नई दिल्ली/टीम डिजिटल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिग्री संबंधी विवाद को लेकर गुजरात विश्वविद्यालय ने बृहस्पतिवार को यहां उच्च न्यायालय से कहा कि सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून का इस्तेमाल किसी की ‘‘बचकाना जिज्ञासा'' को संतुष्ट करने के लिए नहीं किया जा सकता। विश्वविद्यालय ने याचिका दायर कर आरटीआई कानून के तहत प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री की जानकारी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को उपलब्ध कराने के आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया है।
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केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के सात साल पुराने आदेश का पालन नहीं करने के लिए आरटीआई अधिनियम के तहत दिए गए अपवादों का हवाला देते हुए विश्वविद्यालय की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि केवल इसलिए कि कोई सार्वजनिक पद पर है, कोई व्यक्ति उनकी ऐसी निजी जानकारी नहीं मांग सकता है, जो उनकी सार्वजनिक जीवन/गतिविधि से संबंधित नहीं है।
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मेहता ने दलील दी कि प्रधानमंत्री की डिग्री के बारे में जानकारी ‘‘पहले से ही सार्वजनिक रूप पर उपलब्ध है'' और विश्वविद्यालय ने पूर्व में अपनी वेबसाइट पर विवरण भी पेश किया था। उन्होंने दावा किया कि आरटीआई का उपयोग विरोधियों के खिलाफ ‘‘तुच्छ हमले'' करने के लिए किया जा रहा है। हालांकि, केजरीवाल की ओर से पेश वकील ने कहा कि प्रधानमंत्री की डिग्री की जानकारी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं है, जैसा कि मेहता दावा कर रहे हैं।
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वकील ने ‘फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन' (एफबीआई) द्वारा पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन के आवासों की तलाशी का भी उल्लेख किया और कहा कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव ने याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।
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जुलाई 2016 में, गुजरात उच्च न्यायालय ने केंद्रीय सूचना आयोग के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें अहमदाबाद स्थित विश्वविद्यालय को प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री की जानकारी दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल को देने को कहा गया था। अप्रैल 2016 में, तत्कालीन सीआईसी ने दिल्ली विश्वविद्यालय और गुजरात विश्वविद्यालय को निर्देश दिया था कि वे मोदी द्वारा प्राप्त डिग्री के बारे में केजरीवाल को जानकारी प्रदान करें।
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