नई दिल्ली/विमल वधावन। विश्वविद्यालय के साथ सम्बद्ध दयाल सिंह सांध्य कालेज के एक प्राध्यापक अशोक कुमार सिंह के विरुद्ध कार्यस्थल पर कामुक अपराध की शिकायतें की गई थीं। इन शिकायतों की जांच एक आंतरिक शिकायत समिति ने की। समिति ने आरोपी के विरुद्ध 3 रिपोर्टें प्रस्तुत कीं जिनमें केवल ऊपरी तौर पर यह कहा गया था कि शिकायतों में दम है। इसके अतिरिक्त रिपोर्ट में कोई विशेष निर्णय या आरोपी के विरुद्ध कार्रवाई की बात नहीं कही गई। आरोपी ने दिल्ली उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश के समक्ष इन तीनों रिपोर्टों के विरुद्ध चुनौती याचिका प्रस्तुत की। इसके अतिरिक्त इन तीनों रिपोर्टों को जारी करने से पूर्व सम्पन्न की गई प्रक्रिया के दौरान आरोपी को गवाहों से पूछताछ की अनुमति नहीं दी गई थी। आरोपी को अपने बचाव में किसी गवाह को प्रस्तुत करने की भी अनुमति नहीं दी गई।
नोटबंदी का एक साल: फैसला सही, पर तैयारियों ने रुलाया
इस प्रकार आंतरिक छानबीन समिति की कार्यप्रणाली न्याय के नैसर्गिक सिद्धांतों के विरुद्ध होने के कारण इन रिपोर्टों को रद्द करने की प्रार्थना की गई थी। रिट याचिका की सुनवाई करने के उपरांत एकल न्यायाधीश ने अपने निर्णय में कहा कि ये तीनों रिपोर्टें कार्य स्थल पर कामुक शोषण की रोकथाम से संबंधित कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करती हैं क्योंकि इनमें याचिकाकर्ता को स्पष्ट रूप से दोषी ठहराते हुए कोई घोषणा नहीं की गई। इसलिए एकल न्यायाधीश ने इन रिपोर्टों को रद्द करने की घोषणा की और पुन: छानबीन के लिए आंतरिक शिकायत समिति को निर्देश जारी किए। एकल न्यायाधीश ने याचिकाकत्र्ता के इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया कि उसे गवाहों से पूछताछ करने तथा अपने गवाह प्रस्तुत करने का अवसर नहीं दिया गया था। एकल न्यायाधीश के निर्णय को किसी प्रतिवादी ने चुनौती नहीं दी अत: उनके लिए यह निर्णय अंतिम रूप धारण कर चुका है।
'मैं उसी तरह तो बहलता हूं और सब जिस तरह बहलतें हैं', सोशल मीडिया ने जिंदा रखा है जॉन एलिया को
इस प्रकार याचिकाकत्र्ता ने अपने प्रमुख तर्कों को अस्वीकार किए जाने के विरुद्ध 2 न्यायाधीशों की खंडपीठ के समक्ष अपील प्रस्तुत की। अपील में याचिकाकत्र्ता की तरफ से प्रमुख तर्क यही दिया गया कि शिकायत के समर्थन में प्रस्तुत गवाहों से पूछताछ करने तथा अपने बचाव में गवाह पेश करने का अधिकार नैसॢगक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है। इस संबंध में कई पूर्व निर्णयों के संदर्भ भी प्रस्तुत किए गए। कार्यस्थल पर महिलाओं के कामुक शोषण से संबंधित कानून की धारा-11 में यह स्पष्ट कहा गया है कि जब दोनों पक्ष अर्थात शिकायतकत्र्ता तथा आरोपी एक ही संगठन में कार्य करते हों तो उन्हें सुनवाई का पूरा अधिकार मिलना चाहिए।
शिकायत समिति की रिपोर्ट की प्रतियां दोनों को दी जानी चाहिएं जिससे वे आवश्यकतानुसार उस रिपोर्ट के विरुद्ध अपने तर्क प्रस्तुत कर सकें। इस कानून की धारा-7 में यह कहा गया है कि शिकायत समिति नैसॢगक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप ही कार्रवाई करेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने भी ऐसे मामलों में गवाहों से पूछताछ के अधिकार को मान्यता प्रदान की है।
दिल्ली उच्च न्यायालय की कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल तथा अन्नू मल्होत्रा की खंडपीठ ने सभी तर्कों और सिद्धांतों पर विचार करने के बाद दिए गए अपने निर्णय में आंतरिक शिकायत समिति को एक सार्थक छानबीन के लिए निम्न प्रक्रिया के अनुसार कार्रवाई करने का निर्देश दिया। शिकायतों पर 2 सप्ताह के भीतर पुन: छानबीन प्रारंभ की जाए। छानबीन प्रक्रिया की लिखित सूचना आरोपी को दी जाए। आरोपी को गवाहों से पूछताछ करने के लिए एक प्रश्नोत्तर प्रस्तुत करने के लिए कहा जाए जो गवाहों को दिया जाएगा। गवाह आंतरिक शिकायत समिति को उन प्रश्नों का उत्तर देंगे। गवाहों के द्वारा उत्तर देने की यह प्रक्रिया एक ही दिन में की जानी चाहिए। गवाहों से पूछताछ करते समय शिकायतकत्र्ता या आरोपी कोई भी समिति के समक्ष उपस्थित नहीं रहेंगे।
नोटबंदी के बाद कुछ इस तरह लाचार हुए थे लोग, देखें तस्वीरें
गवाहों से पूछताछ करते समय उन्हें अन्य गवाहों के साथ भी प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए। इसके बाद गवाह के उत्तर की प्रति आरोपी को दी जानी चाहिए जो गवाह से पूछताछ करे। इसके उपरांत आरोपी को अपने बचाव में भी गवाह प्रस्तुत करने की अनुमति दी जाए। बचाव पक्ष के गवाहों से पूछताछ करने के लिए भी उसी प्रकार की प्रक्रिया अपनाई जाए जैसी शिकायतकत्र्ता के गवाहों से पूछताछ के समय अपनाई गई। गवाहों की पूछताछ के बाद दोनों पक्षों की व्यक्तिगत सुनवाई आंतरिक शिकायत समिति करेगी। इसके बाद ही समिति प्रत्येक शिकायत पर अपनी अलग-अलग रिपोर्ट संस्था के सक्षम अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करे। यदि आंतरिक शिकायत समिति में किसी सदस्य का पद रिक्त हो तो उसकी पूॢत एक सप्ताह में की जानी चाहिए। शिकायत समिति के द्वारा सारी कार्रवाई 3 माह में पूरी की जानी चाहिए।
नोटबंदी का एक साल: 2017 के इन चंद महीनों में गई 15 लाख नौकरियां
इस प्रकार दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने कार्यस्थलों पर कामुक शोषण की शिकायतों को लेकर अपनाई जाने वाली छानबीन प्रक्रिया को नियमबद्ध करने का प्रयास किया है। यह प्रक्रिया सारे देश में अपनाई जानी चाहिए। कार्यस्थलों पर महिलाओं के कामुक शोषण को पूरी गंभीरता के साथ समाप्त करने की दिशा में कार्य होना चाहिए। क्योंकि कार्यस्थलों पर कामुक शोषण एक तरफ कार्यालय के वातावरण को दूषित करता है, तो दूसरी तरफ महिलाओं के आत्मविश्वास को समाप्त करता है। इस प्रकार कार्यालयों की कार्यक्षमता भी प्रभावित होती है। (एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
Hindi News से जुड़े अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करें।हर पल अपडेट रहने के लिए NT APP डाउनलोड करें। ANDROID लिंक और iOS लिंक।
ओडिशा : कोरोमंडल एक्सप्रेस बालासोर में पटरी से उतरी, 50 की मौत, 350...
अंकिता भंडारी के परिजन ने की हत्याकांड की पैरवी कर रहे विशेष लोक...
हरियाणा : पुरानी पेंशन की बहाली के लिए सरकारी कर्मचारियों का साइकिल...
विपक्षी नेताओं के खिलाफ राजद्रोह कानून का इस्तेमास करना चाहती है...
बृजभूषण की गिरफ्तारी नहीं हुई तो किसान पहलवानों को जंतर-मंतर लेकर...
22 जून को अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करेंगे प्रधानमंत्री...
राजद्रोह के मामलों में सजा बढ़ाकर सात वर्ष की जाए : विधि आयोग की...
सिसोदिया को शनिवार को अपने घर पर बीमार पत्नी से मिलने की इजाजत मिली
पदक विजेता बेटियां न्याय मांग रही हैं और प्रधानमंत्री मोदी चुप हैं:...
राहुल गांधी ने मुस्लिम लीग को धर्मनिरपेक्ष पार्टी बताया, BJP ने की...