नई दिल्ली। अनामिका सिंह। आपकी हर खुशी में शामिल होने, ढेरों आशीर्वाद से आपके जीवन में हरेक रंग भरने की दुआ लिए ढोल की थाप पर नाचते-गाते किन्नर (ट्रांसजेंडर्स) हमेशा से ही रहस्यमयी दुनिया में जीते हैं। यही वजह है कि आम लोग इनके जीवन से लेकर मौत तक से जुड़ी परंपराओं के बारे में जानने के लिए हमेशा से ही उत्सुक रहते हैं। जहां इनकी पैदाइश पर पूरा परिवार गमगीन हो जाता है। वहीं इनकी मौत व अंतिम संस्कार भी बड़े रहस्यमयी ढंग से आधी रात को गुपचुप तरीके से किया जाता है। कहते हैं कि उस समय शौक मनाते हुए सभी किन्नर, ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि अगले जन्म में मृतआत्मा को किन्नर शरीर प्राप्त ना हो। लेकिन हम आपके मन की उत्सुकता को थोड़ा कम करते है और बताते हैं राजधानी दिल्ली में बने हिजड़ों के कब्रिस्तान के बारे में जिसे हिजड़ों के खानकाह के नाम से जाना जाता है दिल्ली चिडिय़ाघर में मना वर्ल्ड राइनो डे
पर्यटकों के लिए प्रतिबंधित है कब्रगाह में प्रवेश बता दें कि महरौली में छत्तावाली गली में स्थित हिजड़ों के खानकाह में उनकी कब्रें देखने को मिलती है। इस खानकाह का निर्माण 15वीं शताब्दी में किया गया था। ये जगह कुतुबमीनार के नजदीक ही सूफी संत कुतुबद्दीन बख्तियार काकी के मजार के पास बनी हुई है। इसे किन्नर समाज की ओर से अध्यात्म से जुडऩे का एक स्थान भी कहा जाता है। वैसे बता दें कि यहां प्रवेश प्रतिबंधित होने की वजह से पर्यटक यहां नहीं आते हैं। ये करीब 800 साल पुराना कब्रिस्तान है, जिसे पूर्व मुगल या लोदी काल का कहा जाता है यानि 15वीं शताब्दी के लगभग का समय बताया जाता है। इसमें कई ऐसे प्रमुख किन्नरों की कब्रें हैं जो मुगल हरम में बड़े ओहदे पर काम किया करते थे। वैसे प्रमुख मकबरा मियां साहब नामक हिजड़े का है। 1200 स्मृति चिन्हों के साथ पीएम उपहार की चौथे संस्करण की ई-नीलामी हुई शुरू
पुरानी दिल्ली के किन्नर करते हैं रख-रखाव हिजड़ों की खानकाह जो पर्यटकों से महरूम है और इसकी ऐतिहासिकता को धीरे-धीरे लोगों ने भूला दिया है। लेकिन आज भी यहां पुरानी दिल्ली के किन्नरों द्वारा समय-समय पर साफ-सफाई के साथ ही रख-रखाव का काम भी किया जाता है। ताकि इस जगह का अस्तित्व समाप्त ना हो जाए। यहां समय-समय पर किन्नरों द्वारा भंडारे का आयोजन कर गरीबों के बीच खाना भी बांटा जाता है।
कुछ इतिहासकार कहते हैं इसे तुगलकालीन इस कब्रिस्तान को लेकर इतिहासकारों के अपने अलग-अलग विचार हैं। जहां कुछ इतिहासकार इसे पूर्व मुगल या लोदीकाल का बताते हैं तो अधिकतर इतिहासकार इसकी वास्तुकला का अध्ययन कर कहते हैं कि इसका निर्माण तुगलक काल के दौरान किया गया था। इतिहासकारों का कहना है कि पुरानी दिल्ली के तुर्कमान गेट के हिजड़ों के पास इस कब्रगाह का मालिकाना हक है।
इतिहास में हिजड़ों का स्थान काफी ऊंचा था यदि बात महाभारत की करें तो शिखंडी नाम के एक हिजड़े का जिक्र आता है। जो युद्धकला में माहिर थे और भीष्म पितामह को मारने का प्रण लेकर आए थे। वहीं बात यदि अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल की करें तो उसका कोषाध्यक्ष हिजड़ा था। वो खिलजी के सभी आर्थिक मसलों में पूरा हस्तक्षेप रखता था और कितना पैसा किसको देना या लेना है उसका पुरा लेखा-जोखा उसके पास रहता था। दिल्ली के ऐतिहासिक अखाड़े, जहां युवा पहलवान सीख रहे हैं दांवपेंच
औरंगजेब ने भी की थी किन्नर से सगाई ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार मुगल बादशाह शाहजहां को परेशान करने के लिए उनका बेटा औरंगजेब तरह-तरह के उपाय किया करता था। उसने एक बार किन्नर से सगाई तक कर ली थी। इतना ही नहीं मुगल हरम में बेगमों व शहजादियों के साथ अंगरक्षकों की जगह हिजड़ों को रखा जाता था। जोकि युद्ध कला में पारंगत भी हुआ करते थे।
हिजड़ों की खानकाह की वास्तुकला हिजड़ों की खानकाह में आने के लिए संकरी गली व द्वार से होकर प्रमुख इमारत के परिसर में प्रवेश किया जा सकता है। अंदर आने के लिए संगमरमर की सीढिय़ां चढ़कर एक बड़े आंगन में पहुंचते हैं। जहां सफेद संगमरमर की कई कब्रें देखने को मिलती हैं। मकबरे के पश्चिम द्वार की ओर एक छोटी सी छत है और मस्जिद है जहां प्रार्थना की जा सकती है।
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