नई दिल्ली/कुमार आलोक भास्कर। तिरंगा से बड़ा कुछ नहीं होता है। यह देश ने समय-समय पर साबित कर दिया है। हमारे सेना बॉर्डर पर तिरंगा को ऊंचा रखने के लिये ही हंसते-हंसते बलिदान दे देते है तो किसी ने सोचा नहीं होगा कि देश के अंदर ही मौजूद कुछ सिरफिरे तिरंगा के अपमान की भी हिमाकत करेगा। लेकिन अफसोस ऐसा हुआ है। वो भी तब हुआ जब गणतंत्र दिवस के पवित्र दिवस पर राजपथ से सेना शोर्य दिखा रहे थे। लेकिन किसान नेताओं के गैरजिम्मेदाराना हरकत के कारण आज फिर देश शर्मसार हुआ है। वास्तव में गणतंत्र में जितना गण महत्वपूर्ण है उतना ही तंत्र भी जरुरी है। ऐसे में तिरंगा का अपमान कोई भी करें-फिर वो किसान के खाल में पहुंचे हुए लोग ही क्यों न हो-उसे बख्शा नहीं जाना चाहिये।
पानी टैंक हटाने पर टिकेत ने कहा... गांव से आयेगा पानी, बॉर्डर पर धारा 144 लागू
लेकिन इतिहास गवाह है कि आंदोलन अपने समय से पहले ही खत्म हो जाता है। सच कहा जाए तो आंदोलन कैसे दम तोड़ता है उसकी एक बानगी आजकल राजधानी में देखने को मिल रहा है। जिस गाजीपुर बॉर्डर और सिंधु बॉर्डर पर चप्पे-चप्पे पर किसान मौजूद रहते थे। किसानों की ऐसी मौजूदगी थी कि मोदी सरकार को भी झुकने के लिये मजबूर कर दिया। लेकिन अचानक से यह किसान आंदोलन का प्रासंगिकता खत्म हो चुका है। कारण धरनास्थल से किसान लगातार गायब होते जा रहे है और उसके जगह पुलिस कदमताल करती नजर आ रही है। तो इसकी वजह फिर से किसान नेताओं के ही लक्ष्य से ही भटकने को दोषी माना जाए या सरकार को ? यह बहुत बड़ा सवाल है।
किधर जा रहा आंदोलन! टिकैत के सरेंडर नहीं करने से क्या पुलिस करेगी कार्रवाई?
हालांकि इतना साफ है कि अगर सरकार चाहती तो पहले भी आंदोलन को बल का प्रयोग करके खत्म कर सकती थी। लेकिन इसके बजाए सरकार लगातार किसान नेताओं के शर्तों के सामने झुकती गई। कारण सरकार को अंदेशा हो गया कि यदि इन उग्र किसान नेताओं को ट्रैक्टर परेड निकालने की इजाजत नहीं दी गई तो कोहराम मच सकता है। यह अलग बात है कि शांति कायम रखने के भरोसा देने के बाद भी किसान अपना विश्वास नहीं कायम कर सके। लेकिन जरुरत से ज्यादा झुकने का फायदा जरुर किसान नेताओं ने कानून को धत्ता बताकर दिखाया हो लेकिन जिस तरह से गाजीपुर बॉर्डर पर माहौल गरम है उससे लगता है कि यह आंदोलन बस दम तोड़ने ही वाला है।
राकेश टिकैत ने सरेंडर की अटकलों को किया खारिज,कहा- लालकिला घटना की हो जांच
यहां यह महत्वपूर्ण है कि राकेश टिकेत ने एक बार फिर इमोशनल अत्याचार किसानों का करने का भरसक कोशिश किया है। उन्होंने प्रशासन के पानी टैंक हटाने पर जिस तरह से कहा कि उनका पानी फिर से ट्रैक्टर पर किसान गांव से लेकर आएंगे उससे साफ हो गया कि वे धमकी वाला भाषा बोल रहे है। इसी धमकी वाला भाषा का उन्होंने पहले भी प्रयोग किया जब टिकैत ने कहा कि यदि गणतंत्र दिवस के दिन ट्रैक्टर परैड नहीं निकालने दिया गया तो किसान नहीं मानेंगे। लेकिन इस बार उनका वहीं घिसा-पीटा धमकी कोई काम करता हुआ नहीं नजर आता है। लेकिन टिकैत जैसे किसान नेताओं को समझना चाहिये कि कानून का राज और तिरंगा का अपमान करके कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है। बहरलाल सबकी निगाहें पुलिस पर है कि कब बड़ी कार्रवाई होगी,उस पर सबकी नजर रहेगी।
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