Thursday, Jun 08, 2023
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the moment leaders stop using religion in politics, hate speech will end: supreme court

जिस क्षण नेता राजनीति में धर्म का उपयोग बंद कर देंगे, नफरती भाषण समाप्त हो जाएंगे : सुप्रीम कोर्ट

  • Updated on 3/29/2023

नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को नफरती भाषणों को गंभीरता से लिया और कहा कि जिस क्षण राजनीति और धर्म अलग हो जाएंगे एवं नेता राजनीति में धर्म का उपयोग बंद कर देंगे, ऐसे भाषण समाप्त हो जाएंगे। नफरती भाषणों को एक ‘‘दुष्चक्र'' करार देते हुए न्यायालय ने कहा कि तुच्छ तत्वों द्वारा ऐसे भाषण दिए जा रहे हैं और लोगों को खुद को संयमित रखना चाहिए। न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना की पीठ ने पूर्व प्रधानमंत्रियों जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों को उद्धृत करते हुए कहा कि उनके भाषणों को सुनने के लिए दूर-दराज के इलाकों से लोग एकत्र होते थे।

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न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा, ‘‘एक बड़ी समस्या तब पैदा होती है जब नेता राजनीति को धर्म से मिला देते हैं। जिस क्षण राजनीति और धर्म अलग हो जाएंगे एवं नेता राजनीति में धर्म का उपयोग बंद कर देंगे, यह सब बंद हो जाएगा। हमने अपने हालिया फैसले में भी कहा है कि राजनीति को धर्म से मिलाना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।'' पीठ ने हैरानी जताई कि अदालतें कितने लोगों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू कर सकती हैं और भारत के लोग अन्य नागरिकों या समुदायों को अपमानित नहीं करने का संकल्प क्यों नहीं ले सकते। पीठ ने नफरती भाषण देने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने में विफल रहने को लेकर महाराष्ट्र सहित विभिन्न राज्य प्राधिकरणों के खिलाफ एक अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, "हर दिन तुच्छ तत्व टीवी और सार्वजनिक मंचों पर दूसरों को बदनाम करने के लिए भाषण दे रहे हैं।"

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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केरल में एक व्यक्ति द्वारा एक खास समुदाय के खिलाफ दिए गए अपमानजनक भाषण की ओर पीठ का ध्यान दिलाया और कहा कि याचिकाकर्ता शाहीन अब्दुल्ला ने देश में नफरती भाषणों की घटनाओं का चुनिंदा रूप से जिक्र किया है। इस पर मेहता एवं पीठ के बीच तीखी बहस हुई। मेहता ने द्रमुक के एक नेता के एक बयान का भी जिक्र किया और कहा कि याचिकाकर्ता के वकील ने उन्हें और उन राज्यों को अवमानना याचिका में पक्ष क्यों नहीं बनाया। पीठ ने उन भाषणों का उल्लेख करते हुए कहा, "हर क्रिया की समान प्रतिक्रिया होती है... हम संविधान का पालन कर रहे हैं और हर मामले में आदेश कानून के शासन की संरचना में ईंटों के समान हैं। हम अवमानना ​​याचिका की सुनवाई कर रहे हैं क्योंकि राज्य समय पर कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। क्योंकि राज्य शक्तिहीन हो गया है और समय पर कार्य नहीं करता । यदि यह मौन है तो कोई राज्य क्यों होना चाहिए?"

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तब मेहता ने कहा, "...केंद्र ने पीएफआई पर प्रतिबंध लगा दिया है। कृपया केरल राज्य को नोटिस जारी करें ताकि वे इसका जवाब दे सकें।" अदालत ने मेहता को अपनी दलीलें जारी रखने के लिए कहा। इसके बाद मेहता ने कहा, "कृपया ऐसा नहीं करें। इसका व्यापक प्रभाव होगा। हम क्लिप को देखने से क्यों बच रहे हैं? अदालत मुझे भाषणों की वीडियो क्लिप चलाने की अनुमति क्यों नहीं दे रही है।? केरल को नोटिस क्यों नहीं जारी किया जा सकता है और उसे याचिका में पक्ष क्यों नहीं बनाया जा सकता ... मैं क्लिप दिखाने की कोशिश कर रहा हूं जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है। यह अदालत उन भाषणों पर स्वत: संज्ञान ले सकती थी।''

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पीठ ने कहा, " इसे नाटक न बनाएं। यह कानूनी कार्यवाही है... वीडियो क्लिप देखने का एक तरीका है। यह सब पर समान रूप से लागू होता है। यदि आप (मेहता) चाहें तो इसे अपनी दलीलों में शामिल कर सकते हैं।" याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील निजाम पाशा ने कहा कि नफरत का कोई धर्म नहीं होता और वह अधिकारों की रक्षा के लिए यहां आए हैं। पाशा ने कहा कि महाराष्ट्र में पिछले चार महीनों में 50 ऐसी रैली हुई हैं, जहां नफरती भाषण दिए गए हैं। केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू ने कहा कि इस अदालत द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार, अगर कोई संज्ञेय अपराध होता है, तो राज्य आपत्ति नहीं कर सकता और वह प्राथमिकी दर्ज करने के लिए बाध्य है। शीर्ष अदालत ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 28 अप्रैल की तारीख तय की और याचिका पर महाराष्ट्र सरकार को जवाब देने को कहा।

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