नई दिल्ली। अनामिका सिंह। जब आज की पुरानी दिल्ली यानि दिल्ली 6 बनाई जा रही थी तो आपको जानकर हैरानी होगी कि उस समय महरौली के क्षेत्र को पुरानी दिल्ली के नाम से जाना जाता था। दरअसल सही मायने में अगर इंद्रप्रस्थ के पांडवकालीन किले यानि पुराने किले को छोड़ दिया जाए तो राजधानी बनने की शुरूआत महरौली क्षेत्र से ही हुई थी। चाहे वो लालकोट का किला हो या फिर रायपिथौरागढ़। यही वजह है कि पुरातत्वविदों ही नहीं बल्कि अंग्रेजों को महरौली के किले, मकबरे, बावलियां व मस्जिद हमेशा से आकर्षित करती रही हैं। इतना ही नहीं एक अंग्रेज अधिकारी ने तो फारसी कारीगरी के बेजोड़ नमूने मुहम्मद कुली खां के मकबरे को हनीमून स्पॉट में ही बदल दिया था। तो आइए जानते हैं इस मकबरे से जुड़ी कुछ खास बातें।
आखिर कौन थे मुहम्मद कुली खां मुहम्मद कुली खां, मुगल बादशाह अकबर की घाय मां माहम अनंगा के बेटे व अधम खां का भाई था। मां माहम अनंगा, बादशाह अकबर के करीबियों में से एक थीं। कहते हैं कि वो सिर्फ पारिवारिक मामलों ही नहीं बल्कि सियासी मामलों में भी पूरी दखल रखा करती थीं। अकबर उनकी बातों को माना करते थे, इतिहासकार तो यहां तक कहते हैं कि अकबर अपनी मां हामिदा बानो बेगम से अधिक मां माहम अनंगा की बात मानते थे और दरबार के मामलों में भी उनसे रायशुमारी किया करते थे।
कैसे बना हनीमून स्पॉट इतिहासकारों का कहना है कि महरौली के क्षेत्र में ब्रिटिश ऑफिसर सर थॉमस थेओफिलुस मेटकाल्फ का काफी दबदबा था। ये इस बात से भी स्पष्ट है कि उसने कुली खान के मकबरे को अपनी मानसून रिट्रीट यानि हनीमून स्पॉट में तब्दील कर दिया था। कहा जाता है कि उसने मकबरे केअंदर कुली खान के पत्थर के ताबूत को अलग करके बिलियर्ड का टेबल रखवा दिया था। मेटकाल्फ ने आस-पास की जगह को हनीमून स्पॉट में तब्दील कर उसका नाम डिलाइट ऑफ हार्ट दिया था। इसके नजदीक ही बाद में उन्होंने मेटकाल्फ हाऊस का भी निर्माण करवाया था, जहां अंग्रेजों के शासन के दौरान बड़ी-बड़ी पार्टियां आयोजित की जाती थीं।
मकबरे में लिखीं है फारसी शैली में कुरान की आयतें मुहम्मद कुली खां का मकबरा फारसी कारीगरी का बेजोड़ नमूना है। मकबरे के मुख्यद्वार पर फारसी शैली में कुरान की आयतें लिखीं हुईं थीं जो लगभग अब धूमिल हो गई हैं। मकबरा ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है और बाहर से अष्टभुजाकार तथा भीतर से वर्गाकार है। इसके अंदरूनी भाग पर उत्कृष्ट नक्काशी की गई है। इसे बारीक और चित्रित प्लास्टर से बनाया गया है। जबकि मकबरे की बाहरी दीवारों पर गचकारी प्लास्टर के डिजाइन बने हैं जोकि फारसी कला है।
मकबरे में टाइलों का भी हुआ है प्रयोग बता दें कि कुली खां के मकबरे के पूर्वी भाग में नीले, हरे और पीले रंगों के चमकदार टाइल्स लगाए गए हैं जिनमें से अधिकतर टूट गए हैं। एएसआई ने पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम 2004 व 2005 के दिल्ली अधिनियम 9 के तहत इसे संरक्षित घोषित तो किया है लेकिन संरक्षण के लिए कोई भी विशेष इंतजामात नहीं किए। इसकी वजह से मकबरे की दीवारें व कुरान की आयतें लगभग खत्म होने की कगार पर हैं। हालांकि पूरा मकबरा बलूआ पत्थरों का बना हुआ है।
अब बहुरेंगे मकबरे के दिन मालूम हो कि हाल ही में उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने संस्कृति व विदेश राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी के साथ महरौली ऑर्कियोलॉजिक्ल पार्क का दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने इस पार्क में बने करीब 100 से अधिक पुरातात्विक महत्व की इमारतों के संरक्षण की बात भी कही थी। उन्होंने इस मकबरे का भी दौरा किया था। जिससे साफ है कि आने वाले दिनों में मोहम्मद कुली खां के मकबरे के दिन भी बहुरने वाले हैं।
इतिहास के अवशेष, पुराना किला में अभी भी हैं शेष
Mango Weight Loss: ऐसे करें आम का सेवन, कभी नहीं बढ़ेगा वजन
नहीं रहे कन्नड़ के मशहूर एक्टर Nithin Gopi, दिल का दौड़ पड़ने की वजह...
प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रेन दुर्घटना स्थल का निरीक्षण किया, स्थिति का...
देश का एक ऐसा गांव जहां पैदा होते ही हो जाती है बच्चे की मौत, 500...
टाटा नेक्सन ईवी मैक्स में आया नया अपडेट, ये खास फीचर्स हुआ शामिल
रेल हादसे में 261 की मौत, राहत एवं बचाव कार्य में वायुसेना के विमान...
हाई कोर्ट से अंतरिम राहत मिलने के बाद बीमार पत्नी से मिलने पहुंचे...
ओडिशा ट्रेन एक्सिडेंट इतिहास की भीषण दुर्घटना में से एक, पढ़ें कब- कब...
BJP ने बालासोर ट्रेन हादसे के बाद शनिवार को सरकार का वर्षगांठ...