Thursday, Jun 01, 2023
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सुधा भारद्वाज ने बताया - पुणे के जज ने विशेष न्यायाधीश होने का किया ‘दिखावा’ 

  • Updated on 7/6/2021


नई दिल्ली/टीम डिजिटल। एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज ने अपने वकील के जरिए बंबई उच्च न्यायालय को बताया कि 2018 में उनकी गिरफ्तारी के बाद जिस न्यायाधीश ने उन्हें हिरासत में भेज दिया था उन्होंने एक विशेष न्यायाधीश होने का ‘दिखावा’ किया था और उनके द्वारा जारी किए गए आदेश के कारण उन्हें और अन्य आरोपियों को लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा।   

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  भारद्वाज की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील युग चौधरी ने उच्च न्यायालय को बताया कि पुणे में एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के डी वडाने ने उन्हें और आठ अन्य कार्यकर्ताओं को 2018 में पुणे पुलिस की हिरासत में भेज दिया था। वडाने ने बाद में मामले में आरोपपत्र दाखिल करने के लिए पुणे पुलिस को समय का विस्तार देते हुए आरोपपत्र का संज्ञान लिया और अक्टूबर 2018 में भारद्वाज और तीन अन्य सह-आरोपियों को जमानत देने से इनकार कर दिया।  

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    चौधरी ने उच्च न्यायालय को बताया कि उपरोक्त सभी कार्यवाही पर आदेश पारित करते हुए, वडाने ने ‘‘विशेष यूएपीए न्यायाधीश’’ होने का दावा किया था और विशेष यूएपीए न्यायाधीश के रूप में आदेशों पर हस्ताक्षर किए थे। चौधरी ने कहा कि उनके पास महाराष्ट्र सरकार और उच्च न्यायालय द्वारा भारद्वाज के सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत पूछे गए सवालों के जवाब हैं, जिसमें कहा गया है कि वडाने को कभी भी किसी कानूनी प्रावधान के तहत विशेष न्यायाधीश के रूप में नामित नहीं किया गया था। चौधरी पिछले महीने भारद्वाज द्वारा जमानत के लिए दाखिल एक याचिका पर जस्टिस शिंदे और जस्टिस एनजे जामदार की पीठ के समक्ष अंतिम दलीलें दे रहे थे।     

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भारद्वाज ने अपनी याचिका में न्यायाधीश वडाने द्वारा आरोपपत्र दाखिल करने और प्रक्रिया जारी करने के लिए समय बढ़ाने के आदेश को रद्द करने का भी अनुरोध किया है। चौधरी ने पीठ को बताया कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के अनुसार गैर कानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (यूएपीए) के तहत अपराध अनुसूचित अपराध हैं। सीआरपीसी के अनुसार, राज्य पुलिस को मामले की जांच जारी रखने की अनुमति है, जब तक कि राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) कार्यभार नहीं संभाल लेता।   

चौधरी ने कहा, ‘‘रिकॉर्ड बताते हैं कि एडीजे वडाने ने विशेष न्यायाधीश होने का दिखावा किया। यदि हमारा तर्क प्रथमदृष्टया सही है, तो जमानत खारिज करने, समय बढ़ाने, आरोपपत्र स्वीकार करने के उनके आदेश कानून में गलत होंगे।’’      उच्च न्यायालय के आठ जुलाई को भारद्वाज की याचिका पर दलीलों की सुनवाई जारी रखने की संभावना है। न्यायाधीश वडाने के आदेशों से प्रभावित अन्य कार्यकर्ता वर्नोन गोंजाल्विस, वरवर राव, अरुण फरेरा, सुधीर धवले, रोना विल्सन, शोमा सेन, महेश राउत और सुरेंद्र गाडलिंग हैं। गाडलिंगने भी जमानत के लिए याचिका दाखिल की है।     

 

 

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