लोगों ने भी उसी को आगे बढ़ाने का काम किया। कंसल्टेशन इसके पीछे काफी हुआ है। लेकिन करोड़ों की आबादी वाला देश है। सभी से तो कंसल्टेशन संभव नहीं है। इसलिए कोई भी कह सकता है कि हमसे कंसल्टेशन नहीं हुआ। 

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बकौल आप, किसानों से बात हुई, तो विपक्ष अब विरोध में क्यों?
मैं आपके माध्यम से राजनैतिक दलों के नेताओं से कहना चाहता हूं कि किसानों के नाम पर सियासत न करें। देशभर में आपको अगर मंच चाहिए और आपको बिलों पर विरोध करना है तो आप स्वतंत्र हैं, सरकार आपके विरोध का जवाब देने के लिए स्वतंत्र है। किसान हमारे देश की रीढ़ है। किसान फायदे में आए, इसकी व्यवस्था सबको मिलकर करनी चाहिए। पहले कोशिश आप ने भी की, लेकिन छुद्र स्वार्थों के चलते सफल नहीं रहे। नरेंद्र मोदी की सरकार संकीर्णता से ऊपर उठकर देशहित में किसान, गांव, गरीब के हित को प्राथमिकता देती है। इसलिए मोदी जी यह कानून बनाने में सफल हुए। विपक्षी दल यह सोचते हैं कि मोदी की छवि खराब कर दें। चुनाव लड़कर मैदान में वे नरेंद्र मोदी का कुछ बिगाड़ नहीं पा रहे हैं। इससे उनका मंसूबा पूरा नहीं होगा।

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यह बात को बेमानी है कि विपक्ष राजनीति न करे। विपक्ष तो राजनीति करेगा ही, सरकार काउंटर के लिए क्या कर रही है?
धन्यवाद देना चाहूंगा देश की मीडिया को, जिन्होंने खुलासा किया। चाहे वामपंथी दल हों, चाहे नक्सलवाद से जुड़े लोग हों, चाहे राजनीतिक दल से संरक्षण प्राप्त लोग हों। ये सब मिल कर इस किसान आंदोलन को प्रभावित कर रहे हैं और मीडिया ने इसे उजागर किया है। मैंने भी कल किसानों को धन्यवाद दिया कि वे अनुशासन से अपना आंदोलन चलाने में सफल रहे। आगे भी यह बना रहे और इस प्रकार के जो तत्व हैं, जो राजनीतिक मंसूबों को किसान आंदोलन की आड़ में साधने में लगे हैं, उनसे किसान यूनियन्स सावधान रहें।

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एमएसपी को लेकर किसानों की सीधी मांग है। आप भी कह रहे हैं कि एमएसपी बना रहेगा। तो दोनों में अंतर क्या है?
देश में हर चीज के लिए कानून नहीं बनता। कुछ ऐसी चीजें होती हैं, जिनके लिए कानून अनिवार्य होता है। कुछ विषय ऐसे होते हैं जो नियमों के माध्यम से चलते हैं और कुछ विषय भारत सरकार के प्रशासकीय निर्णय से चलते हैं। एमएसपी कानून का अंग पहले भी नहीं थी और नए कानूनों से भी इसका कोई लेना-देना नहीं है। एमएसपी जारी रहेगी, लोकसभा, राज्यसभा के फ्लोर पर मैंने भी कहा है और प्रधानमंत्री जी ने भी देश को आश्वस्त किया है। इस पर किसी को कोई आशंका नहीं होनी चाहिए। मैं फिर आपके जरिए किसानों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि एमएसपी पर खरीद जिस प्रकार से होती रही है, वही व्यवस्था बनी रहेगी। इसमें किसी भी प्रकार की शंका की गुंजाइश नहीं है।

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कहां पेंच है जो आप किसानों को समझा नहीं पा रहे हैं ? पंजाब के अलावा देश के बाकी किसान इसका फायदा क्यों नहीं ले पा रहे हैं?
पंजाब के अलावा पूरे देश में कहीं भी इन कानूनों को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं हैं। देशभर के किसान, तमाम यूनियन, प्रगतिशील किसानों ने मुझे फोन किया है कि इन कानूनों के समर्थन में दिल्ली आना चाहते हैं। मुझसे समय मांगा, लेकिन मैंने मना कर दिया। मैं इस पक्ष में नहीं कि किसानों का आपस में तनाव बढ़े। पंजाब के किसानों में एपीएमसी को लेकर भ्रम था। इसी से एमएसपी को जोड़ दिया गया। अगर किसान चाहते हैं तो राज्य सरकार को अधिकृत कर दिया जाएगा। निजी ट्रेडर्स का रजिस्ट्रेशन करेंगेे।

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बिहार-यूपी के किसान कह रहे हैं कि उनकी फसल एमएसपी पर नहीं बिकती। इससे कैसे निपटा जा रहा है?
जो राज्य एमएसपी पर खरीद की व्यवस्था करते हैं, केंद्र सरकार वहां खरीद करती है। केंद्र सरकार ने एमएसपी डेढ़ गुना किया है। पंजाब के किसानों से इस बार पहले से भी 25 फीसद ज्यादा धान की खरीद हुई है। रबी की फसल की भी एमएसपी घोषित की गई है। बाकी देश में राज्य सरकारें जहां चाहती हैं, एमएसपी पर खरीद होती है।

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वह कौन सा बिंदु है, जो वार्ता को किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचने दे रहा है?
हम कहीं भी फंस नहीं रहे हैं। यूनियन्स की संख्या ज्यादा है। बीच में प्रयास हुआ कि सीमित लोगों का ग्रुप बने। जो क्लाज-बाई-क्लाज चर्चा करे। लेकिन आपस में अविश्वास इतना ज्यादा था कि वह संभव नहीं हो पाया। फिर मैंने सभी के साथ वार्ता की पहल की। कई दौर की वार्ता हुई। किसान यूनियन के लोग निश्चित बिंदु तक नहीं पहुंच पाए तो 3 दिसम्बर को मैंने कहा कि चर्चा में जो चिंताएं दिखी हैं, उन्हें चिह्नित करने की कोशिश करता हूं। चिह्नित करके लिखित में प्रस्ताव भेजा। साथ में कहा कि आपको लगे कि इसमें कोई बिंदु रह गया है तो उसे जुड़वाएं। उसी दिन मैंने कहा कि एपीएमसी कमजोर नहीं होने देंगे।

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आंदोलन के बीच में कुछ और तत्व सामने आ गए, जो किसानों को लचीला रुख अपनाने नहीं दे रहे हैं। कितनी सच्चाई है इसमें?
यह बात निश्चित रूप से सही प्रतीत हो रही है। यद्यपि पहले हम किसान यूनियन्स से बात कर रहे थे। मैंने बहुत ही खुले मन से कई दौर की वार्ता उनके साथ की। उस समय भी मेरे मन में आया था कि चेहरा तो किसान का है, लेकिन किसान हित में कोई निर्णय नहीं होने देना चाहते।

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