नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। आस्तीन का सांप धोखेबाज को कहा जाता है। चीन तो आस्तीन का ऐसा ड्रैगन है, जो बार-बार दोस्त बनकर भारत को धोखा देता है। अपने पड़ोसी देशों की जमीन पर बुरी नजर रखने वाला चीन लगातार सीमाओं पर तनाव पैदा करने के लिए पूरी दुनिया में बदनाम है।
अपने इसी लालच और महत्वाकांक्षा की वजह से वह भारत के साथ एक 1962 में जंग भी लड़ चुका है। इसके अलावा सीमा पर विवाद होते रहते हैं। 1971 में सिक्किम हुई झड़प में मुंह की खाने के बाद चीन लंबे समय तक शांत रहा। मगर पिछले दो साल से वह फिर उन्हीं हरकतों पर उतर आया।
1954 हिंदी-चीनी भाई-भाई
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दुनिया का परिदृश्य बदल रहा था। यह 1954 की बात है। बसंत भी बीत चुका था। भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और चीन के राष्ट्रपति माओ त्से तुंग करीब साढ़े 4 घंटे तक दोस्ताना माहौल में बात हुई। यह 18 अप्रैल को बादुंग कान्फ्रेंस में के दौरान दोनों नेताओं ने मुलाकात की।
माओ ने माना कि आर्थिक विकास में चीन की तुलना में भारत अच्छी प्रगति कर रहा है। उसके बाद 19 अक्तूबर 1953 में अपनी दूसरी मुलाकात में भी माओ ने नेहरू से कहा कि पश्चिमी देश पूर्व के लोगों पर अपना आर्थिक वर्चस्व थोप रहे हैं। इस पर नेहरू ने भी सुझाव दिया कि भारत और चीन की आबादी एक अरब है और वह मिलकर ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इस मौके पर माओ ने नेहरू के पंचशील सिद्धांत को अपना समर्थन दिया और ‘हिंदी चीनी भाई-भाई का नारा भी दिया।’
1959 तिब्बत से पड़ी दरार
वर्ष 1959 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया। वहां से निर्वासित दलाई लामा ने भारत में शरण ली। तिब्बत पर चीन के कब्जे ने दोनों देशों के संबंधों को प्रभावित किया।
1962 चीनी सेना ने छेड़ दी जंग
चीनी दोस्ती की असलीयत आठ साल में ही सामने आ गई। वह सिर्फ तिब्बत पर कब्जा करके ही नहीं रुका, बल्कि 1962 में चीनी सेना ने भारतीय इलाकों में घुसपैठ शुरू कर दी। पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी ने लद्दाख के पूर्व में मैकमोहन लाइन पार की। 20 अक्तूबर 1962 में लद्दाख से लेकर पूर्वी सीमा तक करीब 3225 किलोमीटर के क्षेत्र को विवादित बताते हुए चीनी सैनिक आगे बढ़े।
यह जंग 20 नवम्बर 1962 को थमी और चीन ने मैकमोहन लाइन को नकार कर अपने कब्जे वाले क्षेत्र को वास्तविक नियंत्रण रेखा घोषित कर दिया। इस जंग के लिए अमरीका और ब्रिटेन ने भारत को हथियार देने से इनकार कर दिया। ऐसे में रूस ने अपने मिग लड़ाकू विमान दिए और भारत तथा रूस के बीच दोस्ती का एक अध्याय शुरू हुआ।
अक्साईचिन और ऊंचाई वाले इलाकों पर चीन की सेना ने कब्जा कर लिया था। इस जंग की वजह भी अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश के सीमांत इलाकों पर चीन द्वारा अपनी दावेदारी करना था। चीन का इरादा तिब्बत और शिनजियांग के बीच सड़क संपर्क बनाना था, इसलिए उसे लद्दाख से लगता इलाका भी चाहिए था। चीन ने भारतीय इलाके में सड़क बना ली थी और इसी से झगड़ा शुरू हुआ।
नाथू ला और चो ला की झड़पः
1967 में सिक्कम की चीन से लगती सीमा पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच नाथू ला और चो ला में झड़पें हुईं। चीन का इरादा तिब्बत के बाद सिक्किम को भी हथियाने का था। 11 सितम्बर 1967 को पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी ने नाथू ला पर हमला किया। यहां चीनी सैनिकों को भारतीयों की जांबाजी के आगे मुंह की खानी पड़ी। उसके बाद उन्होंने अक्तूबर 1967 में चो ला पर धावा बोला। इस झड़प में भारतीय सेना भारी पड़ी और चीनी सैनिकों को सिक्किम सीमा से भागना पड़ा। इसके बाद 1975 में सिक्किम जनमत के जरिए भारत में शामिल हो गया।
दोस्ती के नाम पर धोखाः
2014 में नरेंद्र मोदी जब देश के प्रधानमंत्री बने तो चीन के साथ दोस्ती का एक नया दौर शुरू हुआ। 17 सितम्बर 2014 को जिनपिंग अहमदाबाद पहुंचे। दोनों नेताओं ने साबरमति आश्रम में वक्त गुजारा। अगले दिन 18 सितम्बर 2014 को दोनों नेताओं ने साबरमति के तट पर एक साथ झूला भी झूला। जिनपिंग ने गुजरात में बड़े निवेश की भी घोषणा की।
दोनों नेताओं के बीच दोस्ती की ये तस्वीरें दुनिया के विभिन्न मंचों पर कोरोना महामारी के आने से पहले तक नजर आती रहीं। 10 अक्तूबर 2019 को ममलापुरम में पीएम मोदी ने दक्षिण भारतीय अंदाज में सफेद लुंगी और कमीज में जिनपिंग का स्वागत किया। मगर 2020 का नया साल शुरू होते ही चीन अपनी असलीयत पर उतर आया। दोस्ती का नकाब उतर गया।
15 जून 2020 : गलवान में झड़प
लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून 2020 को भारतीय सैनिकों और चीनी सैनिकों के बीच एक हिंसक झड़प हुई थी। इस झड़प में 20 भारतीय सैनिक मारे गए थे। इसमें 45 से ज्यादा चीनी सैनिकों के मारे जाने का अनुमान है मगर चीन ने इस पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया। चीन के मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने तीन सैनिकों की मौत की खबर दी थी, वह भी काफी बाद में।
नापाक हरकतें जारी
पिछले साल चीन ने अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगे 15 स्थानों के नाम चीनी और तिब्बती भाषा में रख दिए। इसके अलावा पीएलए अरुणाचल प्रदेश से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा के निकट लगातार अपनी ताकत बढ़ा रहा है। वह सीमा से लगते इलाकों में सड़क और रेल संपर्क बढ़ा रहा है। चीनी अधिकारियों ने पिछले दो साल में एलएसी के पास कई गांव बसा दिए हैं। सेटेलाइट कंपनी मैक्सर कीतस्वीरों में खुलासा हुआ था कि 2019 में अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटे जिस इलाके में एक भी इमारत नहीं थी, वहां 2021 में 60 इमारतें बन गईं।
लगातार निगरानी
सितम्बर में, सेना की पूर्वी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल राणा प्रताप कलिता ने कहा था कि भारतीय सेना एलएसी पर पीएलए की गतिविधियों की लगातार निगरानी कर रही है और किसी भी चुनौती से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है।
पैंगोंग झील पर पुल बनाया चीन ने पैंगोंग झील पर भी पुल बना लिया है और हॉट स्प्रिंग पर तीन मोबाइल टावर लगा लिए हैं। चुशुल के पार्षद कोन्चोक सन्जिन ने सोशल मीडिया पर जो जानकारी साझा की।
3500 किमी लंबी है एलएसी
पांच मई, 2020 को शुरू हुए पूर्वी लद्दाख गतिरोध के बाद भारत लगभग 3,500 किलोमीटर लंबी एलएसी के निकट बुनियादी ढांचे के विकास में तेजी ला रहा है।
Hindi News से जुड़े अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करें।हर पल अपडेट रहने के लिए NT APP डाउनलोड करें। ANDROID लिंक और iOS लिंक।
नये संसद भवन के उद्घाटन से पहले बढ़ाई गई नई दिल्ली की सुरक्षा
ब्रेस्ट मिल्क से बनी कॉफी सर्व करेगा ये कैफे, प्रचार के बाद सोशल...
5 डोर वाली महिंद्रा थार एसयूवी की लॉन्चिंग हुई पोस्टपोंड, अब अगले...
नीति आयोग की बैठक का बॉयकाट, BJP ने पूछा- मोदी विरोध में कहां तक...
Satya Prem Ki Katha का फर्स्ट सॉन्ग 'नसीब से' Out, कार्तिक-कियारा की...
Special report: आधुनिक प्रौद्योगिकी से लैस है नया संसद भवन, जानें और...
अधिकारी ईमानदारी, मेहनत से करें काम, उन्हें कोई छू नहीं सकता: वीके...
यासीन मलिक को मृत्युदंड दिलाने के लिए एनआईए उच्च न्यायालय पहुंचा
सेवा विभाग की महिला अधिकारी ने AAP के मंत्री से जताया खतरा, मांगी...
Cannes 2023: व्हाइट परी बन Anushka ने कान्स में किया डेब्यू, खूबसूरती...