नई दिल्ली/टीम डिजिटल। उच्चतम न्यायालय ने अपने कामकाज में पारर्दिशता एवं पहुंच बढ़ाने की कवायद के तौर पर 27 सितंबर से सभी संविधान पीठ के मामलों की सुनवाई का सीधा प्रसारण करने का निर्णय किया है। उच्चतम न्यायालय ने 2018 में इस संबंध में ऐतिहासिक फैसला दिया था और ठीक चार साल बाद उसकी कार्यवाही का सीधा प्रसारण किया जाएगा। भारत के प्रधान न्यायाधीश यू यू ललित की अगुवाई में उच्चतम न्यायालय के 30 न्यायाधीशों ने स्वप्निल त्रिपाठी मामले में 2018 के उच्चतम न्यायालय के फैसले को लागू करने का मंगलवार शाम को सर्वसम्मति से निर्णय लिया।
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उच्चतम न्यायालय ने पहली बार 26 अगस्त को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अगुवाई वाली एक पीठ की कार्यवाही का एक वेबकास्ट पोर्टल के जरिए सीधा प्रसारण किया था। यह एक रस्मी कार्यवाही थी क्योंकि न्यायाधीश रमण 26 अगस्त को ही सेवानिवृत्त हो रहे थे। चार वर्ष पहले 26 सितंबर 2018 को उच्चतम न्यायालय ने ‘‘संवैधानिक और राष्ट्रीय महत्व’’ के मामलों की अदालती कार्यवाही के सीधे प्रसारण को अनुमति देकर न्यायपालिका के कामकाज में पारर्दिशता लाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया था। उसने कहा था कि यह पारर्दिशता ‘‘सूरज की रोशनी’’ की तरह है जो ‘‘सबसे अच्छा निस्संक्रामक’’ है।
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उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि वैवाहिक विवादों या यौन शोषण से जुड़े संवेदनशील मामलों की कार्यवाही का सीधा प्रसारण नहीं किया जाना चाहिए। उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ को अगले सप्ताह कई महत्वपूर्ण मामलों पर सुनवाई करनी है, जिसमें आॢथक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए संविधान के 103वें संशोधन, नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं तथा अन्य मामलों पर होने वाली सुनवाई शामिल है। हाल में कार्यकर्ता-वकील इंदिरा जयसिंह ने सीजेआई यू यू ललित को एक पत्र लिखकर 2018 के फैसले को लागू करने तथा संविधान पीठ के मामलों की सुनवाई का सीधा प्रसारण करने की मांग की थी।
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सूत्रों के अनुसार, शुरुआत में उच्चतम न्यायालय ‘यूट््यूब’ के जरिए कार्यवाही का सीधा प्रसारण कर सकता है और बाद में वह अपने सर्वर के जरिए कार्यवाही का सीधा प्रसारण कर सकता है। लोग अपने मोबाइल फोन, लैपटॉप और कम्प्यूटर पर बिना किसी बाधा के उच्चतम न्यायालय की कार्यवाही देख सकेंगे।
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