नई दिल्ली/कामिनी बिष्ट। साल 2015 में जिस प्रकार दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी (AAP) को प्रचंड बहुमत दिया था, उसी प्रकार 5 साल बाद फिर से 2020 में राजधानी के लोगों ने केजरीवाल पर विश्वास जताया और 62 सीटें दिलाकर AAP को बंपर जीत दिलाई। खुद को दिल्ली में बसने वाले हर एक परिवार का बड़ा बेटा बताने वाले सीएम केजरीवाल ने इस पूरे साल अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना किया। आई जानते हैं कि वो कौन सी मुख्य चुनौतियां है जिनसे जूझते हुए कटा केजरीवाल सरकार का साल 2020।
चुनावी जीत से पहले ही केजरीवाल सरकार के सामने बहुत बड़ी चुनौती संशोधित नागरिकता कानून के विरोध रूप में खड़ी हो गई थी। हालांकि विकास के मुद्दों पर चुनाव लड़ने की रणनीति के तहत आम आदमी पार्टी ने इस मुद्दे को चुनावी माहौल में तरजीह नहीं दी, लेकिन सरकार बनने के बाद CAA विरोध हिंसक हुआ और दिल्ली दंगों के रूप में एक बहुत बड़ी चुनौती दिल्ली सरकार के सामने आई। एक ओर जहां देश में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दो दिवसीय दौरे पर थे, वहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक अपना विरोध दर्ज कराने के लिए सीएए का विरोध करने वालों ने ट्रंप के दौरे में ही जमकर बवाल काटा। फरवरी की 24 से 26 तारीख तक दिल्ली दंगों की आग में जल रही थी।
हिंसक प्रदर्शन बना सांप्रदायिक दंगा दरअसल सीएए समर्थ और सीएए विरोधी इस दौरान आपस में भिड गए। शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ 15 दिसंबर 2019 से ही धरना प्रदर्शन शुरू हो गया था, जो दिल्ली दंगों के बाद भी लॉकडाउन लगने तक चलता रहा। वहीं जाफराबाद, जामिया और अन्य स्थानों पर भी लगातार प्रदर्शन हो रहा था। शाहीन बाग धरने के कारण स्थानीय लोगों को आवाजाही में बारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे में समय बीतने पर फरवरी में सीएए समर्थक भी मैदान में उतरने लगे और विरोधियों के खिलाफ समर्थक खड़े हो गए। देखते ही देखते ये प्रदर्शन हिंसक हुए और सांप्रदायिक दंगों में बदल गए।उत्तरपूर्वी दिल्ली इन दंगों का केंद्र रही। देश की राजधानी में चारों ओर डर का माहौल बन गया। दंगाइयों को रोकने के उद्देश्य से मेट्रो स्टेशन बंद किए गए। भारी पुलिस और अर्धसैनिक बल की तैनाती की गई।
दंगो में हुई भारी तबाही इन दंगों में 53 लोग मारे गए और 200 से अधिक लोग घायल हुए। करोड़ों की संपत्ती जलकर राख हो गई। दंगाई घरों से बाहर निकलने वालों को सड़कों पर मार रहे थे। पत्थर, डंडे, तलवारे, बंदूके लिए दंगाई राजधानी की सड़कों पर थे। इस दौरान दंगाइयों ने पुलिस पर पिस्तौल तान दी, तो कहीं उन पर जमकर पत्थर बरसाए गए। एक पुलिस कॉन्स्टेबल की निर्मम हत्या कर दी गई। वहीं कई प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि पुलिस सीएए समर्थकों का साथ दे रही थी और विरोधियों को पीटा जा रहा था। इस बीच केजरीवाल सरकार अपने कामों में व्यस्त थी, क्योंकि दिल्ली में लॉ एंड ऑर्डर की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है। हालांकि दिल्ली सरकार की ओर से दंगा बंद करने की अपील लगातार की गई।
दंगों के बाद दिल्ली सराकर के सामने थी ये चुनौती दिल्ली सरकार की असली चुनौती दंगो में बेघर हुए लोगों को बसाने और उनके खाने रहने की व्यवस्था करने की थी। दंगा शांत होने के बाद जिन लोगों के अपने मारे गए और जिनके घर जलाए गए उनकी तादाद काफी अधिक थी। ऐसे में उन लोगों के रहने के लिए सरकार ने टेंट लगाकर व्यवस्था की। उनके मुआवजे का इंतजाम किया और उनके जले और टूटे हुए घरों की रिपेयरिंग का जिम्मा उठाया। इतने सब काम हो ही रहे थी कि फिर एक ऐसी समस्या सामने आई जिसकी कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।
लॉकडाउन, मजदूरों की बेबसी और सरकार की जिम्मेदारी दिल्ली दंगों के घाव बिल्कुल हरे थे कि तभी चीन के वुहान शहर से निकले कोरोना वायरस ने भारत में तबाही मचाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते संक्रमित बढ़ने लगे। फ्रंट पेज की खबर रहने वाली दिल्ली दंगों और शाहीन बाग की खबरों का स्थान कोरोना संक्रमण से संक्रमित और मरने वाले लोगों की खबरों ने ले लिया। मार्च में ही जब हालात बिगड़ने लगे तो केंद्र सरकार की ओर से सम्पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई। सब कुछ ठप हो गया। लॉकडाउन की सबसे बड़ी मार मजदूरों पर प़ड़ी। उद्योग-फैक्ट्रियां-निर्माण कार्य बंद हो गया। मज़दूरों को भी घरों में बंद होना पड़ा। प्रवासी मजदूरों के सामने खाने की बड़ी समस्या पैदा हो गई। ऐसे में दिल्ली सरकार ने कई सरकारी स्कूल और दूसरी जगहों पर खाना बांटना शुरू कर दिया। इसके साथ ही लोगों को रहने के लिए जगह भी उपलब्ध कराई। इसके साथ ही सरकार ने फ्री में राशन बांटना भी शुरू कर दिया। दिल्ली की सड़कें लंबी-लंबी लाइनों की गवाह बनीं। लोग खाना मिल जाए इसके लिए लाइनों में लगे रहते थे।
मरकज केस के बाद कोरोना हॉटस्पॉट बन गई दिल्ली कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे थे। इसके साथ ही 30 मार्च राजधानी के निजामुद्दीन में मरकज़ से कोरोना वायरस का केस सामने आया। निजामुद्दीन मरकज तब्लीगी जमात का इंटरनेशनल हेडक्वार्टर है। इसके बाद देखते-देखते वहां सैकड़ों की संख्या में कोरोना वायरस संक्रमित लोग मिले। निजामुद्दीन मरकज कोरोना हॉट-स्पॉट बन गया। इसके साथ ही दिल्ली में कोरोना संक्रमितों का ग्राफ तेजी से बढ़ने लगा। वहीं दिल्ली में अप्रैल के अंत और मई महीने की शुरुआत में कोरोना अपने चरम पर पहुंचा। मौतों की संख्या बढ़ने लगी और अस्पतालों में मरीजों को बेड नहीं मिलने की खबरों से अखबार पटे पड़े थे।
केंद्र ने की केजरीवाल सरकार की मदद दिल्ली में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ने लगे. इसके बाद जून में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक की। इस बैठक के बाद उन्होंने कहा कि दिल्ली में कोरोना वायरस के मामले बहुत तेजी से बढ़ सकते हैं। इसके बाद गृह मंत्रालय ने छतरपुर में दुनिया का सबसे बड़ा राधा स्वामी सत्संग ब्यास को 10000 बेड के अस्पताल में बदल दिया।
दिल्ली में प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना का इलाज 15 अप्रैल को एक बैठक के बाद दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने ऐलान किया कि कोरोना को हराने के लिए दिल्ली प्लाज्मा तकनीक का प्रयोग कर सकता है। इसके बाद 20 अप्रैल को एक कोरोना संक्रमित जोकि वेंटिलेटर पर था, उसे प्लाज़ा थैरेपी के द्वारा ठीक किया गया. भारत में प्लाज़ा थैरेपी से ठीक होने का ये पहला केस था। 5 जुलाई को दिल्ली में भारत की पहली प्लाजा बैंक की स्थापना की गई। प्लाजा बैंक का उद्देश्य था कि जो लोग कोरोना से सही हो चुके हैं वो अपनी इच्छा से प्लाजा का डोनेशन करें। दिल्ली की कोरोना से लड़ाई अब भी जारी है, हालांकि हालात कंट्रोल में हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही देश में वैक्सीन आने वाली है और केजरीवाल सरकार वैक्सीनेशन की तैयारी में है।
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