नई दिल्ली/ आशुतोष त्रिपाठी। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के साथ बुधवार से भारतीय नव संवत्सर का शुभारंभ हो रहा है। सनातनी नव वर्ष शुरू होने के साथ ही आकाशीय मंत्रिमंडल में राजा, मंत्री सहित दस विभागों का दायित्व अलग-अलग ग्रहों को मिल गया है।
शुभ संयोग है कि राजा का पद बुध को और मंत्री का पद शुक्र को मिला है। यह दोनों ग्रह नैसर्गिक मित्र हैं। दो परम मित्रों का यह मेल आकाशीय मंत्रिमंडल में बड़ा कमाल करेगा। ज्योतिष विशेषज्ञ वर्षफल में इस बात को प्रमुखता से कह रहे हैं। नवीन संवत्सर के लिए शुभ संयोग यह भी है कि आकाशीय मंत्री परिषद में राजा, मंत्री सहित दस विभागों में 8 पर शुभ ग्रहों की सत्ता है।
नव संवत्सर का राजा बुध है। इस प्रभाव से गणित, विज्ञान, कला, मनोरंजन, शिल्प, साहित्य एवं भाषा के क्षेत्र में अच्छा काम होगा। इन क्षेत्रों में सक्रिय लोगों को भी इसका लाभ मिलेगा। उद्योगपतियों और व्यापारियों को भी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लाभ मिलेगा।
मंत्री पद पर शुक्र के होने के कारण फिल्म, सौंदर्य के क्षेत्र में विशेष कार्य होंगे। सौहार्द और प्रेम का वातावरण बनेगा। महिला समाज की उन्नति होगी। अर्थ के क्षेत्र में भी बेहतर परिणाम सामने आएंगे। महावीर पंचांग के संपादक पंडित रामेश्वर नाथ ओझा ने बताया कि बुध और शुक्र की जोड़ी सदा शुभ रहती है। इसका प्रभाव नव संवत्सर में देखने को मिलेगा।
नव संवत्सर की ज्योतिषीय परिस्थिति में दो विभाग सस्येश व नीरशेष चंद्रमा हैं। यानी जल-पर्यावरण एवं कृषि के साथ धर्म का विभाग चंद्रमा के पास है। इन क्षेत्रों में अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे। इसी तरह दुर्गेश, फलेश और मेघेश गुरु हैं। ऐसे में गुरु के पास हार्टिकल्चर, संसाधन, सुरक्षा आदि विभाग हैं।
गुरु के प्रभाव से इन सब क्षेत्रों में बेहतर स्थितियां बनेंगी। रसेश बुध हैं। राजा होने के साथ बुध के पास खाद्य प्रसंस्करण विभाग है, परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में भी अच्छे परिणाम सामने आएंगे।
नव संवत्सर के प्रारंभ होने की स्थितियों के अनुसार वर्ष में वर्षा अधिक होगी। महंगाई में कमी आने की संभावना है। प्राणियों को अचानक आए संकट से दुख का सामना करना होगा। तनाव-संघर्ष की स्थिति भी समाज में बनेगी। प्राकृतिक आपदा-भूकंप, बाढ़ आदि का खतरा भी है।
नाम पर आएगा निर्णय
नव संवत्सर 2080 के नाम को लेकर पंडितों में मतांतर है। अधिकतर पंडित इसका नाम नल बता रहे हैं, जबकि कुछ पिंगल नाम दे रहे हैं। दरअसल संवत्सर 60 नामों की शृंखला है और एक के बाद एक नाम रखे जाते हैं।
लेकिन, कुछ पंचांग पंडित एक संवत्सर का लोप मान रहे हैं। ऐसे में विद्वानों के बीच चिंतन-मनन चल रहा है। काशी के विश्वनाथ मंदिर न्यास के स्तर पर भी इसको लेकर विचार चल रहा है। शीघ्र ही नाम पर निर्णय सामने आएगा। हालांकि, नाम से संवत्सर की ग्रह- नक्षत्र की स्थितियों का कोई संबंध नहीं है।
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