नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने सोमवार को अपने गृह राज्य में एक नई 'शुरुआत’’ की परोक्ष घोषणा कर बिहार की राजनीति में सरगर्मी बढ़ा दी। किशोर ने एक ट्वीट कर राजनीतिक परामर्श प्रदान करने की अपने एक दशक की शानदार सफलता को तमाम उतार चढ़ाव से भरी यात्रा करार दिया। इस दौरान उन्होंने नरेंद्र मोदी, ममता बनर्जी और जगन मोहन रेड्डी जैसे विविध राजनेताओं के साथ काम किया।
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उन्होंने एक ट्वीट में कहा, 'लोकतंत्र में एक सार्थक भागीदार बनने और जन अनुकूल नीति को आकार देने के प्रयास में मैंने 10 साल तक उतार-चढ़ाव देखे। अब मैं उस अध्याय को पलटा रहा हूं, वास्तविक मालिकों यानी लोगों के पास जाने का समय, मुद्दों को बेहतर तरीके से समझने का समय और जन सुराज-जनता के सुशासन के मार्ग की ओर ’’
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उन्होंने ट्वीट के साथ हैशटैग लगाया, 'शुरुआत बिहार से।’’ उनके इस ट्वीट से उनके बिहार में सक्रिय राजनीति के प्रति उनके झुकाव का संकेत मिल रहा है। किशोर द्वारा स्थापित राजनीतिक परामर्श फर्म आई-पीएसी के अनुसार, वह इस सप्ताह के अंत में यहां एक संवाददाता सम्मेलन में अपने भविष्य की परियोजना के बारे में अधिक जानकारी दे सकते हैं। किशोर क्या रास्ता अपनाते हैं, यह देखा जाना बाकी है? यद्यपि राज्य भाजपा ने इसे लेकर अपनी नाखुशी व्यक्त की है। भाजपा की बिहार इकाई के प्रवक्ता निखिल आनंद ने कहा, 'प्रशांत किशोर न तो सामाजिक वैज्ञानिक हैं और न ही राजनीतिक वैज्ञानिक। वह सत्ता के दलाल और बिचौलिया हैं। वह बिहार की राजनीति में वोट कटवा (खेल बिगाडऩे वाला) से ज्यादा कुछ नहीं हो सकते हैं।’’
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जद (यू) के नेताओं का एक वर्ग किशोर की वापसी से असहज लगता है, यद्यपि उन्होंने अपनी पहचान उजागर करने से इंकार कर दिया। इन नेताओं को संदेह है कि उन्होंने ही चिराग पासवान को नीतीश कुमार के खिलाफ विद्रोह के लिए 'बहकाया’’ था, जिसने 2020 के विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया था। किशोर की यह घोषणा कांग्रेस में शामिल होने से इंकार करने, के बाद आई है। इससे पहले किशोर ने कांग्रेस को भाजपा का एक मजबूत विकल्प बनने में मदद करने के लिए रणनीति बनाने की पेशकश की थी।
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गौरतलब है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा क निष्कासन के तुरंत बाद किशोर ने फरवरी 2020 में एक स्वतंत्र परियोजना 'बात बिहार की’’ शुरू की थी हालांकि अवधारणा के स्तपर पर यह बहुत अस्पष्टता रही। जद (यू) में किशोर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर थे। संशोधित नागरिकता कानून जैसे मुद्दों पर उनके परस्पर विरोधी विचारों पर कुमार के साथ तीखे मतभेदों के कारण उन्हें निष्कासित कर दिया गया था। किशोर के पूर्व सहयोगियों में से एक द्वारा बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज कराने के बाद परियोजना भी विवादों में घिर गई थी।
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