नई दिल्ली/ धीरज सिंह। कोरोना संकट के बीच राजस्थान का सियासी घमासान शांत होता हुआ नजर नहीं आ रहा है। सचिन पायलट के बागी तेवर के बाद ऐसा लग रहा था कि अशोक गहलोत की कुर्सी अब संकट में आ गई है। लेकिन जिस प्रकार से गहलोत ने अपने राजनीतिक अनुभव का फायदा उठाते हुए पारी को संभाली है। उससे एक बात तो स्पष्ट है कि राजस्थान का राजनीतिक खेल गोवा, कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश से अलग होने वाला है।
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अशोक गहलोत ने संभाला मोर्चा बगावत के बाद मध्यप्रदेश से सबक लेते हुए अशोक गहलोत की सलाह पर पार्टी ने पायलट को सरकार और संगठन दोनों से बाहर कर दिया। कांग्रेस से पद व प्रतिष्ठा गंवाने के बाद सचिन पायलट ने कहा कि वो बीजेपी में कभी शामिल नहीं होंगे। पायलट के इस बयान के बाद कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेता एक बार फिर से सचिन को मनाने के लिए सक्रिय हो गए। लेकिन उनकी यह भी कोशिश नाकाम साबित हुई। वहीं दूसरी ओर पायलट गुट के विधायकों को स्पीकर से मिले नोटिस का मामला हाईकोर्ट पहुंच गया।
हाईकोर्ट से गहलोत को झटका हाईकोर्ट की तरफ से स्पीकर के नोटिस पर स्टे लगाने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बेचैनी बढ़ गई। शुक्रवार को हाईकोर्ट के फैसले के बाद सीएम अपने समर्थक विधायकों के साथ राजभवन पहुंच गए। राजभवन पहुंचकर उन्होंने राज्यपाल से विधानसभा सत्र बुलाने की मांग की। हालांकि राज्यपाल ने उनकी मांग को यह कहकर खारिज कर दिया कि अभी राज्य के कई विधायक कोरोना संक्रमित पाए गए हैं।
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बीजेपी की सक्रियता से पहले जंग जीतना चाहते हैं गहलोत सीएम अशोक गहलोत बीजेपी के सक्रिय होने से पहले विधानसभा सत्र में बहुमत साबित कर अपनी कुर्सी बचाने के लिए बेताब हैं। राज्यपाल की ओर से विधानसभा सत्र बुलाने की अनुमति न देने पर गहलोत और उनके समर्थक विधायकों ने राजभवन का घेराव कर लिया। राज्यपाल पर अशोक गहलोत ने निशाना साधते हुए कहा कि महामहिम केंद्र के दबाव में आकर काम कर रहे हैं। उन्होंने संविधान की शपथ ली है उन्हें अपनी अंतर्आत्मा की सुननी चाहिए और हमें बहुमत साबित करने के लिए मौका देना चाहिए।
बीजेपी सक्रिय होने में असमर्थ वहीं दूसरी ओर बीजेपी इस पूरे मामले में सक्रिय होना चाहती है लेकिन पार्टी के अंदर की गुटबाजी उन्हें ऐसा करने से रोक रही है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बीच अनबन की गाथा समूचे प्रदेश को पता है। साथ ही सीएम अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे की दोस्ती भी किसी से छुपी नहीं है। यही कारण है कि अभी राजस्थान में बीजेपी की ओर से केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत फ्रंट फूट पर नजर आ रहे हैं। दूसरी ओर यह भी सच है कि गजेंद्र सिंह शेखावत को सीएम के रूप में प्रोजेक्ट करना बहुत मुश्किल है। इसीलिए वसुंधरा राजे अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में है।
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पायलट पर दांव खेलने को तैयार है बीजेपी ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया का बयान अहम हो जाता है जिसमें उन्होंने सचिन पायलट के सीएम बनने की संभावना जताई है। लेकिन इस मामले में भी सचिन पायलट या उनके गुट की ओर अब तक कुछ इशारा नहीं किया गया है। इसीलिए बीजेपी पूरी तरह से सक्रिय होने असमर्थ है। भारतीय जनता पार्टी चाहती है कि किसी भी तरह उन्हें कुछ और समय मिल जाए। जिससे वसुधंरा राजे और सचिन पायलट के मैटर पर कुछ साकारात्मक रूख अख्तियार कर लिया जाए। खैर अब ये तो समय ही बताएगा कि इस खेल में अशोक गहलोत का अनुभव जीतता है या फिर सचिन पायलट का युवा जोश।
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