नई दिल्ली/टीम डिजिटल। उच्चतम न्यायालय ने राजद्रोह के मामलों में सभी कार्यवाहियों पर बुधवार को रोक लगा दी जिसके बाद केंद्रीय विधि मंत्री किरेन रीजीजू ने कार्यपालिका और न्यायपालिका समेत विभिन्न संस्थानों के लिए ‘लक्ष्मण रेखा’ की बात कही और कहा कि किसी को इसे पार नहीं करना चाहिए। शीर्ष अदालत के निर्देश जारी करने के कुछ ही समय बाद संवाददाताओं के सवालों का जवाब देते हुए कानून मंत्री ने कहा, ‘‘हम एक दूसरे का सम्मान करते हैं। अदालत को सरकार, विधायिका का सम्मान करना चाहिए। इसी तरह सरकार को भी अदालत का सम्मान करना चाहिए। हमारी स्पष्ट सीमाएं हैं और उस ‘लक्ष्मण रेखा’ को किसी को पार नहीं करना चाहिए।’’
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प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि राजद्रोह के आरोप से संबंधित सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि नागरिक स्वतंत्रताओं के हित और नागरिकों के हितों का राज्य के हितों के साथ संतुलन जरूरी है। पीठ ने केंद्र एवं राज्यों को निर्देश दिया कि जब तक सरकार औपनिवेशिक युग के कानून पर फिर से गौर नहीं कर लेती, तब तक राजद्रोह के आरोप में कोई नई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाए।
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शीर्ष अदालत ने मामले में सुनवाई जुलाई के तीसरे सप्ताह में करने के लिए इसे सूचीबद्ध किया है और कहा कि अगले आदेश तक उसके निर्देश जारी रहेंगे। प्रधान न्यायाधीश रमण ने भी 30 अप्रैल को यहां उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और मुख्यमंत्रियों के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हुए ‘लक्ष्मण रेखा’ के महत्व की बात कही थी। कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को उनके कर्तव्य निभाते समय ‘लक्ष्मण रेखा’ का ध्यान रखने की बात याद दिलाते हुए उन्होंने सरकारों को आश्वासन दिया था कि ‘‘न्यायपालिका कभी सरकार के रास्ते में नहीं आएगी, यदि वह कानून के अनुरूप है।’’ उन्होंने कहा था, ‘‘हम जनता के कल्याण को लेकर आपकी चिंता को समझते हैं।’’
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रीजीजू ने सोमवार को संवाददाताओं से बातचीत में कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्देश दिया है कि राजद्रोह कानून के प्रावधानों का पुन: अध्ययन किया जाए और पुर्निवचार किया जाए तथा सरकार इस बारे में हितधारकों के विचारों का ‘उचित’ संज्ञान लेगी तथा आईपीसी की धारा 124ए की बात आने पर सुनिश्चित करेगी कि तो देश की संप्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रहे। रीजीजू ने कहा था कि उन्हें लगता है कि यह सरकार का सुस्पष्ट कदम है और कानून बनाने की जिम्मेदारी सरकार की है।
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