नई दिल्ली/टीम डिजिटल। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एम वीरप्पा मोइली ने बृहस्पतिवार को कहा कि राजद्रोह का कानून भारत की अंतरात्मा के खिलाफ है और यह सही समय है कि उच्चतम न्यायालय इसे आपराधिक कानून के पन्नों से हटाने पर विचार करे। मोइली की यह टिप्पणी उस दिन आई है जब उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह इस कानूनी प्रश्न पर 10 मई को दलीलों पर सुनवाई करेगी कि क्या राजद्रोह पर औपनिवेशिक काल के दंडनीय कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को किसी बड़ी पीठ को भेजा जाए और केंद्र को इस पर जवाब देने के लिए समय दिया जाए।
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मोइली ने कहा कि राजद्रोह के कानून पर एक बार फिर सार्वजनिक बहस शुरू हो गयी है और जनता का ध्यान इस विषय पर है। पूर्व केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री और वरिष्ठ वकील मोइली ने कहा कि अंग्रेजों ने महात्मा गांधी और बालगंगाधर तिलक जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को चुप करने के लिए पूरी तरह इस कानून को लागू किया था।
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उन्होंने कहा, ‘‘राज्यों और केंद्र दोनों जगह भिन्न मत रखने वाले ऐसे लोगों को चुप करना अब रोज की बात हो गयी है जो स्थापित सरकारों के रुख के खिलाफ हैं। अंतत: देश के लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या के लिए कानून का दुरुपयोग किया जाता है।’’ वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘धारा 124 ए (राजद्रोह) के प्रावधानों के तहत वास्तविक देशभक्तों को सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है और सरकारों ने लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति पर हमले किये हैं।’’
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उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने धारा 124 ए को जहां ‘नागरिकों की स्वतंत्रता को दबाने के लिए बनाई गयी आईपीसी की राजनीतिक धाराओं के बीच पिं्रस’ कहा था, वहीं जवाहरलाल नेहरू ने इस प्रावधान को ‘अत्यंत आपत्तिजनक’ बताया था। मोइली ने कहा, ‘‘देश को इस कानून को समाप्त कर देना चाहिए क्योंकि यह स्वतंत्र विचारों को दबाने की औपनिवेशिक विरासत वाला है। इसलिए राजद्रोह का कानून भारतीय राष्ट्र की अंतरात्मा के खिलाफ है।’’
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उन्होंने कहा कि दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने सार्वजनिक व्यवस्था पर अपनी पांचवीं रिपोर्ट में राजद्रोह समेत संघीय अपराधों संबंधी अनेक प्रावधानों पर विचार किया था और उन अपराधों पर पुन: विचार की सिफारिश की जिनका अंतरराज्यीय या राष्ट्रीय प्रभाव है। मोइली ने कहा, ‘‘यह सही समय है कि उच्चतम न्यायालय देश के आपराधिक कानून के पन्नों से राजद्रोह के कानून को हटाने पर विचार करे क्योंकि उक्त कानून देश में देशभक्ति के मूल्यों के खिलाफ है।’’
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