Monday, Dec 11, 2023
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supreme court will reconsider the decision to exempt mps from lawsuits

सांसदों को मुकदमे से छूट देने के फैसले पर पुन: विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट

  • Updated on 9/21/2023

नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। देश को झकझोर देने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड के करीब 25 साल बाद उच्चतम न्यायालय सांसदों और विधायकों को संसद या राज्य विधानसभाओं में भाषण या वोट देने के बदले में रिश्वत लेने के मामलों में मुकदमा चलाने से छूट देने के अपने 1998 के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए बुधवार को सहमत हो गया। न्यायालय ने कहा कि यह “राजनीति की नैतिकता” पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि वह मामले पर नए सिरे से सुनवाई के लिए सात सदस्यीय पीठ गठित करेगी। शीर्ष न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने पीवी नरसिम्हा राव बनाम सीबीआई मामले में 1998 में दिए अपने फैसले में कहा था कि सांसदों को सदन के भीतर कोई भी भाषण तथा वोट देने के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने से संविधान में छूट मिली हुई है।

वर्ष 2019 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पीठ ने इस अहम प्रश्न को पांच सदस्यीय पीठ के पास भेजते हुए कहा था कि इसके ‘‘व्यापक प्रभाव'' हैं और यह ‘‘सार्वजनिक महत्व'' का सवाल है। तीन सदस्यीय पीठ ने तब कहा था कि वह झारखंड में जामा निर्वाचन क्षेत्र से झारखंड मुक्ति मोर्चा की विधायक सीता सोरेन की अपील पर सनसनीखेज झामुमो रिश्वत मामले में अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगी। सीता सोरेन पर 2012 में राज्यसभा चुनाव में एक विशेष उम्मीदवार को मत देने के लिए रिश्वत लेने का आरोप था।

उन्होंने दलील दी थी कि सांसदों को अभियोजन से छूट देने वाला संवैधानिक प्रावधान उन पर भी लागू किया जाना चाहिए। तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने तब कहा था कि वह सनसनीखेज झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) रिश्वतखोरी मामले में अपने फैसले पर फिर से विचार करेगी, जिसमें झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री शिबू सोरेन तथा पार्टी के चार अन्य सांसद शामिल हैं, जिन्होंने 1993 में तत्कालीन पी वी नरसिम्हा राव सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में वोट देने के लिए रिश्वत ली थी।

सीबीआई ने सोरेन और झामुमो के चार अन्य लोकसभा सांसदों के खिलाफ मामला दर्ज किया था, लेकिन न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत उन्हें अभियोजन से मिली छूट का हवाला देते हुए इसे रद्द कर दिया था। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि वह मामले को नए सिरे से देखने के लिए सात न्यायाधीशों की पीठ गठित करेगी। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने हालांकि 1998 के फैसले पर पुनर्विचार किए जाने का विरोध किया। 

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