Thursday, Mar 23, 2023
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Movie Review: पर्दे के संदीप सिंह पर दिखा असल जिंदगी का 'सूरमा'

  • Updated on 7/14/2018
  • Author : Alka Jaiswal

स्टारकास्ट: दिलजीत दोसांझ, तापसी पन्नू, अंगद बेदी, सतीश कौशिक, विजय राज
डायरेक्टरः शाद अली
प्रोड्यूसर: चित्रांगदा सिंह, दीपक सिंह
रेटिंग: 4 स्टार/5*


नई दिल्ली/अल्का जायसवाल। जब जिंदगी एक सीधे ढर्रे पर चल रही हो और अचानक एक ऐसा मोड़ आ जाए जो आपकी दुनिया पलटकर रख दे, तभी शुरू होती है हालातों के साथ एक जंग। अपनी आत्मशक्ति से इस जंग लड़ने और जीतने वाले को ही कहा जाता है असली सूरमा। एक ऐसे ही शख्स की कहानी है सूरमा जिसका नाम है संदीप सिंह, या ये कहना बेहतर होगा कि ये कहानी है फ्लिकर सिंह की...

भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान संदीप सिंह की जिंदगी पर बनी बायोपिक फिल्म सूरमा आज रिलीज हो गई है। ये फिल्म हमारे सामने एक ऐसे सूरमा की कहानी कहती है जिससे अब तक बहुत से लोग अंजान थे। एक ऐसी कहानी जिस पर शायद विश्वास करना मुश्किल हो लेकिन इससे मुंह फेरना शायद उस जज्बे के साथ और भी ज्यादा नाइंसाफी होगी जिसके साथ संदीप सिंह ने अपनी असल जिंदगी जी।

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रिश्ते और हौसले की कहानी है सूरमा
फिल्म की कहानी शुरू होती है 1994 के शाहबाद से जहां गांव का हर बच्चा भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा बनने के लिए मेहनत कर रहा होता है। इन्हीं बच्चों में शामिल होते हैं संदीप सिंह और उनके भाई बिक्रमजीत सिंह। हॉकी कोच के कठोर रवैये से परेशान होकर संदीप सिंह हॉकी से अपना पल्ला झाड़ लेता है। इसके बाद कहानी में आता है एक लीप और उसके बाद हमारे सामने होते हैं युवा संदीप सिंह (दिलजीत दोसांझ) और बिक्रमजीत सिंह (अंगद बेदी)।

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अब संदीप सिंह की लाइफ में एंट्री होती है हॉकी प्लेयर हरप्रीत (तापसी पन्नू) की जिससे संदीप अपना दिल दे बैठते हैं। संदीप का यही प्यार हॉकी को भी उनके करीब लाता है। हरप्रीत का परिवार दोनों के रिश्ते के खिलाफ रहता है जिसके चलते संदीप के सामने जिंदगी के कुछ कर दिखाने की शर्त रखी जाती है। अपने प्यार को पाने की ख्वाहिश संदीप के अंदर हॉकी के लिए एक ऐसा जज्बा पैदा कर देती है जो उन्हें भारतीय टीम में जगह दिलाती है।

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संदीप अपने सपने पूरे कर ही रहा होता है कि तभी आता है उनकी जिंदगी को पलट देने वाला एक ट्विस्ट। संदीप एक अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए ट्रेन से सफर कर रहे होते हैं कि तभी उनकी पीठ में गोली लग जाती है। इसके बाद संदीप कोमा में चले जाते हैं और जब होश में आते हैं तो पता चलता है कि उनके शरीर के नीचे का हिस्सा पैरालाइज हो चुका है। ये वो पल होता है जब उनके रिश्तों में कई उतार-चढ़ाव आते हैं और यहां से शुरू होता है संदीप का असली सूरमा बनने का सफर।

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क्या है खास?
इस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत ये है इसका स्क्रीनप्ले। कहानी को इतनी अच्छी तरीके से पेश किया गया है कि अगर आप हॉकी में इंटरेस्ट नहीं भी रखते हैं तो आप खुद को इससे जुड़ा हुआ महसूस करेंगे। जहां फिल्म के कुछ सीन आपकी आंखों में आंसू ले आएंगे, वहीं कुछ सीन आपको जिंदगी को जीने के जोश और खुशी से भर देंगे। फिल्म में आपको कई ऐसे भी सीन देखने को मिलेंगे जो आपको सोचने पर भी मजबूर करेंगे।

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अगर एक्टिंग की बाते करें तो दिलजीत दोसांझ ने इस किरदार को इस तरह से जिया है कि आप फिल्म में उनके किरदार में संदीप सिंह को देख सकते हैं। तापसी पन्नू ने भी अपने किरदार को बखूबी निभाया है। अगर फिल्म के बाकी किरदारों की बात करें तो अंगद बेदी और सतीश कौशिक ने फिल्म में बड़े भाई और पिता के किरदार को जिवंत कर दिया है। इस फिल्म में विजय राज ने भी संदीप सिंह के कोच की भूमिका निभाई है जो कि काफी दमदार है।

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फिल्म के डायलॉग भी अच्छे लिखे गए हैं। बिहारियों को लेकर फिल्म में कहे गए डायलॉग्स लोगों को हंसाने में कामयाब रहे हैं। फिल्म के म्यूजिक की बात की जाए तो भले ही फिल्म में तीन ही गानों हों लेकिन इन गाने के बोल और इसमें दी गई आवाजें आपके दिलों को छू लेती है। दिलजीत दोसांझ ने भी फिल्म में एक गाना गाया है जो हर बार की तरह लोगों के जुबान पर चढ़ा हुआ है। शंकर एहसान लॉय का म्यूजिक फिल्म में एक अलग ही जान डाल देता है।

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कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि इस फिल्म को सिर्फ खेल प्रेमियों से ही नहीं बल्कि हर उस शख्स से जोड़कर देखा जा सकता है जिसने अपनी जिंदगी में गिरने के बाद फिर वापस उठकर एक सराहनीय मुकाम हासिल किया है।

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