नई दिल्ली/टीम डिजिटल। भारतीय रिजर्व बैंक ने दीवान हाउसिंग फाइनेंस (डीएचएफएल) पर जमा स्वीकार करने को लेकर पाबंदी लगा दी है। कंपनी को बिना जमा लेने वाली आवास वित्त कंपनी के रूप में वर्गीकृत किया गया है। डीएचएफएल पहली वित्तीय सेवा कंपनी है, जो ऋण शोधन प्रक्रिया में गयी है। यह कदम पीरामल समूह की समाधान प्रक्रिया के तहत कंपनी के अधिग्रहण की मंजूरी से पहले उठाया गया था। यह बात एनसीएलटी (राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण) की मुंबई पीठ के सात जून के आदेश में सामने आयी। आदेश में पीरामल कैपिटल एंड हाउसिंग फाइनेंस के डीएचएफएल के लिये 35,250 करोड़ रुपये की बोली को मंजूरी दी गयी थी।
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न्यायाधिकरण की एच पी चतुर्वेदी और रवि कुमार दुरईसामी की पीठ ने अपने 14 पृष्ठ के आदेश में कहा कि डीएचएफएल अब जमा स्वीकार करने वाली एनबीएफसी (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी) नहीं रह गयी है। कंपनी अब बिना जमा स्वीकार करने वाली एनबीएफसी होगी। यह बदलाव फरवरी 2021 में उस समय हुआ था, जब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने वित्तीय सेवा प्रदाता (एफएसपी) नियम के प्रावधान 5 का हवाला देते हुए डीएचएफएल के प्रशासक आर सुब्रमणि कुमार के 25 जनवरी, 2021 को दिये गये आवेदन को मंजूरी दे दी। एनसीएलटी के आदेश में कहा गया है, ‘‘... आरबीआई ने 16 फरवरी, 2021 को एफएसपी नियम के प्रावधान 5 (डी) (द्बद्बद्ब) के संदर्भ में डीएचएफएल में नियंत्रण/स्वामित्व/प्रबंधन में बदलाव के लिए अपनी ‘अनापत्ति की सूचना दी।’’
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साथ ही एनएचबी (आवास वित्त कंपनियों) परिपत्र के पैरा 3 के तहत अधिग्रहण या नियंत्रण हस्तांतरण की मंजूरी दी। यह मंजूरी इस शर्त के साथ दी गयी कि डीएचएफएल का जमा लेने के दर्जे को रद्द कर दिया जाएगा। डीएचएफएल और पीरामल कैपिटल के विलय के बाद अस्तित्व में आने वाली एक गैर-जमा राशि लेने वाली आवास वित्त कंपनी के रूप में काम करेगी। आदेश में पीठ ने यह बात दोहरायी कि आरबीआई ने अधिग्रहण को अपनी तरफ से मंजूरी दी है जो इस शर्त पर है कि डीएचएएफल का दर्जा जमा स्वीकार करने वाली आवास वित्त कंपनी की नहीं रहेगी। यानी आवास वित्त कंपनी कोई जमा स्वीकार नहीं करेगी।
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उल्लेखनीय है कि डीएचएफएल पहली वित्तीय सेवा कंपनी है जो ऋण शोधन कार्यवाही के तहत एनसीएलटी के पास गयी है। आरबीआई ने 20 नवंबर, 2019 को डीएचएफएल निदेशक मंडल को भंग कर दिया था और उसका जगह सुब्रमणि कुमार को कंपनी का प्रशासक नियुक्त किया था। कंपनी के प्रवर्तकों के कोष की हेराफेरी और 21 बैंकों और हजारों जमाकर्ताओं के 95,000 करोड़ रुपये से अधिक के कर्ज भुगतान में चूक के बाद कंपनी दिवाला प्रक्रिया में गयी। कंपनी में 55,000 से अधिक खुदरा और संस्थागत निवेशकों के 5,375 करोड़ रुपये के मियादी जमा हैं। कर्जदाताओं की समिति ने 15 जनवरी, 2021 को पीरामल समूह के 35,250 करोड़ रुपये की बोली को मंजूरी दे दी थी।
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