नई दिल्ली/टीम डिजिटल। केंद्र के नये कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलनरत किसानों को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) द्वारा समर्थन देने के बाद भाजपा लोगों को‘‘भ्रमित‘’करने के लिए पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के पत्रों को प्रसारित कर रही है यह बात सोमवार को राकांपा ने कही। कांग्रेस नीत संप्रग सरकार में कृषि मंत्री रहे पवार के पत्र विवाद का स्रोत बन गए हैं,क्योंकि रांकपा अध्यक्ष पर निशाना साधने के लिए भाजपा उनका इस्तेमाल कर रही। राकांपा ने नये कृषि कानूनों का विरोध करते हुए किसानों के आंदोलन का समर्थन किया है।
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पवार का समर्थन करते हुए राकांपा ने कहा कि कृषि मंत्री के तौर पर उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के मॉडल एपीएमसी कानून को लागू करने के लिए कई ‘अनिच्छुक’ राज्यों को मनाया था। मुंबई में राकांपा के प्रवक्ता और महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक ने कहा कि कृषि मंत्री रहते हुए पवार ने आम सहमति से निर्णय लिए और उन्हें कभी भी राज्यों पर लादा नहीं। मलिक ने आरोप लगाए कि दूसरी तरफ मोदी सरकार तानाशाही रवैये से काम कर रही है और राज्यों पर कृषि कानून ‘‘लाद’’ रही है।
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उन्होंने कहा कि राकांपा ने जब किसान आंदोलन का समर्थन किया तब भाजपा के लोगों ने कुछ पत्र प्रसारित किए जिसमें दावा किया कि पवार साहेब ने खुद ही निजीकरण को प्रोत्साहित किया था। मलिक ने कहा कि भाजपा के लोगों का मानना है कि किसान सरकार के लिए दिक्कतें पैदा कर सकते हैं। इसलिए, लोगों को गुमराह करने के लिए कुछ पत्र प्रसारित किए जा रहे हैं। महाराष्ट्र के मंत्री ने कहा कि लोगों का मानना है कि भाजपा किसानों की पार्टी नहीं है बल्कि उन लोगों की पार्टी है जोा कृषि उत्पादों को लूटते हैं।
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मलिक ने कहा कि राकांपा के कार्यकर्ता मंगलवार को ‘भारत बंद’ में शामिल होंगे। राकांपा प्रमुख जयंत पाटिल ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा है कि कोविड-19 को देखते हुए सामाजिक दूरी का पालन कर प्रदर्शन में शामिल हों। इससे पहले दिन में राकांपा के प्रवक्ता महेश तपासे ने कहा कि सरकार के सूत्रों ने केंद्रीय मंत्री के तौर पर पवार द्वारा इस संबंध में कई मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र का अंश साझा किया। तपासे ने कहा, ‘‘आदर्श कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) अधिनियम, 2003 को वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने शुरू किया था। उस वक्त कई राज्य सरकारें इसे लागू नहीं करना चाहती थीं।’’
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तपासे ने एक बयान में कहा, ‘‘केंद्रीय कृषि मंत्री के तौर पर कार्यभार संभालने के बाद पवार ने राज्यों के कृषि विपणन बोर्डों के साथ व्यापक सहमति बनाने की कोशिश की और कानून को लागू करने के लिए उनसे सुझाव मांगे।’’ तपासे ने कहा, ‘‘एपीएमसी काननू के प्रारूप के अनुसार किसानों को होने वाले फायदे के बारे में उन्होंने (पवार ने) कई राज्य सरकारों को अवगत कराया, जिसे लागू करने पर वे सहमत हुए। कानून के लागू होने से देशभर के किसानों को लाभ हो रहा है। किसानों के हितों की रक्षा के लिए पवार ने इस कानून में कुछ बदलाव किया था।’’
तपासे ने कहा कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा लाए गए नये कृषि कानून ने संदेह पैदा किया है और इसने न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसे मुद्दों के संबंध में किसानों के मन में असुरक्षा का भाव पैदा किया है। उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार इस नये कृषि कानून में अन्य कई मुद्दों का समाधान करने में नाकाम रही है, जिसके कारण इतने बड़े पैमाने पर देश भर के किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। केंद्र सरकार व्यापक सहमति नहीं बना सकी और किसानों तथा विपक्ष की जायज आशंकाओं को दूर करने में नाकाम रही।’’
नागपुर में राकांपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि उनकी पार्टी ने संसद में नये कृषि कानूनों का समर्थन नहीं किया था और इन्हें बिना किसी चर्चा के पेश किया गया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा पेश तीनों नये कानूनों पर किसी के साथ चर्चा नहीं की गई थी और ये किसानों के हित में नहीं है।
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उन्होंने कहा कि एपीएमसी या न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को लेकर नये कानून में कोई स्पष्टता नहीं है। नुकसान होने या निजी कंपनियों या कारोबारियों द्वारा अनुबंध का पालन नहीं होने पर किसान को न्याय पाने के लिए क्या करना होगा, इस बारे में भी स्पष्टता नहीं है। संसद में विधेयक पारित किए जाने के दौरान राकांपा के अनुपस्थित रहने के बारे में पूछे गए सवाल पर पटेल ने कहा, ‘‘उस समय भी हमने कहा था कि विधेयकों को जल्दबाजी में लाया गया है।’’
किसानों के विरोध प्रदर्शनों को पवार द्वारा समर्थन दिए जाने के बाद सरकार के सूत्रों ने रविवार को कहा था कि संप्रग के नेतृत्व वाली सरकार में कृषि मंत्री रहते हुए पवार ने मुख्यमंत्रियों को अपने-अपने राज्यों में एपीएमसी कानून लागू करने के लिए कहा था ताकि इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके। किसानों के मौजूदा प्रदर्शन को लेकर पवार नौ दिसंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात करने वाले हैं। किसानों के संगठनों ने आठ दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया है जिसका विपक्षी दलों के साथ राकांपा ने समर्थन किया है।
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