नई दिल्ली/शेषमणि शुक्ल। मध्य प्रदेश की सियासत अभी एक और करवट लेती दिख रही है। कुछ महीने तक प्रदेश में रही कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के छाया मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय को अब अपनी ही राज्यसभा की सीट निकालने में कठिनाई आती दिख रही है। बदले समीकरण में वरीयता वोट पार्टी के दूसरे राज्यसभा प्रत्याशी फूल सिंह बरैया को दिए जाने की मांग पार्टी के भीतर उठ रही है।
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फूल सिंह बरैया और दिग्विजय सिंह दोनों कांग्रेस के राज्यसभा प्रत्याशी हैं। दोनों ने तब नामांकन किया था, जब कांग्रेस की सरकार थी। उस वक्त सपा-बसपा और निर्दलीयों को मिलाकर कांग्रेस के पास 121 विधायक थे और भाजपा के पास 107 थे। तब यह माना जा रहा था कि राज्य की तीन रिक्त राज्यसभा सीटों में से कांग्रेस दो सीट जीतने में सफल रहेगी। इसी के मद्देनजर दिग्विजय सिंह को वरीयता पर पहला प्रत्याशी और बरैया को दूसरे नंबर पर रखा गया था। मगर, ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने और पार्टी के 22 विधायकों के इस्तीफे के चलते कमलनाथ की सरकार बीते 23 मार्च को गिर गई।
अब सारे समीकरण बदल चुके हैं। भाजपा जहां अब राज्यसभा की दो सीटें जीतने की स्थिति में आ गई है, वहीं कांग्रेस में दो प्रत्याशियों के बीच किसे चुना जाए, इस पर मतभेद उभरने लगे हैं। पार्टी के भीतर दिग्विजय विरोधी खेमा बरैया के लिए लॉबिंग कर रहा है। इस खेमे का तर्क है कि बरैया को अगर राज्यससभा सीट दी जाती है तो राज्य में होने जा रहे विधानसभा उपचुनाव में दलित मतदाताओं के बीच कांग्रेस के प्रति अच्छा संदेश जाएगा और इससे पार्टी प्रत्याशियों को फायदा मिलेगा।
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दरअसल, जिन 24 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें से 17 सीटें ग्वालियर-चंबल संभाग की हैं। इस संभाग में दलित-पिछड़े मतदाता काफी प्रभावशाली स्थिति में हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए बरैया की पैरोकारी की जा रही है। लेकिन दिग्विजय समर्थकों का कहना है कि उपचुनाव में बरैया को किसी सीट से विधानसभा प्रत्याशी बना दिया जाए, इससे भी दलितों में बेहतर संदेश जाएगा और इसका फायदा उपचुनाव में मिलेगा। वहीं राज्यसभा की सीट दिग्विजय सिंह को दे दी जाए।
सूत्रों की मानें तो बरैया को लेकर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ भी थोड़े साफ्ट हैं। वे खुल कर कुछ नहीं कह रहे हैं, लेकिन सूत्र बता रहे हैं कि कमलनाथ मानते हैं कि उनकी सरकार गिरने के पीछे काफी हद तक दिग्विजय सिंह जिम्मेदार हैं। मध्य प्रदेश में कमलनाथ की जब तक सरकार रही, दिग्विजय सिंह नेपथ्य में रह कर सरकार का संचालन करते रहे। उनकी दखलंदाजी के चलते ही सिंधिया गुट नाराज हुआ और छिटकता चला गया। दिग्विजय ने भरोसा दिया था कि वे हालात को संभाल लेंगे।
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कमलनाथ ने उन पर भरोसा किया और विधायकों से खुद बात न कर दिग्विजय पर ही सारा कुछ छोड़ दिया था। लेकिन दिग्विजय मैनेज नहीं कर पाए। इस बात को कमलनाथ ने पिछले दिनों खुद कहा कि बागी विधायकों से जब उनकी बात हुई, हालात हाथ से निकल चुके थे। सरकार गिरने की कसक कमलनाथ को है और कुछ हद तक वे इसके लिए दिग्विजय सिंह को ही जिम्मेदार मान रहे हैं। सूत्र बता रहे हैं कि सरकार गिरने के बाद से कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच ठन गई है। यही कारण है कि राज्यसभा चुनाव को लेकर कमलनाथ अपनी कोई सक्रियता नहीं दिखा रहे हैं और सारा ध्यान विधानसभा उपचुनाव पर दे रहे हैं। उनका मानना है कि उपचुनाव में कांग्रेस 18-19 सीट जीत लेती है तो वे फिर सरकार की उलटफेर कर लेंगे।
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