नई दिल्ली/टीम डिजिटल। उच्चतम न्यायालय ने प्रतिस्पर्धात्मक प्रवेश परीक्षाओं को दोषमुक्त बनाने के उपाय सुझाने के लिये न्यायालय द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त समिति पर होने वाले व्यय के लिये 10 लाख रूपए जमा कराने का निर्देश केन्द्र को दिया। न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने सोमवार को यह मामला पेश होने पर न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सिंघवी द्वारा शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री में अतिरिक्त रजिस्ट्रार को भेजी गयी ई-मेल का जिक्र किया।
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पीठ ने कहा कि न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति के अध्यक्ष से प्राप्त उक्त ई-मेल के मद्देनजर, हम प्रतिवादी भारत सरकार को एक विशेष खाते में दस लाख रूपए जमा कराने का निर्देश देते हैं। इस राशि का इस्तेमाल समिति के कार्यस्थल, सचिवालय सहायता , समिति की बैठक के दौरान इसके सदस्यों के प्रवास और आवागमन के खर्च के लिये होगा।
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शीर्ष अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि समिति के अध्यक्ष से सूचना मिलने के आधार पर केन्द्र सरकार को इस मद में और राशि जमा करानी होगी। शीर्ष अदालत ने कर्मचारी चयन आयोग की 2017 की परीक्षा का प्रश्नपत्र कथित रूप से लीक होने के मामले की सुनवाई के दौरान नौ मई को न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जी एस सिंघवी की अध्यक्षता में सात सदस्यीय समिति गठित की थी।
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न्यायालय ने नौ मई को कर्मचारी चयन आयोग की संयुक्त स्नातक स्तर और उच्चतर माध्यमिक स्तर परीक्षा-2017 में शामिल होने वाले लाखों छात्रों को राहत देते हुये इस परीक्षा के नतीजे घोषित करने की अनुमति दी थी। शीर्ष अदालत ने उसी दिन उच्चाधिकार प्राप्त समिति भी गठित की थी जिसे अपनी पहली बैठक की तारीख से तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी।
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समिति के अन्य सदस्यों में इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि, प्रख्यात कम्प्यूटर वैज्ञानिक विजय पी भाटकर, प्रख्यात गणितज्ञ राजीव एल कर्णधिकार, सीबीएसई के सेवानिवृत्त परीक्षा नियंत्रक एम सी शर्मा, एनआईसी के पूर्व महानिदेशक बी के गैरोला और सीबीएसई के वर्तमान परीक्षा नियंत्रक संयम भारद्वाज शामिल हैं।
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कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षा का प्रश्न पत्र कथित रूप से लीक होने के मामले में शीर्ष अदालत ने पिछले साल 31 अगस्त को इस परीक्षा के नतीजे घोषित करने पर रोक लगा दी थी। यह रोक नौ मई के आदेश से न्यायालय से हटा ली थी।
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