नई दिल्ली/टीम डिजीटल। बुधवार को किसान गाजीपुर बॉर्डर खाली कर देंगे। वह आगे क्या रणनीति बनाएंगे यह तो भविष्य के गर्भ में छुपा है। लेकिन बरसों तक इस आंदोलन को याद किया जाता रहेगा। आंदोलन के सफल होने के पीछे किसानों के धैर्य और रणनीति के अलावा श्रद्धा का भी अहम किरदार था। जिसका जिक्र कम ही हुआ। किसानों की यह श्रद्धा गाजीपुर बॉर्डर पर बनी उस अखंड ज्योति से थी। जिसने लगातार किसानों को एकजुट रखने और प्रेरित करने का काम किया। बीते 34 सालों से जल रहा यह प्रेरणा पुंज भी बुधवार को किसानों के साथ वापस मुजफ्फरनगर लौट जाएगा।
आंदोलन को लगातार मिलता रहा बाबा टिकैत का आर्शीवाद किसान और उनके आंदोलनों की जब भी चर्चा होगी। तब-तब बाबा महेन्द्र सिंह टिकैत का नाम लिया जाता रहेगा। बेशक वह अब दुनिया में नहीं हैं। लेकिन उनका आर्शीवाद अखंड ज्योति के रूप में किसान आंदोलन से साथ लगातार बना रहा। बागपत के दोगट गांव के रहने वाले चौधरी रामकुंवर पगड़ीवाले बताते हैं कि किसानों के साथ-साथ बाबा टिकैत की यह अखंड ज्योति भी गाजीपुर बॉर्डर आई थी। तब से उन्हीं के कंधों पर इस ज्योति के रखरखाव का जिम्मा है। रामकुंवर उन गिने-चुने लोगों में से एक हैं। जो 28 नवंबर 2020 से लगातार गाजीपुर बॉर्डर पर हैं और बुधवार को किसानों के साथ वापस लौटेंगे।
आज भी लगता है बाबा का बिस्तर और हुक्का किसानों का मानना है कि बाबा टिकैत अखंड ज्योति के तौर पर अभी भी उनके बीच हैं। इसलिए अखंड ज्योति के अलावा यहां बाबा का बिस्तर व हुक्के की व्यवस्था नियमित तौर पर की जाती है। बाबा के बिस्तर पर बैठने या लेटने की मनाही है। अखंड ज्योति कक्ष में भी कम ही लोगों को आने-जाने दिया जाता है। भाकियू के राष्ट्रीय प्रेस प्रभारी शमशेर राणा ने बताया कि जब भी राकेश टिकैत सरकार से बातचीत करने के लिए गए, यहां आकर बाबा का आर्शीवाद लेना नहीं भूले। इसके अलावा जब भी ऐसा वक्त आया, जब वह भीड़ से हटकर कुछ वक्त आराम करना चाहते थे, तो इसी अखंड ज्योति कक्ष में बाबा के बिस्तर के पास आकर आराम करते थे।
1987 से जल रही है अखंड ज्योति चौधरी रामकुंवर बताते हैं कि 1987 में किसान बिजली संबधित कुछ मांगों को लेकर उस वक्त मुजफ्फरनगर में पडऩे वाले गांव करमुखेडी में प्रदर्शन कर रहे थे। प्रदर्शन के दौरान पुलिस प्रशासन से हुई झड़प में जयपाल और अकबर नाम के दो किसानों की मौत हो गई। इन किसानों को श्रद्धांजलि देने के लिए अखंड ज्योति जलाई गई। जिसमें आस-पास के गावों के किसानों ने हर घर से घी भेजा। इसके बाद कहा जाता है कि केवल बाबा टिकैत के निधन पर यह ज्योति 2011 में बुझी थी। जब से यह अखंड ज्योति सिसौली में लगातार जल रही है। जिसमें हर गांव से एक चम्मच घी आहुति के रूप में आता है।
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