Tuesday, Oct 03, 2023
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छिपा नहीं है नीतीश के अपनों की बगावत का राज  

  • Updated on 1/28/2020

नई दिल्ली/शैलेश। हार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के जनता दल यूनाइटेड (जदयू) में लगातार बागी सुर सुनाई पड़ रहे हैं। क्या यह सिर्फ जुबानी जुगाली हैं या पार्टी किसी अंतरद्वंद्व से गुजर रही है। पार्टी के पूर्व राज्यसभा सदस्य पवन शर्मा थोड़ा शांत हुए तो राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishore) फिर शुरू हो गए हैं। हालांकि प्रशांत के निशाने पर सीधे नीतीश कुमार नहीं हैं। वह भाजपा नेता और उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी पर निशाना साध रहे हैं तो दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह उनके राडार पर हैं।

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आई पैक दिल्ली में आम आदमी पार्टी की अभियान संभाल रही है
प्रशांत किशोर की कंपनी आई-पैक दिल्ली में आम आदमी पार्टी (AAP) का चुनाव अभियान संभाल रही है। पवन वर्मा और प्रशांत किशोर तब से ही नाराज चल रहे हैं, जब से जदयू ने अनुच्छेद-370 पर भाजपा का समर्थन किया। बाद में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) पर दोनों का बागी सुर खुलकर सामने आ गया। मगर यह पहला मौका है जब पवन और प्रशांत ने नीतीश के समाने वैचारिक चुनौती रख दी है। 

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दरअसल मौजूदा घटनाक्रम में नीतीश खुद असमंजस में दिखाई दे रहे हैं। लोकसभा में सीएए पर वह भाजपा के पाले में दिखाई दिए और जब विरोध हुआ तो धीरे से कह दिया कि पुनर्विचार होना चाहिए। उन्होंने बिहार (Bihar) में एनआरसी लागू न करने की भी घोषणा की। साथ ही उन्होंने पवन वर्मा को भी सलाह दे डाली कि अगर पार्टी छोड़कर जाना चाहते हैं तो चले जाएं। पवन वर्मा के लेटर बम से आहत नीतीश क्या इन दोनों बागी नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं?

जदयू का जनाधार मुस्लिम वोटों पर टिका है
ऐसा करने से जदयू का संकट खत्म होने की जगह और बढ़ सकता है। बिहार में जदयू का जनाधार मुस्लिम मतदाताओं के एक बड़े वर्ग पर टिका है। भाजपा के साथ रहने का बाद भी नीतीश पर सांप्रदायिकता का लेवल कभी चस्पां नहीं हुआ। नवम्बर में बिहार में विधानसभा चुनाव (Assembly Election) होने हैं। अगर मुस्लिम मतदाता पूरी तरह से छिटक गए तो नीतीश का आधार कमजोर हो सकता है।  

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उनके विरोधी राजद सुप्रीमो तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) मौके का फायदा उठाने के लिए तैयार हैं। उनके पिता लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) ने मुस्लिम-यादव गठजोड़ बनाकर बिहार में 15 साल तक राज किया। नीतीश ने पिछड़ा और अति पिछड़ा का समीकरण बनाया। बिहार का सवर्ण बहुमत बीजेपी के साथ दिखता है। पर सिर्फ वोटों से सरकार नहीं बनाई जा सकती। यही वजह है कि अमित शाह बार-बार यह घोषणा करते हैं कि बिहार चुनाव अमित शाह के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। भाजपा ने नीतीश के विरोधी गिरिराज सिंह और संजय पासवान को लगभग चुप करा दिया है। 

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