नई दिल्ली/टीम डिजिटल। सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 महामारी के बीच अंतिम वर्ष की परीक्षायें सितंबर में कराने सबंधी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दिशानिर्देश रद्द रने के लिये दायर याचिका पर शुक्रवार को कोई भी अंतरिम आदेश देने से इंकार कर दिया। न्यायालय ने केन्द्र से कहा कि गृह मंत्रालय को इस विषय पर अपना रूख साफ करना चाहिए। यूजीसी ने शीर्ष अदालत से कहा कि किसी को भी इस गफलत में नहीं रहना चाहिए कि चूंकि उच्चतम न्यायालय इस मसले पर विचार कर रहा है तो अंतिम साल और सेमेस्टर की परीक्षा पर रोक लग जायेगी।
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न्यायमूत्रि अशोक भूषण , जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एम आर शाह की पीठ ने वीडियो कान्फ्रेंस के जरिए सुनवाई के दौरान कहा कि वह इस विषय पर कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं कर रहा है। इसके साथ ही पीठ ने इस मामले को 10 अगस्त के लिये सूचीबद्ध कर दिया। केंद्र और यूजीसी की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को सूचित किया कि गृह मंत्रालय के दृष्टिकोण से वह न्यायालय को अवगत करायेंगे। मेहता ने कहा कि वे अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को लेकर चिंतित है, क्योंकि देश में आठ सौ से ज्यादा विश्वविद्यालयों में से 209 ने परीक्षा प्रक्रिया पूरी कर ली है।
उन्होंने कहा कि इस समय करीब 390 विश्वविद्यालय अंतिम वर्ष की परीक्षायें आयोजित करने की तैयारी कर रहे हैं। मेहता ने कहा, ‘‘किसी को भी इस गफलत में नहीं रहना चाहिए कि चूंकि यह न्यायालय इस मामले पर विचार कर रहा है तो इसे पर रोक लगा दी जायेगी। छात्रों को अपनी पढ़ाई जारी रखनी चाहिए।’’ इस पर पीठ ने कहा, ‘‘हम इस तरह का कोई आदेश पारित नहीं कर रहे हैं।’’ पीठ ने महाराष्ट्र सरकार के वकील से कहा कि राज्य आपदा प्रबंधन समिति का इस बारे में 19 जून का आदेश पेश किया जाये।
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पीठ ने कहा, ‘‘इस फैसले (महाराष्ट्र राज्य आपदा प्रबंधन समिति) को रिकार्ड पर लाया जाये।’’ पीठ ने कहा कि इस मामले में सारे हलफनामे सात अगस्त तक दाखिल किये जायें। इस मामले की सुनवाई के अंतिम क्षणों में कुछ याचिकाकर्ताओं के वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने असम और बिहार के बाढग़्रस्त इलाकों के छात्रों की दयनीय स्थिति की ओर पीठ का ध्यान आर्किषत किया। पीठ ने कहा, ‘‘आज यह अंतरिम आदेश का मामला नहीं है। हम 10 अगस्त को सुनेंगे।’’
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विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने न्यायालय में दाखिल हलफनामे में अंतिम वर्ष और अंतिम सेमेस्टर की परीक्षायें सितंबर के अंत में कराने के निर्णय को उचित ठहराते हुये कहा है कि देश भर में छात्रों के शैक्षणिक भविष्य को बचाने के लिये ऐसा किया गया है। यूजीसी ने अंतिम वर्ष की परीक्षायें आयोजित करने संबंधी छह जुलाई की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 50 पेज का हलफनामा न्यायालय में दाखिल किया है।
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इसमें कहा गया है कि इस साल जून में कोविड-19 महामारी की स्थिति को देखते हुये उसने विशेषज्ञ समिति से 29 अप्रैल के दिशा-निर्देशों पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया था। अप्रैल के दिशानिर्देशों में विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों से कहा गया था कि वे अंतिम वर्ष की परीक्षायें जुलाई, 2020 में आयोजित करें। यूजीसी के अनुसार विशेषज्ञ समिति ने ऐसा ही किया और अपनी रिपोर्ट में सेमेस्टर और अंतिम वर्ष की परीक्षायें ऑफ लाइन, ऑन लाइन या मिश्रित प्रक्रिया से सितंबर, 2020 के अंत में कराने की सिफारिश की थी।
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हलफनामे के अनुसार विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पर यूजीसी ने छह जुलाई की बैठक में चर्चा की और इसे मंजूरी दी। इसके तुरंत बाद कोविड-19 महामारी को ध्यान में रखते हुये अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के बारे में परिर्वितत दिशानिर्देश जारी किये गये। कोविड-19 महामारी के दौरान सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षायें कराने के छह जुलाई के निर्देश को चुनौती देते हुये शिव सेना की युवा इकाई ‘युवा सेना’ और कई अन्य संस्थाओं तथा व्यक्तियों ने याचिकायें दायर कर रखी हैं।
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इन याचिकाओं में संबंधित प्राधिकारियों को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि मौजूदा हालात को देखते हुये अंतिम वर्ष की परीक्षायें नहीं करायी जायें और छात्रों के पिछले प्रदर्शन या आंतरिक आकलन के आधार पर ही नतीजे घोषित किये जायें। इन याचिकाओं में बिहार और असम में बाढ़ की वजह से लाखों छात्रों की परेशानियों और कई राज्यों द्वारा कोविड-19 महामारी की वजह से राज्य विश्वविद्यालयों की परीक्षायें रद्द करने के निर्णय सहित अनेक मुद्दे उठाये गये हैं। न्यायालय ने इस मामले में 27 जुलाई को केन्द्र और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था।
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