रुद्रप्रयाग/ब्यूरो। केदारनाथ से पांच किलोमीटर ऊपर चौराबाड़ी ताल के पास ग्लेशियर के कैचमेंट में एवलॉन्च टूटने से एक बार फिर केदारनाथ आपदा की याद दिला दी है। हालांकि यहां ग्लेशियर छोटा होने से नुकसान नहीं हुआ। किन्तु यह मंजर भारी बर्फबारी होने के बाद होता तो, केदारनाथ में फिर नुकसान होने की संभावना हो सकती थी। फिर भी जिला प्रशासन धाम में लगातार नजर बनाये हुए है।
बीते वीरवार को केदारनाथ मंदिर से करीब पांच किमी पीछे ऊपर की ओर देर शाम करीब 6ः 30 बजे चौराबाड़ी ग्लेशियर के कैचमेंट में एवलॉन्च (हिमखंड) आया। एवलॉन्च का स्वरूप छोटा होने तथा अभी अधिक बर्फबारी न होने से इसकी गति बहुत अधिक नहीं थी। फिर भी वीडियो में जिस तरह से ग्लेशियर टूटने के बाद बर्फ का गुबार उठ रहा था, कहीं न कहीं यह खतरे की घण्टी जरूर बजा गया।
बताया जा रहा है कि धाम में कई दिनों से लगातार बारिश हो रही है, तथा केदारनाथ की आस पास की पहाड़ियों पर बर्फबारी हुई, जिस कारण ग्लेशियर खिसक गया होगा। जानकारों का मानना है कि हिमालयी क्षेत्रों में यह सामान्य घटनाएं हैं, किन्तु यदि घटना वाले क्षेत्रों में मानव बसागत है तो यह खतरे से खाली भी नहीं हैं। इस तरह के इलाकों में नजर रखने की आवश्यकता है।
बता दें कि यह वही चौराबाड़ी ताल वाला क्षेत्र है जहां से 2013 की भीषण आपदा की शुरुआत हुई थी, और यहां आयी भारी जल त्रासदी से हजारों लोग काल के ग्रास में समा गए थे। कुछ ही समय में केदारनाथ धाम से लेकर केदारघाटी तक मंदाकिनि नदी का प्रलयंकारी रूप हो गया था। जिसके चलते करोड़ों की सम्पदा तहस - नहस हुई थी।
यदि इस तरह से ग्लेशियरों के टूटने व एबलांच आने की घटनाओं को लेकर ठोस पहल या शोध नहीं किया गया, तो आने वाले समय में चौरबाड़ी क्षेत्र में बड़ी घटना भी घट सकती है, जिसके चलते केदारधाम को पुनः आपदा जैसी घटना से जूझना पड़ सकता है।
केदारनाथ के चौरबाड़ी क्षेत्र में एबलांच आने की सूचना मिली। इस तरह से ग्लेशियर का खिसकना चिंता का विषय है। हालांकि आपदा प्रबंधन को यहां लगातार नजर रखने के निर्देश दिए हैं। जल्द ही वाडिया इंस्टिट्यूट या अन्य शोध सस्थाओं से यहां सर्वे कराने को लेकर पहल की जाएगी।
मयूर दीक्षित, डीएम, रुद्रप्रयाग
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में एबलांच खिसकना बहुत सामान्य घटना है। यदि इस हिमअवसाद के पीछे पानी रुक रहा है तो यह भविष्य के लिए खतरा है, सुरक्षा के दृष्टिगत उसकी मॉनिटरिंग करनी आवश्यक है। बढ़ते वायु प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के चलते ग्लेशियर लगातार पीछे खिसक रहे हैं। हिमालयी क्षेत्रों में बारिश की मात्रा बढ़ रही है, लगातार हो रहे मौसम परिवर्तन से इन घटनाओं की पुनरावृत्ति हो रही है। सरकार को हिमालय पर नजर रखने के लिए मजबूत तंत्र बनाने की आवश्यकता है।
डॉ. एसपी सती, वरिष्ठ भूगर्भवेता
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