नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के प्रमुख जस्टिस (सेवानिवृत्त) अरुण कुमार मिश्रा ने मंगलवार को कहा कि सामाजिक सेवा संगठनों तथा मानवाधिकार के रक्षकों को राजनीतिक हिंसा और आतंकवाद की कड़ी निंदा करनी चाहिए, क्योंकि इस मुद्दे पर उदासीनता ‘‘कट्टरपंथ’’ को जन्म देती है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के स्थापना दिवस के मौके पर विज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में मिश्रा ने इस बात पर जोर दिया कि बाहरी ताकतों का भारत के खिलाफ मानवाधिकारों के उल्लंघन के झूठे आरोप लगाना बहुत आम हो गया है और इसका विरोध किया जाना चाहिए।
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पिछली सदी में वैश्विक स्तर पर राजनीतिक हिंसा में बड़ी संख्या में लोगों की जान जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश और विदेश में राजनीतिक हिंसा अब भी जारी है। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और अन्य गणमान्य लोग भी शामिल हुए। एनएचआरसी के प्रमुख ने कहा, ‘‘ भारत में ‘सर्वधर्म समभाव’ की भावना है। हरेक को मंदिर या मस्जिद या गिरजाघर बनाने की स्वतंत्रता है, लेकिन कई देशों में यह आजादी नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि मनुष्य मानवता को नष्ट करने पर आमादा है, 20वीं सदी में वैश्विक स्तर पर राजनीतिक ङ्क्षहसा के कारण बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई है। उन्होंने कहा, ‘‘ यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश-विदेश में आज भी राजनीतिक हिंसा समाप्त नहीं हुई है।’’
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एनएचआरसी के अध्यक्ष ने कहा, ‘‘निर्दोष लोगों के हत्यारों का महिमामंडन नहीं किया जा सकता। ऐसे...आतंकवादियों को स्वतंत्रता सेनानी कहना अनुचित है।’’ मिश्रा ने कहा, ‘‘ समाज सेवा संगठनों तथा मानवाधिकार के रक्षकों को राजनीतिक हिंसा और आतंकवाद की कड़ी निंदा करनी चाहिए। इस मुद्दे पर उदासीनता, कट्टरवाद को जन्म देती है और इसके लिए इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा।’’ उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि जब ‘‘ हमें इसका पुरजोर विरोध करना चाहिए’’ और कम से कम इस ङ्क्षहसा के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। उन्होंने अपने भाषण में यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर में शांतिपूर्ण स्थिति को बढ़ावा देने के लिए गृह मंत्री शाह के ‘‘अथक प्रयासों ने एक नए युग की शुरुआत की है।’’
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मिश्रा ने कहा कि भारत वैश्विक स्तर पर एक ताकतवर देश के रूप में उभरा है और इसे एक नई शक्ति के रूप में मान्यता मिली है, जिसका श्रेय भारत के लोगों, देश की संवैधानिक व्यवस्था और नेतृत्व को जाता है। उन्होंने कहा कि एनएचआरसी पिछले 28 वर्षों से काम कर रहा है, हालांकि कई शक्तिशाली देशों में अभी तक ऐसी संस्थाएं स्थापित नहीं हुई हैं। दुनिया की आबादी का लगभग छठा हिस्सा भारत में रहता है।
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भारत में एक लोकतांत्रिक प्रणाली है, जो हर मुद्दे को शांतिपूर्ण और वैध तरीके से हल करती है। मिश्रा ने कहा कि देश में प्रेस, मीडिया और साइबरस्पेस को आजादी दी गई है, जो संवैधानिक कर्तव्यों और मानवीय जिम्मेदारियों के तहत आता है। उन्होंने कहा, ‘‘ लेकिन गणतंत्र के मूल स्तंभ न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को तिरस्कारपूर्ण व्यवहार से नष्ट करने की किसी को भी स्वतंत्रता नहीं है और न ही किसी को यह स्वतंत्रता दी जानी चाहिए।’’
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