नई दिल्ली। अनामिका सिंह। खांडवप्रस्थ, इंद्रपत, इंद्रप्रस्थ या पुराना किला नाम चाहे कुछ भी हो लेकिन आज भी इसे आमलोग पांडवकालीन किले के रूप में ही जानते व पहचानते हैं। इसके पीछे का तर्क लोग पुराना किला मंदिर में जहां कुंती देवी मंदिर और पुराना किला की बाहरी दीवारों पर बने भैरव मंदिर को बताते हैं। वहीं कई लेखकों-इतिहासकारों ने भी इस बात की सत्यता को साबित करने के लिए पुख्ता प्रमाण देते हुए मथुरा रोड़ को भगवान श्रीकृष्ण के आवागमन से जोड़ा है। उनका कहना है कि आज का मथुरा रोड़ जहां पुराना किला स्थापित है, वहां तक शार्ट रूट भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा से आने के लिए बनाया था। इसी को आधार मानकर बाद में मुगलों ने भी मथुरा-आगरा से दिल्ली आने-जाने के सुलभ मार्ग की स्टीकता को माना। खैर किवदंतियां, कहानियां कुछ भी हों लेकिन पुरातत्वविदें ने पुरातात्विक प्रमाण देकर यह तो सिद्ध कर दिया है कि 2500 सालों के निरंतर विकासक्रम के पहिए से पुराना किला जुड़ा रहा है और आज भी यहां इतिहास के अवशेष बिखरे पड़े हैं जिनकी खोज निरंतर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा की जा रही है। तो आइए जानते हैं, अभी तक पुराना किला में हुए उत्खनन की रोचकता और पुरातात्विक महत्व।
पांचवी बार हो रहा है पुराना किला में उत्खनन पुराना किला में 5 बार उत्खनन का कार्य किया जा चुका है। पहली बार साल 1954-55 में उत्खनन किया गया था। इसके बाद साल 1969-73 तक दोबारा उत्खनन किया गया। ये दोनों उत्खनन के कार्य पुरातत्वविद् व इंडियन ऑर्कियोलॉजी के पितामह बीबी लाल के संरक्षण में किए गए थे। जबकि साल 2013-14 व 2017-18 में हुई खुदाई का कार्य पुरातत्वविद् डॉ. वसंत कुमार स्वर्णकार ने किया। साल 2023 में भी डॉ. वसंत कुमार स्वर्णकार ही पुराना किला में तीसरी बार उत्खनन का कार्य देख रहे हैं। अभी तक पुराना किला परिसर में 3 जगह उत्खनन का कार्य किया गया है।
पीडब्ल्यूजी एविडेंस ने बढ़ाई उत्खन्न में रोचकता एएसआई को उत्खनन के दौरान पेंटेड ग्रे वेयर (पीडब्ल्यूजी) यानि चित्रित धूसर मृदुभांड मिले हैं। जिनपर काले रंग से डिजाइन बनाए जाते थे। इन्हें पुरातत्वविद् बी.बी. लाल ने साल 1970 में महाभारत काल से संबंधित बताया था। जिनकी डेटिंग 1100-1200 ईसापूर्व यानि करीब 3200 साल पुराना बताया था। पुराना किला उत्खनन में पीडब्ल्यूजी प्राप्त हुआ है, साथ ही ये भी पता चला है कि उस काल में भी पुराना किला में लगातार गतिविधियां जारी थीं और पुराना किला बिजनेस हब भी रहा है। इसीलिए इसे महाभारत से जोड़ा जा रहा है।
2017-18 में उत्खन्न की जगह पर भी दोबारा ढूंढे जा रहे हैं अवशेष बता दें कि पुराना किला में नए उत्खनन से पहले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने साल 2017-18 में शेर मंडप के पीछे की तरफ उत्खनन का कार्य किया था। इस दौरान एएसआई को यहां से पूर्व मौर्य काल तक के अवशेष प्राप्त हुए थे। हालांकि समय पूरा होने की वजह से उत्खनन को वहीं रोकना पड़ा था। लेकिन अब दोबारा इस इलाके में भी उत्खनन का कार्य शुरू किया गया है। जोकि पहले वाले उत्खनन से करीब 5 मीटर नीचे तक किया जा रहा है। यहां एएसआई को भवन निर्माण, रिंगवेल, ड्रेनेज सिस्टम के साथ ही सिक्के, बर्तन व कई जानवरों की हड्डियां भी प्राप्त हुईं थीं। इसलिए यह जगह काफी महत्वपूर्ण है।
शुरूआती उत्खनन कार्य भी है खास शुरूआत में जब साल 1954-55 व 1969-73 में उत्खनन का कार्य किया गया तो उस समय मौर्य काल तक पुरातत्वविदों की खोज पहुंच चुकी थी। उत्खनन में चित्रित धूसर पात्र खंड तथा शुंग-कुषाण कालीन पुरावशेष पाए गए थे। जबकि साल 1969-73 के दौरान हुए उत्खनन के दौरान आठ कालों के अवशेषों के साथ आद्य-ऐतिहासिक काल के स्तरविन्यास का भी पता चला है जो उत्तरी क्षेत्र के उत्तरी कृष्णमर्जित पात्र परंपरा काल (करीब 600-300 ईसा पूर्व) के हैं। साल 2013-14 व 2017-18 तक किए गए उत्खनन कार्य में पहली बार सबसे पुरातन अवशेष एएसआई के हाथ में लगे थे, जिनका कालखंड 900 ईसा पूर्व का था, इसे पूर्व मौर्य काल का बताया जाता है। जिसमें स्लेटी रंग के बर्तनों पर काले रंग से डिजाइन किया जाता था, इसे पेंटेड ग्रे वेयर कहा जाता है।
कई किताबों में भी है पुराना किला का जिक्र कई इतिहासकारों व लेखकों ने पुराना किला को केंद्रित करते हुए अपनी किताबों में उसका जिक्र किया है। इसमें साल 1865 में प्रकाशित सैय्यद अहमद खान की आसार-उस-सनादीद, 1920 में एएसआई द्वारा प्रकाशित मौलवी जफर हसन की किताब लिस्ट ऑफ मुहम्मदन एंड हिंदू मॉन्यूमेंट, साल 1950-55 में वाई.डी. शर्मा की दिल्ली एंड इट्स नेबरहुड व साल 1933 में ए. के. शर्मा की किताब दिल्ली प्रीहिस्टोरिक दिल्ली एंड इट्स नेबरहुड ने साबित किया है कि प्रागैतिहासिक काल से ही दिल्ली के पुराना किला की ऐतिहासिकता निंरतर बनी हुई है।
क्या-क्या मिला नए उत्खनन में : गजलक्ष्मी की टेराकोटा पट्टिका यहां गजलक्ष्मी की एक टेराकोटा यानि मिट्टी को पकाकर बनाई गई पट्टिका प्राप्त हुई है। इस पट्टिका में लक्ष्मी जी की आकृति उभरी हुई है, जिसमें वो बैठी हुईं हैं। उनकेऊपर दो हाथियों द्वारा सूंड उठाकर जलाभिषेक किया जा रहा है। इसे गुप्त काल यानि 4-5वीं शताब्दी ईसवीं का बताया जा रहा है।
सॉफ्ट स्टोन की गणेश प्रतिमा कुंती देवी मंदिर के सामने उत्खनन के दौरान एएसआई को डेढ़-पौने दो ईंच की सॉफ्ट स्टोन से बनी गणेश प्रतिमा प्राप्त हुई है। इस प्रतिमा का रंग काला है। इसे मुगल काल का बताया जा रहा है। जोकि 16वीं-17वीं शताब्दी के दौरान का बताया जा रहा है। बैकुंठ विष्णु की प्रतिमा यहां उत्खनन के दौरान बैकुंठ विष्णु की एक प्रतिमा प्राप्त हुई है। जिसे 10-11वीं शताब्दी का बताया जा रहा है। यानि राजपूत काल का। इसे दिल्ली क्वारजाइड स्टोन यानि स्थानीय पत्थर से बनाया गया है। इस मूर्ति में विष्णु भगवान खड़े हुए हैं और नीचे दो गण भी दिखाई दे रहे हैं।
आभूषण का मोती यहां एएसआई को एक मोती मिला है जिसके बीच से लोहे की तार निकली हुई है। जोकि आभूषण का मोती बताया जा रहा है। इसे कुषाण काल का कहा जा रहा है जो पहली शताब्दी ईसवीं यानि 2000 साल पुराना है।
विभिन्न कालखंडों के सिक्के व मोहरें यहां विभिन्न कालखंडों के 136 से अधिक सिक्के व 35 मोहरें प्राप्त हुईं हैं। इसके अलवा विभिन्न पत्थरों के मनके, हड्डी की सुई, मिट्टी के बर्तन व कई कलाकृतियां प्राप्त हुईं हैं। जो साफ बताती हैं कि 2500 साल से पुराना किला व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र भी रहा है।
कम स्थानों पर मिलते हैं 2500 सालों के साक्ष्य : डॉ. वसंत कुमार स्वर्णकार, पुरातत्वविद् पुराना किला एक ऐसे प्वाइंट पर बसा था जो अशोक कालीन मथुरा रोड़ व शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित ग्रेंड ट्रंक रोड़ पर आकर मिलता था। ऐसे में ये एक बड़ा व्यापारिक केंद्र हमेशा से रहा होगा। यही वजह है कि हर काल के कुछ ना कुछ अवशेष उत्खनन के दौरान यहां से प्राप्त हुए हैं। सही मायने में पुराना किला 2500 साल की विकास की कहानी को बयां करता है। यहां 135 व्यापारिक प्वाइंट मिले, मोहरें, सिक्के मिले और पीडब्ल्यूजी मिली। लेकिन बात जहां तक महाभारत से जोडऩे की है तो बी.बी. लाल ने जो महाभारत काल को लेकर पीडब्ल्यूजी थ्योरी दी थी वो यहां देखने को मिलती है। पुरातत्वविद् हमेंशा वैज्ञानिक सत्यता पर आधारित बात करते हैं हमारा प्रयास अभी जारी है। यहां से अभी तक 9 सांस्कृतिक स्तरों का खुलासा हो चुका है। पूर्व-मौर्य, मौर्य, सुंग, कुषाण, गुप्त, उत्तर गुप्त, राजपूत, सल्तनत और मुगल सहित विभिन्न ऐतिहासिक काल का प्रतिनिधित्व करते हैं। दिल्ली में ये एकमात्र पुरातात्विक महत्व की साइट है जो दिल्ली के गौरव को बढ़ा रही है।क्रमबद्ध पाए गए हैं दिल्ली परिक्षेत्र में पुरावशेष : डॉ संजीव कुमार सिंह, प्रख्यात पुराविद् व संग्रहालयविज्ञानी पुरातत्वविद् पीडब्ल्यूजी को महाभारत काल से जोड़ते हैं, जो पुराना किला में पाया गया है। सौनोली में उत्खनन के दौरान जो रथ मिला, उसके आधार पर उसकी तिथि 2000-2200 बीसी चली जाती है। कुनाल और बडौत से जो सेंपल आए हैं वो साढे 7 हजार साल पीछे चले गए हैं। अभी तक उत्खनन में प्राप्त सैंपल को उस तरह से वैज्ञानिक स्तर पर नहीं परखा गया था जैसा आज किया जा रहा है। इसीलिए अब पुरावशेषों की डेटिंग और अधिक पीछे जा रही है। स्तरीकरण के हिसाब से सौनोली में उत्खनन में जो पुरावशेष मिले वो महाभारतकालीन हो सकते हैं। जहां तक महाभारत काल की बात है तो उससे संबंधित जो जगह है जिन्हें दिल्ली परिक्षेत्र कहा जाता है वहां जो उत्खनन हो रहे हैं उनसे साफ है कि वो 2000-2200 बीसी तक जाएंगे यानि 4200 साल पहले। सौनोली को अगर बैंचमार्क मान लिया जाए तो जो पुरावशेष मिल रहे हैं उनकी डेटिंग पीछे चली जाएंगी। इसके लिए सिर्फ दिल्ली नहीं बल्कि दिल्ली परिक्षेत्र को देखना होगा। बात अगर महाभारत की करें तो आज भी वो 5 गांव इंद्रप्रस्थ, सोनीपत, पानीपत, तिलपत व बागपत देखने को मिलते हैं जो लोककथाओं व दंतकथाओं में वर्णित है। वहीं इन इलाकों में हुए उत्खनन को क्रमबद्ध पाया गया है।
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