नई दिल्ली/टीम डिजिटल। इन दिनों पाकिस्तान अपने देश में सबसे बड़ी आर्थिक तंगी से गुजर रहा है। पाक पर काफी लंबे समय से कर्जा बना हुआ है। जिसके चलते वह कई सालों से सुर्खियों में है। पाक ने हाल ही में चीन से भी काफी ज्यादा कर्जा लिया है। विश्व के दिग्गज अर्थशास्त्री लंबे समय से दावा कर रहे हैं कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ग्रीस की उस स्थिति में पहुंच रही है जहां अपने कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए सरकारी खजाने में पैसे नहीं हैं।
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दरअसल पाकिस्तान के ऊपर बहुत ज्यादा कर्जा हो गया है। जिसको चुकता करना एक बहुत बड़ी चुनौती है। जिसके चलते पाक के पास अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डिफॉल्टर बनने से बचने के लिए सिर्फ अंतरराष्ट्रीय मुद्रा फंड (आईएमएफ) से मदद लेने का विकल्प बचा है। फिलहाल पाक के मौजूदा प्रधानमंत्री इमरान खान पिछले कई सालों से चीन के साथ किए गए चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी-CPEC) की शर्तों का विरोध कर रहे हैं। आपको बता दें कि जब यह समझौता हुआ था तो पाकिस्तान के बजीर-ए- आजम नवाज शरीफ थे।
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इमरान खान ने पाक का प्रधानमंत्री बनने से पहले इस बात का दावा किया था कि चीन की कंपनियों ने पाकिस्तानी कंपनियों से ऐसे आर्थिक करार किए हैं जिसका खामियाजा पाकिस्तान को लंबे अंतराल में भुगतना पड़ेगा। खबरें आ रही हैं कि पिछले हफ्ते आईएमएफ प्रमुख क्रिस्टीना लेगार्ड ने इस बात की पुष्टि की कि नवंबर में आईएमएफ की टीम बेलआउट की शर्तों पर बातचीत करने के लिए पाकिस्तान जाएगी।
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गौरतलब है कि इस बात से दुनिया की नजर में एक बात तो साफ हो जाती है कि पाकिस्तान वाकई आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। कहा जा रहा है कि अगर उसे बचाने की कवायद नहीं की गई तो उसकी भी हालत ग्रीस जैसी हो जाएगी जहां कर्ज का ब्याज और सरकार का खर्च चलाने के लिए कर्ज लेना उसकी मजबूरी बन जाएगा।
आपको बता दें कि पाकिस्तान पर करीब 28 ट्रिलियन रुपये (पाकिस्तानी करेंसी) या 215 बिलियन डॉलर का कर्ज है। स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के आंकड़ों के लिहाज से देखें तो जून 2018 तक पाकिस्तान पर कुल कर्ज उसकी जीडीपी के 83 फीसदी के बराबर है। इस हालात में पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार महज 8.3 बिलियन डॉलर पर सिमट गया है।
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