Wednesday, May 31, 2023
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बिहार समेत उपचुनावों के परिणाम कांग्रेस के लिए सबक

  • Updated on 11/10/2020

नई दिल्ली/नवोदय टाइम्स (शेषमणि शुक्ल)। बिहार विधानसभा के साथ देश के बाकी राज्यों में हुए उपचुनाव के परिणाम कांग्रेस के लिए सबक है। पार्टी को अपनी स्थिति पर गहराई से मंथन करने की जरूरत है। यह बेहतर वक्त था, जब बिहार में कांग्रेस अपनी सियासी जमीन मजबूत कर सकती थी, लेकिन इसमें असफल साबित हुई। वहीं मध्य प्रदेश के उपचुनावों में भी उसे हाथ कुछ भी नहीं लगा। इसका अहम कारण कमजोर नेतृत्व, संगठन में एकजुटता का अभाव और निष्क्रियता है।

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बिहार में बीते सात साल से कांग्रेस संगठन के नाम पर प्रदेश अध्यक्ष या कार्यवाहक अध्यक्ष ही रहे। चुनावी साल में भी पार्टी वहां कार्यकारिणी की घोषणा नहीं कर पाई। पार्टी को चाहिए था कि पिछले चुनाव में 27 सीटें जीतने के बाद जमीनी स्तर पर अपने संगठन का फैलाव करती। आम जनता के बीच पकड़ बनाती। लेकिन पूरे पांच साल ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया।

जबकि यह मौका था कि बिहार में पार्टी अपनी सियासी जमीन को मजबूत करती। 70 सीटें उसके हिस्से में थी, लेकिन ज्यादातर ऐसे लोगों को टिकट बांटा, जिनकी आम जनता के बीच कोई सक्रियता नहीं। परिणाम देख कर यह कहा जा सकता है कि पिछले चुनाव में कांग्रेस को 27 सीटें इसलिए मिल गई थीं कि जदयू और आरजेडी के साथ गठबंधन था। इस चुनाव में आरजेडी का साथ  है तो 19-20 सीटें मिल भी गईं, अन्यथा अंदाजा लगाया जा सकता है कि अकेले चुनाव लडऩे पर कांग्रेस का क्या हाल होता?

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कांग्रेस की सांगठनिक कमजोरी और गुटबाजी का ही नतीजा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात के उपचुनावों में दिखी। मध्य प्रदेश में जिन 28 सीटों पर उपचुनाव हुए, उनमें से 27 कांग्रेस की थी। पूरे चुनाव में भाजपा एकजुटता से लड़ती दिखी तो कांग्रेस में संगठन के नाम पर केवल प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ही चुनावी रथ पर सवार दिखे। दिग्विजय सिंह अपने तरीके की सियासत करते रहे। परिणाम सामने है। उत्तर प्रदेश में उपचुनाव के परिणाम भी पार्टी के नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़ा कर रहे हैं।

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अजय कुमार लल्लू को जब से प्रदेश इकाई का मुखिया बनाया गया है, दर्जनभर नेता पार्टी से किनारा कर चुके हैं। उपचुनाव प्रचार के बीच ही सलीम शेरवानी और अन्नू टंडन जैसे नेता कांग्रेस छोड़ गए। गुजरात की सात सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणाम भी बता रहे हैं कि प्रदेश नेतृत्व हालात को संभाल नहीं पा रहा है। पार्टी में लगातार विघटन हो रहा है। यहां भी जिन सीटों पर उपचुनाव हुए हैं, वे सभी कांग्रेस की थीं। अब ये भाजपा की हो चुकी हैं।

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नेतृत्व की कमजोरी, गुटबाजी की ओर पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं ने चिट्ठी लिख कर हाईकमान का ध्यान आकर्षित किया था और ऊपर से नीचे तक सांगठनिक चुनाव कराने की बात कही थी। लेकिन इसे शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ बगावत बता कर हंगामा मचा दिया गया। जबकि शीर्ष नेतृत्व की क्षमता पर किसी ने सवाल नहीं उठाया था। अस्वस्थता और सुरक्षा कारणों से शीर्ष नेतृत्व की सार्वजनिक सक्रियता लंबे समय से लगभग शून्य है। इसलिए एक सक्रिय, प्रभावशाली और सर्वदा सुलभ नेतृत्व की मांग की थी ताकि वह आम लोगों और कार्यकर्ताओं के बीच रह कर उनका भरोसा जीत सके। उन्हें नकारने की बजाए पार्टी को मंथन करने की जरूरत है।

 

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