नई दिल्ली/टीम डिजिटल। उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने मराठा कोटा मामले की सुनवाई के दौरान शुक्रवार को जानना चाहा कि कितनी पीढ़ियों तक आरक्षण जारी रहेगा। शीर्ष न्यायालय ने 50% की सीमा हटाए जाने की स्थिति में पैदा होने वाली है समानता को लेकर भी चिंता प्रकट की।
महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ से कहा कि कोटा की समय सीमा तय करने पर मंडल मामले में फैसले पर बदली हुई परिस्थितियों में पुनर्विचार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि न्यायालयों को बदली हुई परिस्थितियों के मद्देनजर आरक्षण कोटा तय करने की जिम्मेदारी राज्यों पर छोड़नी चाहिए।
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रोहतगी ने दिया मंडल मामले में फैसले के विभिन्न पहलुओं का हवाला बता दें कि महाराष्ट्र का कानून मराठा समुदाय को आरक्षण प्रदान करते है। इसी के पक्ष में रोहतगी ने दलील देते हुए मंडल मामले में फैसले के विभिन्न पहलुओं का हवाला दिया। जो इंदिरा साहनी केस के रूप में भी चर्चित है। वहीं उन्होंने केंद्र सरकार के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि केंद्र सराकर का ये आरक्षण भी 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करता है।
कोर्ट ने कहा कितनी पीढ़ियों तक इसे जारी रखेंगे? रोहतगी की इस दलील के बाद कोर्ट ने टिप्पणी की यदि 50 प्रतिशत की सीमा या कोई सीमा नहीं रहती है, जैसा कि आपने सुझाया है, तब समानता की क्या अवधारणा रह जाएगी। आखिरकार, हमें इससे निपटना होगा। इस पर आपका क्या कहना है? इससे पैदा होने वाली असमानता के बारे में क्या कहना चाहेंगे। आप कितनी पीढ़ियों तक इसे जारी रखेंगे?
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आगे बढ़ चुके लोगों को कोटे से हटाने की जरूरत- कोर्ट महाराष्ट्र सरकार के वकील ने कहा कि 1931 की जनगणना पर आधारित मंडल फैसले पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। अब आबादी भी बढ़कर 135 करोड़ हो गई है। तब कोर्ट ने कहा कि आजादी के 70 साल बीत चुके। इतने समय में कई सारी कल्याणकारी योजनाएं आईं। क्या हम विश्वास कर सकते हैं कि कोई विकास नहीं हुआ, पिछड़ी जाती के लोग आगे नहीं बढ़े। कोर्ट ने कहा कि मंडल फैसले पर विचार करने की जरूरत इसलिए भी है कि जो लोग विकास कर चुके हैं और आगे बढ़ चुके हैं उन्हें कोटे से बाहर करने की जरूरत है।
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