नई दिल्ली/कुमार आलोक भास्कर। दिल्ली में किसान आंदोलन लगातार जारी है। इस आंदोलन से दिल्लीवासियों और आसपास से राजधानी आने-जाने वालों को काफी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ रहा है। साथ ही इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि आंदोलनरत किसानों को भी दोहरी मार कपकंपाती ठंड और उपर से बारिश का भी सामना करना पड़ा है।जो काफी असहनीय है।
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केंद्र सरकार की हो रही किरकिरी
अगर इस आंदोलन से केंद्र सरकार की लगातार किरकिरी हो रही- यह कहना गलत नहीं होगा। भले ही केंद्र सरकार ने 8 वें दौर तक की बातचीत किसानों के साथ की हो लेकिन यह बेनतीजा रहा। जो केंद्र सरकार के लिये भी चिंता का विषय बनी हुई है। कारण कोरोना काल में 40 दिन से ज्यादा किसानों का आंदोलन के लिये बैठना कहीं न कहीं सरकार की विफलता को भी दर्शाता है।
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दिल्ली में कड़ाके की ठंड और बारिश
दिल्ली में आंदोलन ऐसे समय हो रहा है जब ठंड अपने चरम पर है। वहीं दो-चार दिनों से बारिश ने खुले में रहने को मजबूर भारी संख्या में किसानों की नींद ही उड़ा दी है। हालांकि संगठनों ने अपने स्तर पर किसानों को राहत पहुंचाने के लिये टेंट की भी व्यवस्था की है। इसके वाबजूद घर से दूर बाहर में रातें गुजारना ठंड के मौसम में कोई आसान नहीं है। उधर जब 8वें दौर की बातचीत के लिये किसान संगठन के प्रमुख नेताओं से केंद्र सरकार के साथ बातचीत की। तो एक बार फिर सहमति नहीं बन पाई। कृषि मंत्री ने कृषि कानून में संसोधन की बात कही तो किसान नेताओं ने सीधे कृषि कानून को वापस की मांग पर अड़े रहे।
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सरकार के साथ अब तक कई दौर की बातचीत
उधर कृषि मंत्री ने बैठक के बाद इस बात पर जोर दिया कि दोनों पक्षों को सकारात्मक रुख अपनाना चाहिये,ताकि जल्द से जल्द समाधान हो सकें। हालांकि फिर से 8 जनवरी को बैठक होगी,जिस पर सबकी नजर फिर से टिक गई है। लेकिन कृषि मंत्री का यह बयान बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा कि किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले देश भर के किसान संगठनों की भी बात सुनी जाएगी। जिससे एक बात साफ हो गया है कि यह आंदोेलन जल्द खत्म होने नहीं जा रहा है। इस आंदोलन में ज्यादातर किसान पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही है। ऐसे में कृषि मंत्री के नए बयान से फिर से पेंच फंसना स्वाभाविक है। दूसरी तरफ किसान संगठन कानून को ही वापसी चाहते है जो सरकार के लिये आसान नहीं है।
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