नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि वह उस याचिका को सूचीबद्ध करने पर विचार करेगा जिसमें निर्वाचन आयोग को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है कि राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट पर उम्मीदवारों के आपराधिक मामलों के संबंध में विवरण प्रकाशित करने के साथ-साथ उनका चयन करने का कारण भी बताएं। प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ से याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने मौजूदा चुनाव प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने का आग्रह किया था। उपाध्याय ने कहा, 'चुनाव के पहले चरण के लिए नामांकन शुरू हो गया है और राजनीतिक दल और उम्मीदवार शीर्ष अदालत के दो फैसलों का खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं।’’
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प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'हम इस पर विचार करेंगे। मैं एक तारीख दूंगा।’’ राजनीतिक दलों की वेबसाइट पर उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि से संबंधित जानकारी प्रकाशित करने के साथ ही जनहित याचिका में निर्वाचन आयोग को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि प्रत्येक राजनीतिक व्यक्ति इस जानकारी को इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और सोशल मीडिया पर भी प्रकाशित करें। अगर इन निर्देशों का उल्लंघन होता है तो पार्टी अध्यक्ष के खिलाफ अदालत की अवमानन की याचिका दाखिल की जाए।
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इसमें दावा किया गया है कि पंजीकृत एवं मान्याता प्राप्त दल समाजवादी पार्टी की ओर से कैराना निर्वाचन क्षेत्र से कथित गैंगस्टर नाहिद हसन को प्रत्याशी बनाया गया है लेकिन उसने उच्चतम न्यायालय के फरवरी 2020 के फैसले में दिये गए निर्देशों की भावना के अनुरूप उम्मीदवारी घोषित करने के 48 घंटे के भीतर न उनके आपराधिक रिकॉर्ड और न ही उनका चयन करने के कारण को इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और सोशल मीडिया में प्रकाशित किया। इसके बाद यह याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया है, 'नाहिद हसन करीब 11 महीने पहले उनपर लगाए गए गैंगस्टर कानून के तहत हिरासत में हैं और वह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण में नामांकन दाखिल करने वाले पहले उम्मीदवार हैं। कैराना से दो बार विधायक रहे नाहिद हसन पर 13 फरवरी 2021 को शामली पुलिस ने गैंगस्टर कानून के तहत मामला दर्ज किया था।’’
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याचिका में आरोप लगाया है, 'उनपर (हसन के खिलाफ) कई आपराधिक मामले दर्ज हैं और वह कैराना से हिंदूओं के पलायन के मास्टरमाइंड हैं। उनपर धोखाधड़ी और जबरन वसूली सहित कई आपराधिक मामले हैं और विशेष एमएलए-एमपी अदालत ने उन्हें भगोड़ा घोषित किया था।’’ याचिका में कहा गया कि अपराधियों को विधायक बनने के लिए चुनाव लडऩे की अनुमति देने के नतीजे लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिए बहुत घातक हैं। याचिका में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर निर्वाचन आयोग को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने का भी आग्रह किया गया है कि हर राजनीतिक दल यह बताए कि उसने आपराधिक छवि वाले व्यक्ति को क्यों प्राथमिकता दी और ऐसे उम्मीदवार का चयन क्यों नहीं किया जिसकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है?
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अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के जरिये दाखिल याचिका में कहा गया है, ‘‘याचिकाकर्ता भारत के निर्वाचन आयोग को यह भी निर्देश देने का अनुरोध करता है कि उस दल का पंजीकरण रद्द किया जाए जो उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का उल्लंघन करता है।’’ याचिका में दावा किया गया है कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान न केवल वे बड़ी मात्रा में अवैध धन का उपयोग हस्तक्षेप करने के लिए किया जाता है बल्कि मतदाताओं और प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी को धमकाया भी जाता है। याचिका में कहा गया है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले विधायक न्याय के प्रशासन का नाश करने की कोशिश करते हैं और अपने खिलाफ दर्ज मामलों पर कार्यवाही को पूरा होने से रोकने के लिए हर हथकंडा अपनाते हैं और जहां तक मुमकिन हो बरी होने की कोशिश में रहते हैं। उसमें कहा गया है कि मामलों के निपटान में लंबा विलंब और कम दोषसिद्धि दर उनके प्रभाव की गवाह है।
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