नई दिल्ली/टीम डिजिटल। पिछले कुछ समय से देश और दुनियाभर में भूकंप के झटके महसूस किए जा रहे हैं। इनका कारण बताते हुए एक रिपोर्ट ने दावा किया है कि आर्कटिक क्षेत्र में लगातार बढ़ती गर्मी से आगे विनाशकारी भूकंप आ सकते हैं। इसका कारण है कि आर्कटिक के प्रेमाफ्रोस्ट और शेल्फ जोन से मीथेन गैस का रिसाव सबसे अधिक होता है। दरअसल रिपोर्ट के अनुसार, यह गैस जलवायु को गर्म करने में सर्वाधिक भूमिका निभाती है। यहां सबसे ज्यादा भूमिका निभाते हैं प्रेमाफ्रोस्ट। ये वो क्षेत्र हैं जो दो या उससे अधिक वर्षो तक बर्फ से ढके रहते हैं।
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शेल्फ जोन करते हैं प्रभावित वहीँ, शेल्फ जोन भी इसे प्रभावित करते हैं। यह वो हैं इलाके हैं जो महाद्वीपीय से हैं और पानी के भीतर समुद्रतल से कम ऊंचाई पर स्थिति होते हैं। इन इलाकों में पानी की गहराई कम होती है।
यह रिपोर्ट जर्नल जियोसाइंसेस में प्रकाशित हुई है। इसके मुताबिक इस क्षेत्र में अचानक तापमान में बदलाव के कारकों पर डिटेल से चर्चा की गई। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग का मुख्य कारण व्यापक रूप से मानव गतिविधि को ही माना गया है। यह गतिविधि वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को बढ़ाता है। हालांकि, यहां यह भी स्पष्ट नहीं करता है कि तापमान कभी-कभी अचानक क्यों बढ़ जाता है।
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आर्कटिक की निगरानी शुरू वहीँ, यह भी बताया गया है कि शोधकर्ताओं ने आर्कटिक की निगरानी शुरू कर दी है जिसमें दो बार अचानक गर्मी बढ़ते हुए देखा गया है। इस रिपोर्ट में रूस के मकाऊ इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिक्स एंड टेक्नोलॉजी के शोधकर्ता लियोपोल्ड लॉबकोवस्की ने कहा कि अचानक तापमान में बढ़ने या कम होने का मुख्य कारण भू-आवेग (जियो-डायनामिक) कारकों को प्रभावित करते हैं।
रिपोर्ट में इनके कारणों में विशेष रूप से अलेउतियन आर्क में बड़े भूकंपों की एक श्रृंखला की ओर भी इशार किया है, जो आर्कटिक के सबसे नजदीक स्थिति एक ज्वालामुखी क्षेत्र है।
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भूकंप और जलवायु के बीच है संबंध अलेउतियन आर्क में बड़े भूकंप और जलवायु के गर्म होने के बीच एक क्लियर रिलेशन देखा गया है। जो वेग यहां हैं उनमें स्थलमंडल (लिथोस्फेयर) में तनाव पैदा करने के लिए पहले से ही एक तंत्र मौजूद है। यदि इस पर बाहर से या अन्य कारकों से दबाव पड़ता है तो ये प्रेमाफ्रोस्ट को खत्म करने लगता है, जिससे मीथेन का रिसाव होने लगता है और गर्मी बढ़ने लगती है और फिर तापमान बढ़ने में भूगर्भीय हलचल बढ़ जाती है।
इस रिपोर्ट में यह भी दावा भी किया गया है कि अलेउतिन आर्क 20वीं शताब्दी में भूकंपों के लिए एक साइट सरीखी हो गई थी, जहां आए दिन भूकंप आते थे।
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