नई दिल्ली/टीम डिजिटल। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि ‘समान रैंक समान पेंशन’ (ओआरओपी) नीति का केंद्र द्वारा बढ़ा-चढ़ा कर बखान किया गया और सशस्त्र बलों के पेंशन भोगियों को वास्तव में दिये गये लाभ की तुलना में कहीं अधिक ‘‘गुलाबी तस्वीर’’ पेश की गई है। न्यायालय ने केंद्र से यह बताने को कहा है कि सशस्त्र बलों में कितने र्किमयों को ‘फोडीफाइड एश्योर्ड करियर प्रोगेशन (एमएसीपी) मिला है, कितने कर्मी एश्योर्ड करियर प्रोगरेशन (एसीपी) में हैं और यदि न्यायालय ओआरओपी में एमएसीपी को भी शामिल करने को कहे तो वित्तीय आवंटन कितना होगा ।
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न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल एन वेंकटरमण से कुछ सवाल किये। पीठ ने जानना चाहा कि क्या 17 फरवरी 2014 को संसद में किये गये वादे से पहले ऐसी कोई नीति थी कि सरकार ओआरओपी प्रदान करने के लिए सैद्धांतिक रूप से राजी है।
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न्यायालय ने कहा, ‘‘हमे इस तथ्य पर गौर करना होगा कि ओआरओपी की कोई सांविधिक परिभाषा नहीं है। यह एक नीतिगत फैसला है। उनकी (याचिकाकर्ताओं की) यह दलील है कि संसद में जो कुछ कहा गया था और नीति के बीच विसंगति है। सवाल यह है कि क्या यह अनुच्छेद 14 का हनन करता है। आपके (केंद्र के) द्वारा ओआरओपी नीति का बढ़ा-चढ़ा कर बखान किये जाने ने, याचिकाकर्ताओं को वास्तव में मिले लाभ की तुलना में कहीं अधिक गुलाबी तस्वीर पेश की है। ’’ न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने वेंकटरमण से कहा कि ओआरओपी सेवा काल के बाद लाभ प्रदान करता है जबकि एमएसीपी सेवा काल के दौरान लाभ प्रदान करता है।
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उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि एमएसीपी, ओआरओपी के लिए एक बाधा है। ’’ पीठ ने वेंकटरमण से पूछा कि कामकाज के नियम के तहत सक्षम प्राधिकार कौन है, किसने ओआरओपी से जुड़ा फैसला लिया था। एएसजी ने कहा कि यह फैसला केंद्रीय कैबिनेट ने लिया था और एक अधिसूचना जारी की गई थी। विषय पर सुनवाई 23 फरवरी को जारी रहेगी।
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