नई दिल्ली/टीम डिजिटल। तीन तलाक कानून (Triple Talaq Law) के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार (Central Government) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत तीन तलाक कानून की समीक्षा करने को भी सहमत हो गया है।
Supreme Court issues notice to Central government after hearing three petitions which had challenged the constitutional validity of 'The Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Act, 2019 (Triple Talaq law) pic.twitter.com/CycmQRc3x3 — ANI (@ANI) August 23, 2019
Supreme Court issues notice to Central government after hearing three petitions which had challenged the constitutional validity of 'The Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Act, 2019 (Triple Talaq law) pic.twitter.com/CycmQRc3x3
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'मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) कानून, 2019 पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर कोई धार्मिक प्रथा को गलत या अपराध करार दिया हो जैसे दहज या सती, ऐसे में क्या इसे अपराध की सूची में नहीं रखेंगे? सुप्रीम कोर्ट में तीन याचिकाएं दाखिल कर ट्रिपल तालक कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। याचिका दाखिल करने वालों में जमीयत उलमा-ए-हिंद के अलवा समस्त केरल के सुन्नी मुस्लिम विद्वानों और धार्मिक नेताओं के संगठन समस्त केरल जमीयुल उलेमा शामिल हैं। वहीं तीसरी याचिका आमिर रशादी मदनी ने याचिका दाखिल की है।
कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक पर पाबंदी और अपराध घोषित होने के बावजूद भी ऐसी कई घटनाएं सामने आ रही हैं। इस कानून के तहत अगर कोई मुस्लिम पति तीन तलाक देगा तो उसे अधिकतम तीन साल की सजा हो सकती है।
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बता दें कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने तीन तलाक कानून को लेकर कोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने कोर्ट से इसपर रोक लगाने की मांग की है। उनके मुताबिक इस कानून को लाकर सरकार की एकमात्र मंशा सिर्फ मुस्लिम पतियों को सजा देना है। ये मुस्लिम पुरुषों के साथ अन्याय है जबकि हिंदू प्रावधानों में ऐसा कोई कानून नहींं है।
न्यायमूर्ति एन वी रमण और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की एक पीठ ने इस मामले में याचिकाओं के समूह पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। याचिकाओं में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 को संविधान का कथित तौर पर उल्लंघन के आधार पर इसे 'असंवैधानिक' करार देने की मांग की है।
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पीठ ने वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद से कहा कि वह 'इस पर विचार करेंगे।' खुर्शीद एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए थे। खुर्शीद ने पीठ से कहा कि एक साथ तीन तलाक को दंडात्मक अपराध बनाने और करीब तीन साल की सजा होने सहित इसके कई आयाम है इसलिए शीर्ष न्यायालय को इस पर विचार करने की जरूरत है।
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