नई दिल्ली/टीम डिजिटल। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने बॉम्बे उच्च न्यायालय से कवि-कार्यकर्ता वरवर राव की ओर से दायर स्थायी मेडिकल जमानत याचिका को खारिज करने का अनुरोध किया है। जांच एजेंसी ने सोमवार को कहा कि वरवर राव के खिलाफ आरोप बहुत गंभीर हैं और यदि ये साबित हुए, तो उन्हें मौत की सजा हो सकती है। वरवर राव एल्गार परिषद माओवादी संपर्क मामले में आरोपी हैं। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने एनआईए की ओर से अदालत से कहा कि ऐसा लगता है कि 83 वर्षीय वरवर राव नियमित रूप से उम्र संबंधी दिक्कतों से जूझ रहे हैं। सिंह ने कहा है कि जांच एजेंसी इस बाबत एक सहमतिपत्र देने के लिए इच्छुक है कि जब भी जरूरत होगी, उन्हें जेल या सरकारी अस्पताल में जरूरी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।
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सिंह ने कहा, ‘‘यह एक बहुत-बहुत गंभीर अपराध है जिसका संबंध राष्ट्रीय सुरक्षा से है। इसके अलावा राव के खिलाफ लगे आरोप सर्वोच्च सजा मुत्युदंड का आधार बन सकते हैं। ’’राव को पिछले साल उच्च न्यायालय ने अस्थायी चिकित्सा जमानत दे दी थी। यह जमान उस चिकित्सा रिपोर्ट के आधार पर दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि राव को नियमित रूप से चिकित्सकीय देखभाल की जरूरत है।
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सिंह ने कहा कि अब वह अस्पताल से छुट्टी पाने के लिहाज से पूरी तरह स्वस्थ हैं, इसिलए स्थायी चिकित्सा जमानत देने का सवाल ही कहां उठता है? सिंह ने पूछा कि क्या इसका मतलब यह है कि जब तक पूरी सुनवाई पूरी नहीं हो जाती, तब तक राव लगातार जमानत पर रहेंगे? न्यायमूर्ति एसबी शुक्रे और न्यायमूर्ति एसएम मोदक की पीठ ने पाया कि विशेष परिस्थितियों में भारतीय दंड संहिता की धारा 437 स्थायी जमानत नहीं प्रदान करती, जिसमें किसी आरोपी का बीमार होना शामिल है। सिंह ने दलील दी कि सरकारी जेजे अस्पताल के चिकित्सक किसी भी बीमारी के इलाज में पूरी तरह सक्षम हैं और राव को वहां समुचित इलाज उपलब्ध कराया जाएगा।
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राव के अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने कहा कि 83 वर्षी तेलुगु कवि की चिकित्सा जांच में शुरुआती पार्किंसन रोग के लक्षण मिले हैं। ग्रोवर ने कहा कि तलोजा जेल में उपलब्ध सुविधाएं और राव की सेहत एक-दूसरे के अनुकूल नहीं हैं। राव को इसी जेल में विचाराधीन कैदी के रूप में रखा गया था। ग्रोवर ने पूछा कि जिस तलोजा जेल में एलोपैथिक चिकित्सक तक नहीं है, वहां राव की सेहत की निगरानी कैसे हो सकेगी। ग्रोवर ने कहा, ‘‘ मैं पूरी तरह आश्वस्त हूं कि आरोप साबित नहीं होंगे, मुझे कब तक इंतजार करना चाहिए। क्या इसके पहले ही मुझे मर जाना चाहिये। इस मामले में एक सहआरोपी स्टेन स्वामी की पहले ही मौत हो चुकी है।’’
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