नई दिल्ली/टीम डिजिटल। देश में हो रही ‘त्रासद घटनाओं’ पर चिंता जाहिर करते हुए प्रबुद्ध नागरिकों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुले पत्र में कहा है कि ‘‘जय श्री राम’’ का उद्घोष भड़काऊ नारा बनते जा रहा है और इसके नाम पर पीट-पीट कर हत्या के कई मामले हो चुके हैं। फिल्मकार श्याम बेनेगल और अपर्णा सेन, गायिका शुभा मुद्गल और इतिहासकार रामचंद्र गुहा समाजशास्त्री आशीष नंदी सहित 49 नामी शख्सियतों ने 23 जुलाई को यह पत्र लिखा है। इसमें कहा गया है कि ‘‘असहमति के बिना लोकतंत्र नहीं होता है।’’
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पत्र में कहा गया है, ‘‘हम शांतिप्रिय और स्वाभिमानी भारतीय के रूप में, अपने प्यारे देश में हाल के दिनों में घटी कई दुखद घटनाओं से चिंतित हैं।’’ पत्र में कहा गया है, ‘‘मुस्लिमों, दलितों और अन्य अल्पसंख्यकों की पीट-पीटकर हत्या के मामलों को तत्काल रोकना चाहिए। हम एनसीआरबी का आंकड़ा देखकर चौंक गए कि वर्ष 2016 में दलितों पर अत्याचार के कम से कम 840 मामले थे और दोषसिद्धि के प्रतिशत में भी गिरावट आयी।’’
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पत्र में कहा गया है कि जय श्री राम के उद्घोष को भड़काऊ नारे में बदल दिया गया है और इससे कानून-व्यवस्था की समस्या होती है और इसके नाम पर पीटकर हत्या के कई मामले हो चुके हैं। यह हैरान करने वाली है कि धर्म के नाम पर इतनी हिंसा हो रही है। पत्र में कहा गया, ‘‘ये मध्य युग नहीं हैं। भारत के बहुसंख्यक समुदाय में राम का नाम कई लोगों के लिए पवित्र है। इस देश की सर्वोच्च कार्यपालिका के रूप में आपको राम के नाम को इस तरीके से बदनाम करने से रोकना होगा।’’
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विशिष्ट जनों ने कहा कि संसद में ऐसी घटनाओं की आलोचना करना पर्याप्त नहीं है। वास्तव में अपराधियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है ? हमें ²ढ़ता से लगता है कि ऐसे अपराधों को गैर-जमानती घोषित किया जाना चाहिए और ऐसी सजा होनी चाहिए जो दूसरों के लिए उदाहरण बने। यह लोकतंत्र में असंतोष के महत्व को भी रेखांकित करता है।
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पत्र में विशिष्ट जनों ने कहा है कि असहमति के बिना कोई लोकतंत्र नहीं है। लोगों पर राष्ट्रविरोधी या शहरी नक्सली का लेबल नहीं लगाना चाहिए और सरकार के खिलाफ असहमति जताने की वजह से कैद में नहीं डाला जाना चाहिये। पत्र में कहा गया है कि अगर कोई सत्तारूढ़ दल की आलोचना करता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वे राष्ट्र के खिलाफ हैं।
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