Sunday, Jun 04, 2023
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rijiju letter to cji collegium  suggesting amendments memorandum procedure

रिजीजू ने कॉलेजियम प्रणाली पर CJI को पत्र लिख प्रक्रिया ज्ञापन में संशोधन का दिया सुझाव

  • Updated on 1/16/2023

 


नई दिल्ली/टीम डिजिटल। कानून मंत्री किरेन रिजीजू ने सोमवार को कहा कि सरकार की ओर से उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के कॉलेजियम में केंद्र और राज्यों के प्रतिनिधियों को शामिल करने की मांग राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम (एनजेएसी) को रद्द करने के दौरान शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए सुझाव के अनुसार की गई कार्रवाई है। रिजीजू ने जनवरी के शुरुआत में भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) को पत्र लिखा था और सोमवार को इस बारे में उनकी टिप्पणी उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर सरकार और न्यायपालिका के बीच चल रही खींचतान की पृष्ठभूमि में आई है। कई केंद्रीय मंत्रियों के अलावा उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी वर्ष 2015 में शीर्ष अदालत द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम (एनजेएसी) को रद्द किए जाने के फैसले की आलोचना करते हुए कहा था कि न्यायपालिका, विधायिका के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप कर रही है।

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हालांकि, विपक्ष ने सरकार के इस कदम को आड़े हाथ लिया है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि सुधार की जरूरत है, लेकिन सरकार द्वारा किया जा रहा उपचार स्वतंत्र न्यायपालिका के लिए ‘जहर की गोली' की तरह है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यह न्यायपालिका के साथ ‘सुनियोजित टकराव 'है, ताकि उसे धमकाया जा सके और उसके बाद उसपर पूरी तरह से ‘कब्जा' किया जा सके। अधिकारियों ने बताया कि कानून मंत्री ने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के चयन के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों वाली ‘‘ खोज एवं मूल्यांकन समिति'' गठित करने की मांग की है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इससे पहले ट्वीट किया था, ‘‘यह बहुत ही खतरनाक है। न्यायिक नियुक्तियों में सरकार का निश्चित तौर पर कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।'' रिजीजू ने केजरीवाल के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सरकार की ओर से उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के कॉलेजियम में केंद्र और राज्यों के प्रतिनिधियों को शामिल करने की मांग राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम (एनजेएसी) को रद्द करने के दौरान शीर्ष अदालत द्वारा प्रक्रिया ज्ञापन में संशोधन के लिये दिए गए सुझाव के अनुरूप है।

न्यायपालिका को ‘धमका' रही है सरकार, ताकि ‘उसपर कब्जा कर सके' : कांग्रेस

केंद्रीय मंत्री ने ट्वीट किया, ‘‘मुझे उम्मीद है कि आप अदालत के निर्देश का सम्मान करेंगे। यह उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को रद्द किए जाने के दौरान दिए गए सुझाव के अनुसार की गई कार्रवाई है। उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने कॉलेजियम प्रणाली के प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) में संशोधन करने का निर्देश दिया था।'' भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) को लिखे पत्र को सही ठहराते हुए रिजीजू ने ट्वीट किया, ‘‘ सीजेआई को लिखे गए पत्र की सामग्री उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ की टिप्पणी और निर्देश के अनुरूप है।''उन्होंने कहा, ‘‘सुविधा की राजनीति सही नहीं है, खासतौर पर न्यायपालिका के नाम पर। भारत का संविधान सर्वोच्च है और उससे ऊपर कोई नहीं है।'' कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि , ‘‘ सरकार पूरी तरह से अधीन करना चाहती है। ''उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘उपराष्ट्रपति ने हमला बोला। कानून मंत्री ने हमला किया। यह न्यायपालिका के साथ सुनियोजित टकराव है, ताकि उसे धमकाया जा सके और उसके बाद उसपर पूरी तरह से कब्जा किया जा सके। यह स्वतंत्र न्यायपालिका के लिए विष की गोली जैसी है।''

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उल्लेखनीय है कि पिछले साल नवंबर में रिजीजू ने कहा था कि न्यायिक नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम प्रणाली संविधान से ‘‘बिलकुल अलग व्यवस्था'' है। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी दावा किया था कि न्यायपालिका, विधायिका की शक्तियों में अतिक्रमण कर रही है। सरकार के इस कदम पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने कहा, ‘‘किरेन रिजीजू जी उच्चतम न्यायालय के एनजेएसी फैसले के कैसे अनुरूप है। कॉलेजियम प्रणाली को लेकर कुछ अंतर्निहित मुद्दे हैं, लेकिन देश में भावना है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा होनी चाहिए। हम पुनर्विचार का अनुरोध करते हैं।'' गौरतलब है कि अक्टूबर 2015 में संसद द्वारा उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए आम सहमति से पारित एनजेएसी अधिनियम को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कई आधारों पर असंवैधानिक करार दिया था। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर की पीठ ने अपने फैसले में कहा था, ‘‘ उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति और उनके स्थानांतरण का मामला भी प्राथमिक तौर पर निर्णय लेने संबंधी प्रक्रिया है और भारत के प्रधान न्यायाधीश में निहित है।'' दिसंबर 2015 में उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा कि केंद्र और राज्यों के विचारों पर भी गौर किया जाना चाहिए और सरकार को प्रधान न्यायाधीश से विचार विमर्श कर एमओपी बनाने का निर्देश दिया था, ताकि न्यायाधीशों को नियुक्त करने की कॉलेजियम प्रणाली पारदर्शी हो।

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