नई दिल्ली/टीम डिजिटल। केंद्र के कृषि विरोधी कानून पर बिगड़े किसानों के प्रदर्शन के कारण रेलवे ने नुकसान के डर से माल ढुलाई की सेवाओं पर रोक लगा रखी है। रोक के कारण ही राज्य को बिजली कटौती से जूझना पड़ रहा है, क्योंकि बिजली उत्पादन इकाइयों को कोयले की सप्लाई कम हो रही है।
कृषि कानून पर विरोध के बाद रेलवे ने 1 अक्टूबर से राज्य में माल ढुलाई के काम पर रोक लगा दी थी जो बाद में आंशिक रूप से चला लेकिन फिर रोक दिया गया।
बताया जा रहा है कि पंजाब के तीन ताप बिजली संयंत्रों में 4 नवंबर को कोयला खत्म हो चूका था। जबकि दूसरे दो संयंत्रों में 6 से 11 दिन के लिए कोयला मौजूद है। बढ़ती समस्या के बीच रेलवे ने राज्य सरकार के साथ एक बैठक में सेवाएं फिर से शुरू किए जाने को लेकर मौजूदा स्थिति पर समीक्षा की।
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इस बारे में रेलवे बोर्ड के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) और चेयरमैन वीके यादव ने कहा, 'पंजाब के बिजली संयंत्रों में कोयले की आपूर्ति की स्थिति गंभीर है। बड़ी संख्या में कोयले के रैक पंजाब के बाहर खड़े हैं और पंजाब में और जम्मू कश्मीर जाने का इंतजार कर रहे हैं। जितनी जल्दी बंदी खत्म हो जाएगी, हम बिजली क्षेत्र को आपूर्ति को प्राथमिकता देंगे।'
वहीं, पंजाब के किसान संगठनों ने राज्य में मालगाडिय़ों पर रोक लगाने के लिये भी केन्द्र सरकार को जिम्मेदार बताया, जिसके चलते राज्य में कोयले, उर्वरकों और अन्य जरूरी सामानों की आपूर्ति प्रभावित हुई है। इतना ही नहीं, इसका असर अनाज की सप्लाई पर भी पड़ा है। राज्य के गोदामों में इस समय 142.75 लाख टन अनाज पड़ा है। जबकि अक्टूबर व नवंबर महीने में 175 लाख टन धान की खरीद होने का अनुमान है। इसके बाद भी 117 लाख टन चावल को हर हाल में कवर्ड गोदामों में रखना ही होगा।
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उधर, बिजली की कटौती होने से खेतों में खाद की कमी बढ़ गई। कारोबारियों का स्टॉक बढ़ने लगा था। जिसके बाद इन्हीं मुद्दों को लेकर पंजाब सरकार केंद्र के खिलाफ विरोध जताने के लिए दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रर्दशन किया था।
बता दें, पंजाब में कोयले से चलने वाले 5 बिजली संयंत्र हैं, जिनकी कुल क्षमता 5,690 मेगावॉट है। बीते 2 हफ्तों से राज्य में बिजली की रोजाना की अधिकतम मांग 5,000 मेगावॉट है। वहीं बिजली के दूसरे सोर्स जिनमें पनबिजली सौर ऊर्जा हैं उनसे बिजली आपूर्ति में हिस्सेदारी करीब 800 मेगावॉट है।
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