Friday, Sep 29, 2023
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sc verdict on maharashtra a legal political and moral slap on bjp: congress

महाराष्ट्र पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भाजपा के लिए ‘कानूनी, राजनीतिक और नैतिक तमाचा': कांग्रेस

  • Updated on 5/11/2023

नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। कांग्रेस ने महाराष्ट्र में महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार गिरने और सामने आये राजनीतिक संकट से जुड़े मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले को भारतीय जनता पार्टी के लिए ‘कानूनी, राजनीतिक और नैतिक तमाचा' करार देते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि अब राज्य विधानसभा को एकनाथ शिंदे गुट के विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने की मांग वाले आवेदन पर फैसला करना चाहिए।

पार्टी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने यह दावा भी किया कि अगर महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर फैसला करते हैं तो शिंदे गुट के विधायकों को अयोग्य ठहराना होगा, इसलिए ऐसा लगता है कि उनकी ओर से निर्णय में विलंब होगा। उनका कहना था कि अगर इसमें ज्यादा विलंब हुआ तो इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जाएगी। सिंघवी इस मामले में बतौर वकील उद्धव ठाकरे गुट की तरफ से उच्चतम न्यायालय की पैरवी कर रहे थे। उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘महाराष्ट्र के निर्णय के बाद अब कुछ नहीं बचा है।

निर्णय में कहा गया है कि व्हिप राजनीतिक दल का होती है, विधायक दल का नही होत। शिंदे गुट के व्हिप को गैरकानूनी माना गया है, विधानसभा अध्यक्ष ने शिंदे गुट को वैध माना वो भी गैरकानूनी है और राज्यपाल ने विधानसभा में बहुमत परीक्षण के बारे में जो निर्णय लिया वो पूरी तरह गैरकानूनी है।'' उन्होंने सवाल किया, ‘‘क्या यह भाजपा के लिए कानूनी, राजनीतिक और नैतिक तमाचा नहीं है?''

सिंघवी ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री के रूप में बरकरार नहीं किया, इस बात का महत्व बहुत कम हो जाता है। मूल बात यह है कि विधानसभा अध्यक्ष से कहा गया है वो विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग वाले आवेदन पर जल्द फैसला करें।'' उन्होंने दावा किया, ‘‘अगर विधानसभा अध्यक्ष कानून और संविधान का मार्ग अपनाते हैं तो उन्हें विधायकों को अयोग्य ठहराना पड़ेगा क्योंकि जिस व्हिप के आधार पर शिंदे गुट को मान्यता देने का फैसला किया गया था वो गैरकानूनी है।''

सिंघवी ने कहा, ‘‘भाजपा के कुछ पदाधिकारियों और उनकी सरकारों का जो चाल, चरित्र और चेहरा रहा है उसे देखकर लगता है कि इस निर्णय में विलंब होगा। अगर निर्णय होता है तो इसमें सिर्फ अयोग्य ही ठहराया जा सकता है।'' उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि पिछले साल 30 जून को महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को बुलाना सही नहीं था।

हालांकि न्यायालय ने पूर्व की स्थिति बहाल करने से इनकार करते हुए कहा कि ठाकरे ने शक्ति परीक्षण से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। महाराष्ट्र में पिछले साल शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे नीत महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार गिरने और सामने आये राजनीतिक संकट से जुड़ी अनेक याचिकाओं पर सर्वसम्मति से अपने फैसले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि शिंदे गुट के भरत गोगावाले को शिवसेना का व्हिप नियुक्त करने का विधानसभा अध्यक्ष का फैसला ‘अवैध' था।

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा , चूंकि ठाकरे ने विश्वास मत का सामना किये बिना इस्तीफा दे दिया था, इसलिए राज्यपाल ने सदन में सबसे बड़े दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कहने पर सरकार बनाने के लिए शिंदे को आमंत्रित करके सही किया। पीठ में न्यायमूर्ति एम आर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारि, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा शामिल थे। 

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